एक बार फ़िर से भारत पाक रिश्तों को पटरी पर लाए जाने की कवायद शुरू हो चुकी है । दोनों देशों के सचिव स्तर की वार्ता के लिए संभावनाएं तलाशी जा रही हैं ,और वे मुद्दे तय किए जा रहे हैं जिनपर बातचीत होनी है । विकास के इस दौर मेम य़ॆ आवश्यक सा लगता भी है कि पडोसी राष्ट्रों के साथ संबंध शांतिमय और विवादरहित हों और इसके लिए किए जा रहे प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए । मगर देश के आम नागरिक की तरह सोचा जाए तो मन में कुछ सवाल तो उठते ही हैं । मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद से अब तक आखिर पाकिस्तान की तरफ़ से ऐसा क्या हुआ या किया गया है कि पाकिस्तान को वार्ता की मेज पर आमंत्रित किया जा रहा है । उस हमले में पाकिस्तान की भूमिका पर जो सवाल उठाए गए थे क्या उनका जवाब भारत सरकार को मिल गया है जो इस वार्ता के लिए इतनी बेसब्री दिखाई जा रही है । यदि ये वार्ता अभी नहीं होती है तो भारत का ऐसा कौन सा नुकसान हो जाएगा जिसकी भरपाई के भय से भारत इस शांति वार्ता के लिए तैयार हो रहा है । क्या अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों का कोई प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष दबाव भारत को इस शांति वार्ता में बैठने के लिए मजबूर कर रहा है ?शांति वार्ता होनी चाहिए और वर्तमान परिस्थितियों में तो ये बहुत जरूरी भी है कि सबके साथ संबंध मधुर बना कर चला जाए । किंतु किसके साथ ये भी तो देखना ही होगा । सरकार को अपने देशवासियों को ये बताना चाहिए कि वे कौन से कारण हैं कि जो भारत को पाकिस्तान के साथ आर पार की लडाई की स्थिति से सीधा शांति वार्ता तक खींच लाए । सरकार को ये भी तय करना होगा कि बार बार ऐसे शांति प्रयासों, समझौतों, शांति वार्ताओं की आड में सबका ध्यान भटकाने के बाद पीठ पीछे हमेशा ही कोई न कोई आतंकी हमले की साजिश की जाती रही है । राजनीतिज्ञ आराम से सब कुछ भुला कर शांति वार्ता की मेजों पर जा बैठते हैं कोरे आश्वासनों और दावों के आधार पर भविष्य में शांति और सौहार्द के सपने दिखाए जाने लगते हैं , मगर हर बार अपनों को खोता आम आदमी कैसे इतनी जल्दी और बार बार ये सब कुछ भूल जाए ?इतिहास गवाह रहा है कि पाकिस्तान हमेशा ही दोहरे चरित्र वाला रुख अपनाता रहा है और सबसे बडी बात है कि अब तो ये भी साबित हो चुका है कि जिन आतंकी संगठनों और अलगाववादियों की तरफ़ से पाक अधिकारी और राजनेता भविष्य में किसी आतंकी हमले न किए जाने का आश्वासन दे देते हैं , वे खुद इन पाक अधिकारियों और सरकार का कहना नहीं मानते । आज तालिबान ने पाकिस्तान की जो हालत की हुई है वो किसी से छुपी नहीं है । सरकार को इस वार्ता की शुरूआत करने से पहले ये तो बताना ही होगा कि एक तरफ़ तो भारत विश्व शक्ति बनने के दावे कर रहा है, तो दूसरी तरफ़ अब भी अपने पडोसी देशों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों का बनना बिगडना अमेरिका ब्रिटेन फ़्रांस जैसे देशों की पहल और दबाव पर निर्भर करता है । यदि सरकार इन सब बातों को स्पषट रूप से जनता के सामने नहीं रख पाती है तो फ़िर हमारी समझ से सरकार को कोई हक नहीं बनता कि आनन फ़ानन में शांति वार्ता में कूद जाए ॥
शनिवार, 13 फ़रवरी 2010
भारत पाक के बदलते रिश्ते
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आप की बात सही है।
जवाब देंहटाएंांअज तो बहुत गम्भीर मुद्दा उठाया है सही बात है धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंBada sanjeeda aalekh hai..sochne pe majboor karta hai..
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