बुधवार, 10 अप्रैल 2024

भ्रष्टाचार के दलदल में फंसी : केजरीवाल एन्ड पार्टी

 







जी हाँ अब तो लोगबाग भी , कभी लोगों के बीच से ही अचानक किसी सिनेमाई अंदाज़ में सीधे दिल्ली की बागडोर थाम कर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी , को इसी नाम से बुलाने लगे हैं , केजरीवाल एन्ड पार्टी।  और ऐसा इसलिए है क्यूंकि जनलोकपाल लाकर राजनैतिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की मांग और उद्देश्य से गढ़ी गई पार्टी ,के शुरूआती जुझारू लोग जो समय रहते ही सब कुछ भांप समझ कर अलग हो गए थे उसके बाद बचे तमाम बड़े राजनेता , और किसी आरोप में नहीं बल्कि भ्रषटाचार से अवैध धन कमाने और उसके दुरुपयोग में एक एक करके जेल जा रहे हैं और लाख दलीलों और तर्कों के बावजूद भी अदालत को अपनी बेगुनाही के इरादे से भी संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं।  

आज आम आदमी पार्टी और इसके मुख्य बचे हुए संयोजक , बचे हुए इसलिए क्यूंकि कभी , इसी भ्रष्टाचार के विरूद्ध शुरू किये गए तथाकथित संघर्ष के प्रणेता अन्ना हज़ारे और सभी बेहतरीन साथी , पूर्व प्रशानिक अधिकारी किरण बेदी , पूर्व न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े , साहित्यकार कवि कुमार विश्वास , सामाजिक आंदोलनकारी योगेंद्र यादव , राजनैतिक साथी कपिल मिश्रा और तमाम वो लोग जिन्हें कहीं न कहीं और कभी न कभी ये एहसास हो गया था कि सब कुछ वैसा नहीं है जैसा लोगों को दिखाया और बताया जा रहा है , वे सब धीरे धीरे अरविन्द केजरीवाल का साथ छोड़ते गए और इस जगह को भरने के लिए आए कौन , संजय सिंह और भगवंत मान जैसे राजनेता , इसका दुष्परिणाम सामने ही है।  




अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी की खबर पर अपनी गैर जरूरी प्रतिक्रिया देने वाले और बाद में बुरी तरह से फटकार खाने वाले पश्चिमी देशों के साथ साथ देश और दिल्ली को भी ये जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि एक तरह जो राजनैतिक दल , बाकायदा अपने चेहरे और अपनी बात कहने के लिए लाखों रुपये प्रचार प्रसार पर खर्च कर रहा था और बार बार ये जता और बता रहा था कि , राजधानी दिल्ली की शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था में , पार्टी और उसकी नीतियों या परिवर्तनों के कारण क्रांतिकारी बदलाव आए और लाए गए , और फिर रात के अँधेरे में यही अच्छे लोग , अच्छी सोच और नीयत वाले लोग , अचानक से शराब बेच कर और बेच कर नहीं बल्कि शराब बेचने खरीदने और पीने की होड़ लगाकर पैसा जुटाने की जुगत में लग गया।  

फिलहाल जो स्थिति आम आदमी पार्टी के तमाम उन राजनेताओं की , जिनका या जिन जिन का इस शराब बेचने के नियम कायदे को बदल कर पैसा बनाने के शर्मनाक अपराध से थोड़ा सा भी तालमेल निकल सकता है , उन सबको अपने ऊपर कानून की तलवार लटकती दिख रही है और जो इस अपराध को रचने और करने के प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए हैं वे सब निरंतर अपने ऊल जलूल तर्कों और बहुत सी गैर जरूरी याचिकाएँ लगा लगा कर निरंतर इस दलदल में नीचे को ओर धँसते जा रहे हैं।  आश्चर्य इस बात पर भी होता है कि आम आदमी पार्टी के तमाम राजनेताओं की पैरवी कर रहे हैं अधिवक्ता अभिषेक मनु शिंगवी ,जो कांग्रेस के जाने माने नेता हैं , वही कांग्रेस जिसे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सिरे से ठिकाने लगाया था , गांधार नरेश शकुनि ने कुरु साम्राज्य से बदला लेने के लिए ही महाभारत करवाया था कहते हैं , बाकी तो सब वही जाने।  


सोमवार, 1 जनवरी 2024

कई सुधारों की दरकार में : कारागार प्रशासन व्यवस्था

 





