बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

चिंताजनक स्थिति में हैं देश के बाल सुधार गृह और कल्याण केंद्र


आजकल राजधानी दिल्ली में स्थित एक बाल सुधार गृह और कल्याण केंद्र चर्चा में बना हुआ है । नहीं ये कोई विशेष उपलब्धि या किसी नई योजना की शुरूआत होने के कारण नहीं है , बल्कि असलियत ये है कि पिछले एक डेढ माह में ही इस बाल आश्रय केंद्र में दुखद आश्चर्यजनक रूप से लगातार बीस बच्चों की मौत हो चुकी है । हां ये आंकडा सिर्फ़ इस वर्ष का ही है । इससे बडे अफ़सोस और दुख की बात शायद कोई दूसरी नहीं हो सकती कि देश की राजधानी में ही , उस समय जब देश में बचे हुए बाघों की संख्या पर चिंता जताते हुए उन्हें बचाने की मुहिम चलाए जाने की वकालत हो रही है , उसी समय एक बाल आश्रय केंद्र में बच्चे मर रहे हैं या फ़िर मारे जा रहे हैं ।और ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि इस तरह की खबरें आई हैं कि बाल सुधार केंद्र , नारी निकेतन, कल्याण केंद्रों आदि में रखे जाने वालों पर अत्याचार , यौन उत्पीडन, हत्या, और कई और तरह के जुल्म किए जा रहे हैं


यदि पिछले पांच वर्षों के आंकडों पर नज़र डाली जाए तो जो स्थिति सामने आती है वो न सिर्फ़ चौंकाने वाली है बल्कि कहा जाए तो भयानक है । इन आश्रय स्थलों में प्रति माह तीन से पांच बच्चे /बालिका ..नशे की लत का शिकार , दो से तीन बच्चे /बालिका .....यौन उत्पीडन का शिकार और प्रति दो तीन महीने में एक से दो बच्चे या बालिका की मृत्यु हो जाती है । इतना ही नहीं इन तमाम आश्रय स्थलों/सुधार गृहों में जीवन इतना नारकीय होता है कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता । न सिर्फ़ रहन सहन बल्कि भोजन , कपडे और दैनिक निवृत्ति के साधन भी अपर्याप्त होते हैं । स्वास्थ्य चिकित्सा आदि की घोर असुविधा के कारण गंभीर रूप से बीमार और मरने वाले बच्चों की संख्या में नियमित रूप से ईजाफ़ा होता रहता है । सबसे बडे आश्चर्य की बात तो ये है कि एक तो इन घटनाओं को पहले इन केंद्रों से बाहर नहीं आने दिया जाता है , और यदि आ भी जाती हैं तो फ़िर पुलिस और प्रशासन दोनों मिल कर इन घटनाओं की ऐसी लीपापोती करती हैं कि ऐसा लगता है कि जैसे कुछ हुआ ही न हो ।

सामाजिक कल्याण मंत्रालय जिनके अधीन ये केंद्र काम करते हैं , आरोप ये भी लगता है कि जितनी तरह के भी गैरकानूनी कार्य इन केंद्रों में किए या करवाए जाते हैं उनमें इनसे संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों की भी मिलीभगत होती है । ये हो सकता है कि सभी केंद्रो का ऐसा हाल न हो और कुछ वाकई बहुत अच्छा और सकारात्मक काम कर रहे हैं मगर जिस तरह की स्थिति सामने है उससे तो यही साबित होता है कि अधिकांश की स्थिति बहुत ही हृदयविदारक ही है । ये इस बात से भी साबित हो जाता है कि आए दिन यहां की स्थिति से डर कर , बहुत से बच्चे इसमें से भाग निकलते हैं। सरकार समाज मीडिया और आम लोगों को इन सुधार केंद्रों में हो रही गडबडियों के लिए अब गंभीरता से सोचना चाहिए । विशेषकर मीडिया को चाहिए कि वे अपने प्रयासों से ऐसी सभी घटनाओं को जनता और प्रशासन के सामने रखे



3 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई सुधार गृहों के सुधार की आवश्यकता है. मेरे घर के पास एक 'मन्द बुद्धि विकास गृह' है जहाँ कई बच्चों की मौत हो चुकी है.

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  2. ये सब दिखाने के साइन बोर्ड हैं। असल में ये सब शोषण की दुकानें हैं।

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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