गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

फ़िर से दिल दो हाकी को ........और पैसे दो क्रिकेट को




जी हां आजकल टीवी पर ये विज्ञापन खूब दिखाया जा रहा है , कभी कोई क्रिकेट खिलाडी तो कभी , कभी ओलंपियन पदक विजेता कोई खिलाडी बहुत सी अच्छी सी बातें कहता हुआ आखिर में कहता है कि इस बार हाकी का विश्व कप अपने देश में होने जा रहा है और वो तो तो भारत के सारे मैच देखेगा । इसके बाद बडे ही मन से कहा जाता है .........फ़िर से दिल दो हाकी को ....और इसके बाद मेरे मन से अपने आप निकलता है ...हां फ़िर से दिल दो हाकी और पैसे नाम शोहरत ,सब कुछ दो ....अपने चहेते क्रिकेट को ...। ओह एक पल को ये सब देख कर तो ऐसा लगा जैसे हाकी के स्वर्णिम दिन न सही मगर कुछ न कुछ दिन तो बहुरेंगे ही ।

इतने पर ही मन फ़िर बोल उठा कि आखिर क्या हो जाएगा रातोंरात जो सब हाकी को अपना दिल दे बैठेंगे ।पहले तो जब मैं सभी उन सभी का जिसके जिसके साथ ये राष्ट्रीय शब्द जुडा हुआ है ...,उनकी स्थिति देखता हूं तो लगता है कि इनके साथ राष्ट्रीय संबोधन को तो हटा ही दें तो बेहतर रहेगा .....बेशक ये हो सकता है कि ऐसा करने से उनके हालात पर रत्ती भर भी फ़र्क न पडे मगर कम से कम इतना तो होगा ही कि फ़िर एक अनावश्यक बोझ जो राष्ट्रीयता का दबाव बनाता सा लगता है , वो तो हटा हुआ रहेगा ही । अब देखिए न एक एक कर लिया जाए । हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी ....आज भी संघर्षरत है जाने किन किन जगहों पर , जाने किन किन स्तरों पर । हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों , राष्ट्रीय नदी घोषित नदी गंगा आज मरण शैय्या पर है । राष्ट्रीय पशु बाघ की हालत तो ये है कि पूरे देश में ये सिर्फ़ गिनती के कुछ सौ ही बचे हैं । बताईये सवा अरब की इंसानों की जनसंख्या में बाघों की संख्या सिर सैकडों में सिमट कर रह गई है । और इत्तफ़ाक देखिए कि जब हाकी को दिल देने की बात चल रही है तो उसके साथ ही बाघों को बचाने की भी बात की जा रही है । तो समझा क्या जाए आखिर ..........यही कि राष्ट्रीय शब्द से जुडी सभी चीज़ों के लिए अपना देश और देशवासी संवेदन शून्य .....तथा सरकार प्रशासन बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ हो कर बैठे हैं ।

मुझे ये तो नहीं पता कि इस प्रचार /नारे /घोषणा आदि से हाकी या बाघों या कि गंगा नदी की स्थिति पर कितना और क्या फ़र्क पडेगा मगर इतना जरूर है कि यदि इन सबके प्रति अब भी सजगता, संजीदगी , सक्रियता और सचेतता नहीं आई जनमानस में तो फ़िर वह दिन दूर नहीं जब ..हम अपनी आने वाली नस्लों को किसी भी तरह से ये समझा नहीं पाएंगे कि आखिर .....हाकी को राष्ट्रीय खेल क्यों कहा जाता था । बाघ का चित्र उन्हें टीवी सिनेमा में ही दिखा पाएं , और गंगा के लिए भी कुछ ऐसा ही । अब समय आ चुका है कि बिना देर किए इन पर काम शुरू किया जाए ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया बात कही अजय जी ये अलग बात है की क्रिकेट अधिक रोमांच का खेल बन गया है आज पर अपने राष्ट्रीय खेल की इस तरह अवहेलना बिल्कुल अनुचित है....हर जगह भेदभाव चल रहा है इन खेलों को लेकर....बढ़िया प्रसंग...धन्यवाद

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  2. मुद्दा तो गंभीर है अजय भईया ।

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  3. दिल का सौदा करने बाले अकसार घाटा ही उठाते है.
    आप भी बचके रहना कही कोई आपको राष्ट्रीय ब्लोगर घोषित नही कर दे

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  4. हॉकी में जो मजा है वह क्रिकेट में कहाँ? जब तक खेल चलता रहता है सांसें थमी रहती हैं और दिल तेज तेज चलता है।

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  5. अजय भाई,
    ज़रा चेक कीजिए, हिंदी ब्लॉगिंग को तो सरकार ने कहीं राष्ट्रीय विषयवस्तु नहीं बना दिया...बुरी नज़र उतरने का नाम ही नहीं ले रही....

    जय हिंद...

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  6. हॉकी प्रेमी है तो मगर क्रिकेट प्रेमी हाबी हैं तो बाजार के अनुरुप मामला चल रहा है.

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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