रविवार, 5 जुलाई 2020

महामारी के बाद




इस शताब्दी के शुरुआत में ही विश्व सभ्यता किसी अपेक्षित प्राकृतिक आपदा का शिकार न होकर विरंतर निर्बाध अनुसंधान की सनक के दुष्परिणाम से निकले महाविनाश की चपेट में आ गया |  किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि कभी इंसान की करतूत उसके लिए ऐसे हालात पैदा कर देंगे जब कुदरत के माथे ,इंसान के विनाश का दोष नहीं आकर खुद उसके हिस्से में ये अपराध आएगा | 

अभी तो इस महारामारी की सुनामी से उबरने निकलने की ही कोई सूरत निकट भविष्यमे निकलती नहीं दिखाई दे रही है किन्तु समाज का हर वर्ग, विश्व का हर देश , प्रशासन , अर्थशास्त्री अभी से ये आकलन करने में लग गए हैं की महामारी के वैश्विक परिदृश्य के क्या हालात होंगे ? वैश्विक समाज और विश्व अर्थव्यवस्था किस ओर मुड़ेगी | विश्व महाशक्तियों के आप सी संबंधों का समीकरण क्या और  कितना बदल जाएगा ? सामरिक समृद्धता  के लिए मदांध देश क्या इस महामारी के बाद भी शास्त्र-भंडारण की ओर ही आगे बढ़ेंगे या फिर चिकित्स्कीय संबलता की ओर रुख करेंगे ये देखने वाली बात होगी | 

चिकित्स्कीय अनुसंधान के विश्व भर के तमाम पुरोधाओं को अभी तक कोरोना को पूरी तरह समझ उसका कारगर और सटीक तोड़ निकालने में सफलता हासिल हो सकने की फिलहाल कोई पुख्ता जानकारी नहीं है | तो अब जबकि पूरे विश्व को इसकी चपेट में आए छ महीने से भी अधिक हो चुके हैं और इसका प्रवाह और प्रभाव दोनों ही रोके से रुक नहीं पा रहे हैं | ऐसे में समाज शास्त्री अपने अध्ययन की दिशा उसी और मोड़ चुके हैं जब कोरोना के बाद महसूस की जाने वाली चुनौतियों से समाज को जूझना पडेगा , उन्हीं बातों का आकलन विश्लेषण किया जा रहा है | 


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | समाजशास्त्र का यह सिध्दांत सूत्र भी  सर्वथा प्रतिकूल होकर रह गया  है | मनुष्य आज अपने सही गलत अन्वेषणों ,प्रयोगों का दुष्परिणाम यह उठा रहा है कि अपने ही समाज में रहते हुए अपने ही समाज से निषिद्ध होने को विवश हो गया है | समाज शास्त्र का दूसरा सूत्र कि ताकतवर या मजबूत के ही बचे रहने या  उसके अपने अस्तित्व को बचाने के संघर्ष चक्र में ,उसके परिस्थितियों से लड़ कर पार पा जाने की सम्भावनाएँ ही अधिक प्रबल होती हैं | इस मिथक को भी इस महामारी ने इस अर्थ में तोड़ा कि विश्व के तमाम शक्तिशाली देश इस महामारी की चपेट में आकर त्रस्त पस्त हो चुके हैं और अब भी इन पर कोरोना का कहर बरप रहा है | 

आज विश्व समुदाय ने इस अलप समय में ही देख लिया कि एक सिर्फ इंसान को थोड़े दिनों तक प्रकृति से मनमानी करने से अवरुद्ध किए जाने भर से प्रकृति ने इतने ही दिनों में खुद कि स्थति कितनी दुरुस्त कर ली | तो इस महामारी ने यह भी बता दिया कि इंसानी सभ्यता को हर हाल में प्राकृतिक तारतम्यता व् सामंजस्य का सिद्धांत ही अपनाना होगा | 

