शनिवार, 31 मई 2014

नागरिक संस्कारों पर तमाचा






तारीख 29 मई 2014 को दैनिक जागरण समाचार पत्र के संपादकीय पर ये खबर पढने के बाद भी कहीं कोई तीव्र प्रतिक्रिया नहीं आना इस देश में किसी को भी अब हैरत में नहीं डालता है । कुकुरमुत्ते की तरह लगातार उगते चले जा रहे टीवी खबरिया चैनलों में इतनी भीड बढते जाने के बावजूद भी सब एक ही लकीर के फ़कीर बने रहना चाहते हैं । कहीं कोई अलग सोच , अलग आइडिया, अलग स्टोरी नहीं । खैर , बात यहां इस खबर से उपजी दूसरी खबर की हो रही है । तो ये ऊपर की खबर का लब्बोलुआब सिर्फ़ इतना है कि एक विदेशी नागरिक ने अपने किसी देसी आदमी जो दीवार गीली करने  की सतत परंपरा का निर्वाह कर रहा था उसे ऐसा करने से टोका , तो उस भले आदमी ने विदेशी आगंतुक को एक थप्पड रसीद कर दिया । इस बात की शिकायत जब वह पीडित पुलिस के पास पहुंचा तो ..........अब पुलिस का क्या रवैय्या रहा ,इसका अंदाज़ा भी सहज़ ही लगाया जा सकता है ।



इससे कुछ समय पहले ही सार्वजनिक रूप से ऐसी क्रिया करने वालों की आदत से परेशान होकर एक सोसायटी द्वारा थक हारकर इससे निज़ात पाने के लिए दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए माननीय न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि ,"कानून लोगों की ज़िप पकड के नहीं बैठ सकता , इसके लिए नागरिकों को स्वयं ही अपने नागरिक संस्कारों को विकसित करना होगा " ।बात तो मार्के की है और इससे पहले भी इस मामले को लेकर बहुत बार टीका टिप्पणी की जाती रही है । 


यहां ये बात उल्लेखनीय होगी कि पश्चिमी देशों में नागरिक संस्कारों को अपनाने की प्रवृत्ति अब एक स्थापित परंपरा सी बन गई है । मुझे दो घटनाओं का ज़िक्र करना जरूरी लग रहा है । फ़्रांस ने अपने नागरिकों को अपने राष्टप्रेम के प्रतीक के रूप में राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना इतनी अच्छी तरह से समझाया है कि अब किसी भी फ़्रांसीसी नागरिक के अपने निजि सामान, स्थान, कार्यालय , दफ़्तर, यात्रा आदि में न सिर्फ़ राष्ट्र ध्वज की प्रतिकृति रखते हैं बल्कि उसका पूरा आदर और उस पर मान भी रखते हैं । दूसरी घटना कहां की है , नहीं पता किंतु ये है कि , एक शहर में लोगों की ये आदत उनकी सुबह की सैर में शामिल है कि वे अपने साथ एक थैली साथ रखते हैं जिसमें रास्ते में पडने या मिले सभी छोटी बडी कचरा वस्तुओं को उठा कर उसमें रख लेते हैं । इसका परिणाम ये कि शहर की सफ़ाई के लिए प्रशासन के ऊपर निर्भरता को लगभग समाप्त ही कर दिया है । 



ये सच है कि भारत , नागरिक संस्कारों के विकास के दृष्टिकोण से अभी बहुत पीछे है, और तो और ,अभी भी यात्रा में महिलाओं वृद्धों को बैठने का स्थान देना , दुर्घटना में पीडित की सहायता ,सार्वजनिक स्थानों पर मद्यपान व धूम्रपान न करने की आदत , आदि जैसी कितनी ही ऐसी आदतें हैं जो आज से और अभी से यदि आने वाली पीढी को न सिखाई जाए तो विकास की पटरी पर दौडती रेल के आसपास ये कुप्रवृत्तियां पटरी के आसपास अक्सर फ़ैली हुई गंदगी के समान ही लगेंगी । अच्छा होगा कि शैक्षिक संस्कारों के साथ स्कूल व शिक्षक अपने विद्यार्थियों में , समाज अपने सदस्यों में , और अभिभावक अपने बच्चों में नागरिक संस्कारों की छोटी छोटी आदतें मसलन , पंक्ति में धैर्यपूर्वक खडे होना , वृद्धों ,महिलाओं व बच्चों की मदद करना , सतर्क व सावधान रहना , आदि , अभी से ही भावी पीढी में रोपना शुरू कर देना चाहिए ताकि बीस पचास साल बाद देश न सिर्फ़ आर्थिक स्वावलंबन पाकर सुखी हो बल्कि नैतिक रूप से भी स्वस्थ हो । 
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