अभी हाल ही में सुर्खियों में आया समाचार जिसमें एक फोन निर्माता कंपनी के मालिक जो एक आर्थिक अपराध में तिहाड़ केन्द्रीय कारागार में निरुद्ध है , आरोपी हरिओम राय से जेल में सुविधा दिए जाने के नाम पर जेल कर्मियों ने डरा धमका कर  पांच करोड़ रुपये वसूल लिए।  चिंताजनक  बात यह नहीं है कि देश की राजधानी दिल्ली और कभी आदर्श कारागार के रूप में माना जाने वाला तिहाड़ प्रशासन पर इस तरह से से आरोप लगा है।  

गंभीर बात तो ये है कि एक के बाद एक राजनेता सत्येंद्र जैन से लेकर ठगी के आरोपी सुकेश चंद्रशेखर जैसे कारागार में पहले से निरुद्ध आरोपियों ने जेलकर्मियों द्वारा इसी तरह के और इससे भी कई तरह के गम्भ्भीर अनुचित क्रियाकलापों की शिकायत की है।  ध्यान देने की बात ये भी है की है प्रोफ़ाइल विचाराधीन  बंदियों/आरोपियों से जेल कर्मियों द्वारा उगाही की ये कुछ वो घटनाएं हैं जो जाने अनजाने समाचार माध्यमों में आ गईं।  दूसरी ये कि जब आर्थिक कदाचार/भ्रष्टाचार आदि मामलों के ऐसे हाई प्रोफ़ाइल बंदियों के साथ यह सब घटित हो रहा है तो ऐसे में साधारण कैदियों की दशा का अनुमान लगाना सहज है।  

कारागारों की छवि किसी भी काल में समाज में अच्छी नहीं रही है किन्त ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में कारागार -यातना, सामूहिक दंड और मृत्यु दंड देने की कोठरी बन कर रह गई थी।  जेलों की अमानवीय हालातों को राजनैतिक बंदियों द्वारा  महसूस और अनुभव करने के बाद जेलों में दंड , प्रायश्चित और सुधार के लिए लाए गए बंदियों के लिए ,उन्हें रखे जाने से लेकर , उनसे श्रम और सेवा लिए जाने वाले , सुधारने के साथ साथ शिक्षा स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें सुनिश्चित करने के लिए बाकायदा कारागार नीति नियमों को संहिताबद्ध कर दिया गया।  

कभी इसी तिहाड़ कारागार में बंदियों के सुधार और उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए विख्यात पुलिस प्रशासक किरण बेदी ने बहुत से नए प्रयोग और प्रयास किए थे।  आज वही केंद्रीय कारागार , थोड़े थोड़े समय बाद अपने व्यवस्थाओं की अनियमततताओं और कदाचार के लिए समाचार में आए तो ये दुःख और चिंता की बात है।  

कारागार तिहाड़ देश की राजधानी दिल्ली का केंद्रीय कारागार होने के साथ साथ देश के सबसे विशाल कारागार में से है।  कैदियों के वर्गीकरण के आधार पर तिहाड़ एक दर्जन से अधिक कारगार में बंदियों को निरुद्ध रखा जाता है।  इसमें गंभीर अपराधों में लिप्त आरोपियों , बंदियों, महिला बंदियों तथा राजनैतिक बंदियों के लिए अलग अलग कारागारों की व्यवस्था है।  

कारागार प्रशासन की विफलता से जुडी घटनाये प्रदेश के कारागार प्रशासनों के विषय में सामने आती रही हैं।  
ऐसी ही एक बड़ी घटना को पिछले दिनों पजाब राज्य के एक कारागार में अंजाम दिया गया था। बिहार का कारगर प्रशासन तो लालू यादव मामले में बाकायदा फटकार तक खा चुका है।  महाराष्ट्र , बंगाल , सहित और बहुत  से राज्यों की कारागारों से अनेक तरह की अनियमितताओं ,भ्रष्टाचार के समाचार सामने आते रहे हैं।  

चाहे छापे के दौरान बंदियों से मोबाइल मिलने की बात हो या फिर जेल के अंदर से ही बड़े गंभीर अपराधों की साजिश षड्यंत्र बनाने वाली बंदियों की गैंग की खबरें , जेल के अंदर चल रही पूर्व मंत्री की सेवा मालिश हो या अब वीवो के मालिक हरिओम राय से सुविधा शुल्क के रूप में लिया जाने वाला पांच करोड़ , हर घटना इस बात का इशारा कर करती है की केंद्रीय कारागार तिहाड़ प्रशासन में अब कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।  

कारागार राज्य का विषय होता है इसलिए इसका दायित्व प्रदेश सरकार पर होता है।  राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और देश की सबसे संवेदनशील जेल होने के कारण भी ये बहुत जरूरी है कि केंद्रीय कारागार की सारी  व्यवस्थाओं को अधिक दुरुस्त व पुख्ता किए जाने विषयक सभी अनुशंसित उपायों पर त्वरित अमल किया जाए।  



लेखक स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं।  
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