इंसान घरेलू प्राणी है ,यह एक बार फिर प्रमाणित हुआ | जिस तरह से आपदा की आहट  सुनते ही विश्व से लेकर देश के अंदर भी एक प्रांत से दूसरे प्रांत में लोगों ने अपने घर , अपनों के पास जाने का जो ये प्रवाद दौर वर्तमान में हुआ है वो इतिहास में हुए बहुत से असाधारण विस्थापनों में से एक है | अपने रोजगार और भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए गाँव की बहुत बड़ी ,आबादी  पलायन/विस्थापन का शिकार दशकों पहले शुरू हुई थी | गाँव ,कस्बों से शहर ,नगर और महानगर बसते  बढ़ते रहे और गाँव खाली होते चले गए | शहरों में  आ कर सालों तक सिर्फ जीने के अस्तित्व संघर्ष में उलझा ये ग्राम्य समाज क्या अपने गाँव घरों में अपने जीवन यापन के विकल्प तलाशेगा ? 

बिहार ,उत्तर प्रदेश ,बंगाल ,उड़ीसा का मान संसाधन विकास सूचकांक प्रदर्शन दशकों से ही बहुत पिछड़ा रहा है | ऐसी आपदाओं के समय इन राज्यों का प्रशासन और प्रबंधन क्या ,किता विकास कर सका , क्या कितना सीख पाया ये हालत भी इन्हें परिलक्षित करते हैं | महामारी के रूप में सामने आए इस अपर्याताशित आपदा और ऐसी दूसरी आपत्तियों के समय ही व्यवस्थाओं की असली परख होती है और अभी यही परख हो रही है | 

ये महामारी काल कितना लंबा खिंचेगा अभी तो यही तय नहीं है किन्तु इसके बाद वाले समय में विश्व का सामाजिक ,आर्थिक और भौगोलिक समीकरण भी परिवर्तित होकर नए  मापदंड  स्थापित करेगा ये तय है | 
वैश्विक महाशक्तियों यथा अमेरिका ,चीन ,फ्रांस ,रूस ,इटली  जैसे देश अलग अलग स्थितियों परिस्थितयों में खुद को विश्व फलक पर पुनर्स्थापित करने की जद्दोज़हद के बीच अविकसित और विकाशील देश भी इस महामारी के प्रभाव से उबरकर खुद को बचा पाने के लिए नए सिरे से संघर्षशील होंगे | 

भारत इस महामारी के विरुद्ध  विश्व के अन्य देशों की तुलना में अब तक इस लड़ाई में सम्मानपूर्वक अपने लोगों को यथासंभव बचा सकने के कारण वर्तमान में पहले ही अगली पंक्ति में आ चूका है | विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष पद पर किसी भारतीय का चयन , संयुक्त राष्ट्र परिषद् के अस्थाई सदस्य  के रूप सर्वाधिक मतों से चयन , ने इस ओर स्पष्ट ईशारा कर भी दिया है | इस बीच चीन को मिल रही वैश्विक नकारात्मक प्रतिक्रया के कारण वहां से पलयान को उद्धत उद्योग परियोजनाएं आदि की पहली प्राथमिकता भारत ही होगा | इसकी शुरुआत भी करीब करीब हो चुकी है | 

मंगलवार, 5 मई 2020

देश्बंदी का तीसरा चरण और कोरोना का तीसरा स्टेज


शराब के लिए लगी ही लाइन 



अचानक से बिना किसी बहुत बड़ी योजना को बनाए  , बिना किसी ठोस चिकित्सकीय तैयारी के , और बिना किसी बहुत अचूक औषधि के देशबंदी को तीसरे विस्तार दिए जाने के बावजूद जिस तरह से पिछले इतने दिनों से इस लड़ाई से लड़ने के लिए जो लोग अपने अपने घरों में बंद होकर देश प्रशासन और समाज और खुद को भी बचाए रखे हुए लोगों की भावनाओं और उनकी जान के साथ खिलवाड़ किया गया और जा रहा है |


