शुक्रवार, 29 मार्च 2013

कानून, सज़ा , माफ़ी और मीडिया ....आज का मुद्दा

चित्र गूगल से साभार



यदि गौर से देखें तो पाएंगे कि पिछले दो तीन वर्षों में सबसे ज्यादा चर्चा कानून के इर्द गिर्द ही घूमती रही है । चाहे वो कानून व्यवस्था की गिरती स्थिति के कारण हो या फ़िर किसी प्रस्तावित कानून पर छिडी बहस और जनांदोलन , मुद्दा हाल ही में देश को सिहरा देने वाले अपराध के एक आरोपी की कम उम्र और उसके समकक्ष नाबालिगों द्वारा किए जा रहे अपराधों को लेकर कानून में मौजूद उम्र सीमा को बढाया जाना हो या फ़िर ताज़ा ताज़ा मामला जिसमें सरकार ने सहमति से यौन संबंधों के लिए न्यूनतम उम्र सीमा को घटाए जाने का प्रस्ताव रखा और आम जनों की प्रतिक्रिया के बाद उसे दोबारा अठारह वर्ष कर दिया ,इसके साथ ही बिल्कुल समांनांतर चर्चा में रही -सज़ा, कभी आतंकियों को फ़ांसी पर लटकाने का मामला तो अब सिने अभिनेता संजय दत्त को सुनाई गई सज़ा और इनके ठीक बराबर चलता हुआ मीडिया , कुल मिला कर यही देखा जा रहा है कि फ़िलहाल देश में चर्चा , बहस मुद्दा इन्हीं विषयों के आसपास घूम रहा है।


इस देश का इतिहास गवाह रहा है कि , पश्विमी देशों की तरह यहां कानून बनाने , सुधारने और लागू करने से पहले शायद ही कभी आम लोगों को इसका भागीदार बनाया गया हो , और भागीदारी तो दूर कभी ठीक से उन्हें कानून की जानकारी तक नहीं दी जाती है , और इसकी जरूरत भी महसूस नहीं की जाती , वजहें चाहे जो भी रहती हों । शायद बहुत समय बाद किसी प्रस्तावित कानून के विरोध में न सिर्फ़ तीव्र प्रतिक्रिया हुई बल्कि जनांदोलन तक उठ गया , मगर हमेशा की तरह सत्ता और सियासत ने फ़िर से अपनी बाजीगरी दिखाते हुए जनभावनाओं को सिरे से नकार कर उस बहस की गुंजाईश ही खत्म कर दी ।

इसी बीच राजधानी में हुए एक जघन्य बलात्कार कांड ने फ़िर से अवाम को आंदोलित कर दिया और वो फ़िर से सडकों पर उतर आई , इस बार इस मांग के साथ कि इस अपराध के लिए बरसों से चले आ रही दंड व्यवस्था में फ़ेरबदल किया जाए और न सिर्फ़ बलात्कार बल्कि महिलाओं/युवतियों संग छेडछाड और उन पर तेज़ाब तक फ़ेंकने जैसे जघन्य अपराधों के लिए कानून बदलने और सज़ा को सख्त किया जाए । ये कानून अब सरकार द्वारा लागू कर दिया गया है , इसके परिणाम और प्रभावों का आकलन करना अभी जल्दबाज़ी होगी । हां इस बीच एक और कानून जुवेनाइल जस्टिस एक्ट जो नाबालिग अपराधियों व उनकी सज़ा के निर्धारण के लिए बना था उसमें नाबालिग अपराधी की उम्र जो कि वर्तमान में अठारह वर्ष से कम मानी जाती है उस पर भी बहस उठ खडी हुई । कारण ये रहा कि इसी बलात्कार कांड में सबसे हिंसक व क्रूर कृत्य करने वाले अपराधी ने खुद को नाबालिग माने जाने की अर्ज़ी लगा दी । महिला सुरक्षा को लेकर गठित जस्टिस वर्मा आयोग ने भी सभी प्रदेश के पुलिस अधिकारियों द्वारा अनुशंसित उम्र सोलह वर्ष को दरकिनार करते हुए इसे अठारह वर्ष रखने पर ही अपनी मुहर लगा दी । अधीनस्थ न्यायालय ने मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को नाबालिग ही माना और अब मामला ऊंची अदालत के विचाराधीन है ।

इधर कानून और सज़ा पर बहस चल रही थी ,जिसे और हवा दे दे एक के बाद एक लगातार दो आतंकियों को अचानक ही और अप्रत्याशित रूप से फ़ांसी की सज़ा दे देना । राष्ट्रपति तक इस पूरे प्रकरण से इतने परेशान हो उठे कि उन्होंने अचानक ही उनके पास भेजी गई अन्य दया याचिकाओं पर फ़िलहाल विचार करने में असहमति जता दी । सूचना के अधिकार का उपयोग कर किसी ने ये जानकारी ले कर सामने ला दी कि पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के कार्यकाल के दौरान किन्हें माफ़ी दी गई । इधर ये माफ़ा माफ़ी के सिलसिले में अब ये एक नया मसला भी जुड गया जब आजकल अपने तीक्ष्ण बयानों के लिए चर्चित पूर्व न्यायमूर्ति काटजू ने मुंबई हमले में सर्वोच्च न्यायालय से सज़ा सुनाए गए अभिनेता संजय दत्त एवं एक सह आरोपी महिला जेबुन्निसा के लिए माफ़ी का पत्र लिखने की वकालत की ।
मीडिया , विशेषकर भारतीय मीडिया बेहद प्रतिक्रियात्मक व्यवहार करता है , बिना आगा पीछा सोचे , किसी भी घटना , दुर्घटना , अपराध , सज़ा , फ़ैसले और बयान पर रोज़ चौबीसों घंटे प्रसारित होते रहने की मजबूरी वाले समाचार चैनल , जाने किस किस तरह के कार्यक्रम /रिपोर्टें/विश्लेषण और बहस आदि जनता के सामने लाते रहे और ये सब अब भी बदस्तूर जारी है । वास्तव में देखा जाए तो सबको आरोप के कटघरे में खडे करने की आदत से लाचार समाचार तंत्र इतनी भी संवेदनशीलता नहीं दिखा पाते हैं कि कभी ठहर कर ये सोचें कि उनके द्वारा प्रस्तुत और जैसा वे उसे प्रस्तुत करते हैं उसका क्या कैसा प्रभाव जनमानस पर पडेगा या पडा ।

देश में अपराध बढ रहे हैं , कानून भी खूब बन रहे हैं , सज़ा और माफ़ी की बहस के बीच जितनी जगह है उसमें मीडिया के लिए इतना स्थान तो आराम से निकल जाता है कि वे मज़े में बैठ कर कभी एक पक्ष से कभी विरोध पक्ष से और कभी दोनों ही ओर से लगातार अपना बाज़ार बडा करते रहें , खबरों का बाज़ार ।




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