सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

आतंकी हमलों से कोई सबक नहीं लेता




अभी तो भारत पाक रिश्तों को फ़िर से बुने जाने की कवायद शुरू भी नहीं हुई थी कि पुणे में एक आतंकी हमला हो गया । देश के अलग अलग भागों में नियमित अनियमित रूप से होने वाले ये हमले अब तो एक नियति से होकर रह गए हैं । इस बार मुंबई की जगह पुणे हो गया । और इस बार भी पिछले सभी आतंकी हमलों की तरह एक स्थाई सी परिचर्या निभाई जा रही है । हमलों के समाचार , कुछ घटिया सी एक्सक्लुसिव खबरें , चीख पुकार के बीच राजनीतिक प्रपंचनुमा राहत और मुआवजा घोषणाएं , बीच बीच में एक आध बार आर पार की लडाई का सडांध मारता नारा भी , और फ़िर सब कुछ सिर्फ़ तब तक याद रखा जाएगा जब तक कि कोई दूसरी बडी खबर न हो देखने सुनने के लिए । जी हां , अब ये सब सिर्फ़ एक खबर ही तो बन कर रह गई हैं सबके लिए । हालांकि इस बार तो इसे इस बात से भी जोड कर देखा जा रहा है कि पुलिस प्रशासन , पिक्चर की सुरक्षा में इतनी तल्लीन हो गई कि सुरक्षा की तरफ़ से चूक गई । मगर इस तथ्य से कोई इत्तफ़ाक इसलिए नहीं रखा जा सकता कि यदि उस दिन पुलिस और प्रशासन ऐसे किसी काम में व्यस्त नहीं होती तो ये हमला रुक सकता था ।

असल में तो चाहे लाख उपाय किए जाएं , चाहे कितनी भी सुरक्षा नीतियां अपनाई जाती रहें , एजेंसियों की सर्तकता से इनमें थोडी कमी तो आ सकती है , मगर जिस तरह से इन दिनों आत्मघाती हमलों की प्रवृत्ति बढती जा रही है उसमें तो फ़िर किसी भी तरह से इन पर पूरी तरह काबू पा लेना बहुत ही कठिन काम है ।सबसे बडी बात तो ये है कि इन आतंकी घटनाओं से आज तक कभी भी कोई सबक नहीं सीखा गया है ,और शायद ऐसा इसलिए भी है क्योंकि इन हमलों में अक्सर आम लोग ही मरते रहे हैं । ये माना जा सकता है कि ऐसी आतंकी गतिविधियों को न तो रातोंरात रोका जा सकता है न ही पूरी तरह से इन्हें खत्म किया जा सकता है । मगर ये सोच कर खामोश बैठ जाना दूसरी सबसे बडी गलती होगी ॥इसलिए ये तो हो ही सकता है कि इन्हें बढावा सरंक्षण देने वालों से न सिर्फ़ पूरी सख्ती से निबटा जाए बल्कि उनसे किसी भी तरह की कोई शिकायत , कोई बात नहीं की जाए । इससे बेहतर तो ये होगा कि ऐसे सभी आतंकियों को उनके किए की इतनी कठोर सजा दी जाए कि इससे कम से कम उन लोगों में ये भय तो हो कि इतना सब करने के बाद भी उनका कुछ बिगडने वाला नहीं है । पिछले कुछ वर्षों से अफ़जल कसाब जैसे आतंकियों को यहां सहेज कर रखे जाने का औचित्य उस आम जनता के समझ में नहीं आता जो इन हमलों का शिकार होती रही है






2 टिप्‍पणियां:

  1. जन सुरक्षा, आतंकियों से निपटना और शांति स्थापना के प्रयास ये सब काम एक साथ करने होंगे।

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  2. jagah badal jati hai, magar logon ki chikh pukaar nahi, jab tak koi thos kadam govt. nahi uthati, tab tak ye aisse hi chalta rahega.

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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