यदि एक पल को उसे मैं भूल भी जाऊं तो भी जब मैं उन हज़ारों चिकित्सकों , नर्सों , पुलिस वालों और कोरोना की लड़ाई में अपनी जान की बाजी स्वेच्छा से लगाने वालों और उनके घर परिवार वालों के बारे में सोच कर यही समझ पा रहा हूँ कि इस भूल .व्यग्रता ने उनकी मुश्किलें कितनी बढ़ा दी हैं | 

दूसरी तरफ विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकार का भी , अब रोजाना बहुत तेज़ी से कोरोना पीड़ितों की बढ़ रही संख्या , मौत के बढ़ते आंकड़ों के प्रति दिखाई जा रही उदासीनता भी बहुत ही निराशाजनक है  | 

और फिर सरकारों को ही अकेले क्यूँ दोष दिया जाए जो देश अभी कुछ दिनों पहले तक रामायण देख कर लहालोट हुआ जा रहा था ऐसा जता और बता रहा था मानो राम राज्य आ ही गया  | समाज के गरीब मजदूर को बढ़ चढ़ कर खिलाते हुए दया का सागर बना हुआ था वही समाज वही लोग शराब की दुकानें खुलते ही अपने असली रंग अपने असली चरित्र में आ गया |


मैं ये सोच रहा हूँ की विधाता आखिर अब इस संसार को बचाए ही क्यूँ  ? टिक टॉक के वीडियोज बनाने के लिए या फिर पूरे संसार को शराब के महासमुद्र में तैर कर वैतरणी पार करने के लिए | 

आज ये संसार अपनी नियति खुद तय कर रहा है और हमेशा की तरह इसमें वो भी शामिल होंगे जो इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से भागीदार और जिम्मेदार नहीं हैं | हमें इससे और बहुत ज्यादा से भी बहुत अधिक बुरे और भयानक के लिए तैयार हो जाना चाहिए | 

रविवार, 19 अप्रैल 2020

वक्त सब कुछ अपने आप तय कर देगा





समय सबको अवसर दे रहा है ,कोई राम चुन रहा है कोई रावण। कोई धर्म चुन रहा है कोई पाप। कोई देश चुन रहा है कोई मज़हब। कोई नियम चुन रहा है कोई पत्थर। होने दीजिये जो हो रहा है। बोलने दीजीये जो बोल रहा है। उठ जाने दीजिए सारे नकाब उतर जाने दीजिए सारे बुर्के नुमा जाले।


जाहिलों नंगों की पहचान तो उनकी हरकतों से उनकी मंशा से कई बार तो उनके चेहरे मोहरे से भी हो जाती है ,पहचानिये उन्हें जो थाली के बीच के बैंगन की तरह दोनों तरफ हैं और असल में कहीं भी नहीं हैं। वो हैं देश के समाज के असली दीमक जो आपके साथ बैठ कर आपके साथ बोल कर आपकी ही सोच को खोखला करने का प्रयास करते हैं।

वे उन उजागर शत्रु मानसिकता और व्यवहार वालों से कहीं ज्यादा घातक और निकृष्ट हैं जो अभी तक ये नहीं तय कर पाए हैं कि असल में क्या वे यही सब कुछ अपने परिवार अपने बच्चों आने वाली नस्लों के जिम्मे भी छोड़ कर जाएंगे।

और ये आज और अभी करना या होना इसलिए भी जरूरी है क्यूंकि ये बीमारी न भी आती तो भी देश पिछले कुछ समय से एक बहुत बड़े वायरस के पूरी तरह उजागर हो जाने से जूझ तो रहा ही था। कुछ मत भूलियेगा , न राम मंदिर , न धारा 370 ,न कश्मीर , न नागरिकता न ही दिल्ली के दंगे।

