सोमवार, 2 नवंबर 2009

भ्रष्टाचार : नासूर बनता एक रोग...

आज देश में एक समाज सेवक, एक सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्ति के पास ..दो हज़ार करोड की संपत्ति मिलती है । ये पैसा निश्चित रूप से आम जनता का...इस देश का पैसा ही है जो मधु कोडा ने ना जाने कब से हडपने की जुगत बना रखी थी..और हडप भी लिया था। अब जाकर ये सारा मामला सामने आया है। लगभग दो हजार करोड रुपए डकार कर बैठ गये मधु कोडा...दो हजार करोड । और ये कोई नया मामला नहीं है....अब तो ये इतनी नियमित सी घटना सी हो गई है कि ..बस एक खबर सी बन कर रह गई है ।और हो भी क्यों न ..आखिर यहां भ्रष्टाचार है ही कौन सा बडा मुद्दा । दो हजार करोड हों या पचास हजार करोड....कोई फ़र्क नहीं पडता। इस देश में यदि किसी क्रिकेट खिलाडी से मैच में कोई कैच छूट जाए तो उसके गुस्से में उस खिलाडी का घर तक जला दिया जाता है , मगर इतने बडे बडे अपराध ,भ्रष्टाचार, होते रहते हैं और आम लोग संवेदनहीन की तरह बिना कोई प्रतिक्रिया देते शून्य की तरह बने रहते हैं ।

इस देश में बिल्कुल निम्न स्तर से शुरू होकर उच्च से उच्च या कहें कि कई बार सर्वोच्च स्तर तक भ्रष्टाचार की पैठ रही है । इस देश में तो एक पूर्व प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर माना था कि भारत में भ्रष्टाचार का प्रभाव और प्रसार इतना अधिक है कि ..किसी भी सरकारी योजना का महज दो प्रतिशत ही उसके वास्तविक हकदार तक पहुंच पाता है और सारा हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ जाता है । वहीं एक से अधिक बार तो खुद प्रधान मंत्री ही दर्जनों घपलों घोटालों मे संलिप्तता के आरोपी बने । भ्रष्टाचार के संदर्भ में एक अन्य पहलू ये है कि सबसे सुलब तथा सबसे अपेक्षित भ्रष्टाचार सार्वजनिक या कहें कि सरकारी क्षेत्र में ही व्याप्त है। भ्रष्टाचार की व्यापकता और धीरे धीरे नासूरनुमा आसुरी रूप लेते जाने का सबसे मुख्य कारण है इसमें लिप्त लोगों के मन से किसी भी कानूनी कार्यवाही और सजा के डर का निकल जाना । आर्थिक भ्रष्टाचार में लिप्त आरोपियों की फ़ेहरिस्त में एक निम्न स्तर पर नियुक्त क्लर्क हो या उच्चतम स्तर पर बैठ निदेश्क , कई बार रंगे हाथों पकडे जाने के बावजूद सजा से साफ़ बच निकलना एक रिवाज सा बन गया है । इसके अलावा बडे राजनीतिज्ञ ,प्रशासक एवम अधिकारी अव्वल तो पकडे नहीं जाते , यदि कभी शिकंजे में फ़ंसते भी हैं तो अपने रसूख और पैसे की बदौलत अपनी गर्दन आसानी से बचा लेते हैं। इस आर्थिक भ्रष्टाचार के संधर्भ मे एक विचारणीय तथ्य ये है कि किसी भी प्रकरण में इनके पास से दबाया गया धन किसी भी प्रकार से निकल नहीं पाता है। इसका परिणाम ये होता है कि अनैतिक तरीके से और बेइमानी से अर्जित धन का उपयोग खुद को बचाने में बखूबी कर लेते हैं। जबकि अन्य देशों में भ्रष्टाचार में लिप्त आरोपियों पर दंडात्मक कार्यवाही के साथ साथ उनकी संपत्ति भी जब्त कर ली जाती है । पडोसी देश चीन तो भ्रष्टाचार को एक बेहद संगीन जुर्म के रूप में देखता है । पिछले वर्ष सरकारी सहायता राशि में गडबडी के दोषी पाए जाने वाले एक भूतपूर्व गवर्नर ..जिसकी उम्र लगभग ७५ साल थी , उसे भी फ़ांसी की सजा सुना दी । इतन ही नहीं सार्वजनिक सेवा के १६ हजार ६०० कर्मचारियों को एक ही दिन नौकरी से निकाल बाहर कर दिया गया।

अभी कुछ समय पूर्व ही इसी स्थिति को देखते हुए ..सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश महोदय ने किसी मुकदमे की सुनवाई के दौरान तल्ख टिप्पणी की थी ," अफ़सोस कि यहां का कानून इस बात की इजाजत नहीं देता, किंतु भ्रष्टाचार की व्यापकता को रोकने के लिए अब यही उपाय बचता है कि सभी दोषियों को चौराहे पर खडे किसी खंबे पर लटका देना चाहिये "। भ्रष्टाचार की समाप्ति में एक अन्य बधा है ईमानदार एवं प्रतिबद्ध व्यक्तियों की कमी । जैसा कि कहावत है कि सौ बेईमानों पर एक ईमानदार भारी पडता है इसलिये ये स्थिति तब सह्य है , किंतु ये दुखदायी तब बन जाती है जब दुव्यवस्था से अकेला लडता कोई ईमान्दार व्यक्ति पूरे भ्रष्टाचारी तंत्र का निशाना बन जाता है । किसी ईमानदार व्यक्ति द्वारा भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ़ खडे होकर काम करने को प्रोत्साहित करना तो दूर पूरा तंत्र के इस प्रयास में लग जाता है कि या तो उसे भी किसी भी तरह से भ्रष्टाचार के दलदल में घसीट लिया जाए या फ़िर रास्ते से ही हटा दिया जाए।

भ्रष्टाचार को , विशेषकर उच्च स्तर के भ्रष्टाचार पर नजर रखने एवं नियंत्रित करने के उद्देश्य से गठित केंद्रीय सतर्कता आयोग भी प्रभावहीन ही रहा ।कई बार सार्वजनिक रूप से भी अधिक अधिकारों की मांग करने वाले सि आयोग को महज औपचारिकता निभाने भर के लिये रखा हुआ है । इसी तरह कुछ वर्ष प्रधानमंत्री ने भ्रष्टाचार एवं अनियमितताओं को रोकने और सभी शिकायतों को सुनने व उसके त्वरित निपटारे हेतु एक विशेष प्रकोष्ठ के गठन की घोषणा की थी जो जल्दी ही सफ़ेद हाथी सिद्ध हुआ । भ्रष्टाचार को खत्म करने के उपायों में जिस उपाय को सबसे ज्यादा कारगर माना गया है वो है भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को सार्वजनिक करना । पिछले कुछ वर्षों में निजि टीवी समाचार चैनलों ने गुप्त रिपोर्टिंग और स्टिंग करके ..एक के बाद न जाने कितने दफ़तरों का कच्चा चिट्ठा खोला था । इसका एक तत्काल असर तो ये हुआ कि चाहे कैमरे के डर से ही सही..उसमें कुछ कमी तो आई ही । भ्रष्टचार को हटाने में दूसरी प्रभावी सहायक हो सकती है शिकायत पुस्तिका । भ्रष्टाचार उन्मूलन से ा संबंधित एक सम्मेलन में कहा गया कि यदि इन शिकायत पुस्तिकाओं का समुचित उपयोग एक हथियार की तरह किया जाए तो लगभग चालीस प्रतिशत तक भ्रष्टाचार को कम किया जा सकता है । ये चेतने का समय है ...यदि अब भी न चेते तो ...परिणाम आत्मघाती साबित होंगे ।

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