सब कुछ याद रखिये और तब तक याद रखिये जब तक अब सब कुछ आर पार न हो जाए। नहीं तो हमारी आने वाली नस्लें उनके सामने भविष्य में आ रही नई मुश्किलों के अतिरिक्त विरासत में मिली इन मुश्किलों को भी निर्णायक रूप से ख़त्म न कर पाने के लिए हमें कटघरे में जरूर खड़ा करेंगी।

सोमवार, 13 अप्रैल 2020

कोरोना से सीखे जाने वाले सबक






बावजूद इसके कि सिर्फ पिछले कुछ दिनों में , ज्यादा ज्ञानी लोगों द्वारा पूरे देश के कई दिनों के धैर्य और अनुशासन पर बट्टा लगा कर उसे बहुत बदतर करने की कोशिश की गई ,इसके और ऐसे अनेक कोशिशों के बावजूद भी देश पश्चिमी देशों के हाहाकारी स्थिति से इतना बेहतर है कि उसकी तुलना नहीं की जा सकती और अगले दस दिनों के बाद जो दिन निकलेगा वो भारत का नया दिन ,नई उम्मीद का दिन होगा लेकिन इस सबके बीच जो घटा है वो बहुत बड़ा सबक बन कर न सिर्फ देश बल्कि विश्व भर के सामने होगा।

कोरोना संकट ने साबित किया कि ये देश जो हिन्दुस्तान है ये यूँ नहीं बरसों से गाता फिर रहा है कि ,कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी और न ही कभी ,कभी भी मिटेगी। 

इसे ये साबित किया कि बेशक दुनिया हमें विकासशील , गरीब देश समझे देखे लेकिन ऐसे समय पर जब पूरी दुनिया घुटने टेक कर खडी हो गयी है उस वक्त भी ये देश अपना मस्तक ऊँचा किये शांति से इन झंझावातों में दीपक लिए खड़ा हुआ है। 

इसने ये साबित किया कि इंसान की औकात प्रकृति के आगे एक पशु पक्षी से भी कम है इसलिए इंसानियत को बचाए रखना जरूरी है क्यूंकि सिर्फ और सिर्फ वही जरूरी है दुनिया के लिए। 

इसने ये भी साबित किया कि ,रे मूरख इंसान तेरे पैसे धन दौलत सोना चांदी ताबीज माला कोई भी कुछ भी ऐसा नहीं है जो तुझे मौत से बचा सकेगा बचाएगी तो सिर्फ इंसानियत और इंसान। 

इसने ये भी साबित किया ऐसे कठिन समय में कैसे इंसान इंसान के काम आया उसने किसी आसमानी फ़रिश्ते का किसी जादुई करिश्मे का इंतज़ार नहीं किया और एक दूसरे के भरोसे को कायम रखा और जिंदगी को भी। 

इसने ये साबित किया की इंसान कितनी ही दुनिया घूम ले ,कितना ही हवा में उड़ ले आखिरकार अपनी ज़मीन अपने घर को ही लौटना होता है और सबको वहीं लौटना होगा। 

इसने ये भी साबित किया महानगरों में दिन रात लोगों की जरूरत पूरा करने वाले गरीब मजदूर आज सत्तर साल बाद भी किसी सरकार समाज प्रशासन के लिए उपेक्षित और दोयम दर्ज़े का इंसान ही बना रहा जिसे जब चाहा दूध में मक्खी की तरह निकाल फेंका जाता रहा है.

इसने ये भी साबित किया कि हमारी पुलिस ,हमारा प्रशासन ,हमारे चिकित्सक ,सफाईकर्मी पूरी दुनिया के सबसे प्यारे सबसे जुझारू और सबसे बहादुर लोग हैं जो हमारे बीच के ही हैं जिनकी अहमियत हमें ऐसे समय में ऐसी विपदा में ही समझ आई है। 

इसने ये भी साबित किया कि हमें हमारे बच्चों को उनके भविष्य की चुनौतियों के लिए कैसे और किस हद तक तैयार करना है और ये काम आज और अभी से करना है। 

इसने ये भी साबित किया कि दो बार प्रचंड जनादेश से अपने नायक को चुनने वाली अवाम के निर्णय में किसी बैलेट बॉक्स का जादू नहीं था ये सबका एकमत था जो अपने अगुआ की एक आवाज़ पर खुद को तालों में कैद करके एक दूसरे का हाथ और साथ थामे रही। 

और इसने ये भी साबित किया कि इस देश की राजधानी समेत बहुत सारे शहरों नगरों में हमारे ही बीच में से कुछ लोग ,चाहे किसी भी कारणों से देश के विरूद्ध ,मानवता के विरूद्ध और पूर्वाग्रह के कारण ,किसी भी और कैसी भी बात में नकारत्मकता न सिर्फ तलाश सकते हैं बल्कि अपने साथ सबको निराशा के गर्त में डुबोने की कोशिश करते हैं। 

और आखिर में इसने ये साबित किया कि ये देश जो आज का भारत और कल का हिन्दुस्तान है ये अब विश्व गुरु बनने की राह पर अग्रसर है और पूरी ठसक और धमक के साथ दुनिया का सिरमौर बन कर उभरेगा। 
जय हिन्द ,जय हिन्दुस्तान ,जय हिन्दुस्तानी। 

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

कैसा कौन सा न्याय दिवस -देर आयद दुरुस्त आयद

          





     इस देश का मौजूदा कानून अपने आप में एक गाली है बाक़ी तो सब निमित्त मात्र हैं | आज सात साल के इंतज़ार के बाद देश में हुए और हो रहे अत्यंत दुर्दांत बलात्कार में से एक बेटी के दोषियों को जैसे जैसे सज़ा पर टँगवा कर देश को जबरन "न्याय दिवस " मनवा कर जाने कौन क्या हासिल कर पा रहा है | 

कानून की बात पूछ रहे हैं आप तो सुनिए फिर ,मौजूदा कानून के तहत सात वर्षों तक जो गुमशुदा हो (यानि मुकदमे का फैसला ) उसे मृत घोषित किया जा सकता है ,और फिर कानून की आत्मा तो उसी दिन उसी समय चीत्कार मार उठी होगी और ऐसे हर अपराधी को बिना सजा पाए छूटते देख मारती होगी जो अपराध कारित करने वालों में सबसे अधिक नृशंस और हैवानियत से भरे होने के बावजूद नाबालिग और  मासूम करार दिए जाने के कारण फांसी तो दूर एक दिन भी जेल नहीं काटते ,ऊपर से सरकार यदि टिक टॉक वीडियो बनाने वाली हो तो फिर सिलाई मशीन , कारखाना और जाने क्या क्या देकर सितम ढाती है उन मासूमों पर | 

लटक गए चारों ,देर आयद दुरुस्त आयद | लेकिन निर्भया देश की एक अकेली बेटी नहीं थी ,नहीं है जिसकी रूह पिछले जाने कितने महीने सालों से इस समाज से सिर्फ एक बात पूछती है ,"बताओ हम बेटियों का क्या कसूर था /है | 

यूं भी अदालतें जब फैसला सुनाती हैं और इन्हें कानूनी भाषा में न्याय कर समाज पर चस्पा किया जाता है उन फैसलों से विवाद और अपराध ख़त्म नहीं होते | ये ख़त्म होते हैं -समाधान से | वर्तमान में जब समाज का हर कारक और हर वर्ग अपने पत्तन के सबसे निचले पायदान पर है तो ऐसे में इतनी देर से भी सही मुजरिमों को उनके किये की सज़ा दिलवा पाना ही एक बहुत बड़ी बात लग रही है |

आप निश्चिंत रहें ऐसे बहुत से फैसले एकसाथ मिल कर भी वो नहीं कर सकते हैं जो समाज खुद अपने निर्णय ,अपने व्यवहार और अपनी बंदिशों से कर सकता है और इसके लिए फिलहाल समाज के पास वक्त नहीं है उसे बहुत तेज़ ,और तेज़ और तेज़ भागना है | 




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