क्या आपको बहुत पहले दिखाया जाने वाला एक विज्ञापन याद है। उस विज्ञापन में एक नन्ही से बच्ची , स्कूल की पास से आने जाने वालों को एक पैम्फ़लेट पकडाती है, जैसे कि अक्सर ही लाल बत्ती पर आपको हमें भी कोई न कोई पम्फ्लेट पकडा देता है, और जैसा कि अक्सर ही होता है कि हम सभी उस पर एक उड़ती हुई निगाह डालते हैं और फेंक देते हैं, ठीक उसी तरह उस बच्ची द्वारा दिए गए कागज़ के टुकड़े को सभी आने जाने वाले हाथ में लेकर थोडा आगे जाने पर फेंक देते हैं। एक स्कूटर चालक जो ये सब देख रहा होता है , वो बच्ची के पास आता है और उसे बताता है कि अब उसे ये पम्फ्लेट किसी के भी हाथ में देने से पहले उसे अच्छे तरह मरोड़ कर देना है। वो नन्ही बच्ची ऐसा ही करती है, फ़िर जिस पहले आदमी को वो ये कागज़ तोड़ मडोदकर देती है , वो पहले उस बच्ची को गौर से देखता है फ़िर उसे कगाज़ के टुकड़े को खोल कर पढने लगता है।
मुझे लगता है कि इंसान का मनोविज्ञान , चाहे उत्सुकता के कारण या फ़िर कि खुराफाती कारणों से अक्सर या ज्यादातर नकारात्मक चीजों की तरफ़ आसानी से आकर्षित होता है। बल्कि ये कहूं कि कि सकारात्मक बातों , चीजों की तरफ़ चाहे एक बार को उसकी नज़र ना जाए या जाए भी तो वो उसे नज़र अंदाज़ कर दे मगर उल्टी भाषा , उल्टी बातों और उल्टी चीजों की तरफ़ उतनी ही जल्दी आकर्षित हो जाता है। किसी बच्चे को आप किसी बात के लिए मना कीजीए तो मैं ये तो नहीं कहता कि शत प्रतिशत , मगर आम तौर पर ज्यादा बच्चे वही काम करने में दिलचस्पी दिखाएँगे। एक और उदाहरण देता हूँ, किसी ने अपने चिट्ठे पर अपने पोस्ट का शीर्षक दिया, इसे बिल्कुल मत पढ़ना, आपन माने या ना मने , मगर उस दिन जितने लोगों ने उसे पढा था उससे पहले उसके पोस्ट को कभी भी इतने लोगों ने नहीं पढा था।"ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ नकारात्मक बातें ही मन को और मस्तिष्क को आकर्षित करती हैं मगर कुछ तो कनेक्शन जरूर है इन बातों में, या पता नहीं कि ऐसा सिर्फ़ मेरे साथ होता है.................."
सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
क्या नकारात्मकता ज्यादा आकर्षित करती है ?
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मेरे साथ भी ऐसा ही होता है....
जवाब देंहटाएंना-ना-मतलब हाँ-हाँ.
जवाब देंहटाएंऐसे बहुत सारे टोटके
जवाब देंहटाएंभरे पड़े हैं समाज में।
बहुत सही कहा आपने। एक शे’र याद आ गया
जवाब देंहटाएंवैसे अपना तो इरादा है भला होने का
पर मज़ा और है दुनियां में बुरा होने का
चीजों को बदलने के लिए बेहतर दिशा न दी जाए तो बदतर की ओर तो वे अपने-आप अग्रसर हो जाती हैं.
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जवाब देंहटाएंहमारी आपकी बुनिया ही ऎसी पड़ी है, अजय बाबू ।
अईसी-तईसी चीजें हम्मैं जबरजस्ती खींचती है ।
हमारी आपकी मानी इन्सान की बुनियाद ही वर्जित फल खाने से पड़ी है, जब आदम और हव्वा नहीं बचे तो हम उनकी परँपरा ढोते रहने को क्यों रोयें ।
मिथिला-वैशाली में कहावत है
माँगल चुम्मा सिट्ठी अउर चोरअउका चुम्मा मिट्ठी !
हमारी आपकी बुनियाद ऎसी ही पड़ी है, अजय बाबू ।
जवाब देंहटाएंअईसी-तईसी चीजें हम्मैं जबरजस्ती खींचती है ।
हमारी आपकी मायने इन्सान की ही बुनियाद वर्जित फल खाने से पड़ी है, जब आदम और हव्वा नहीं बचे तो हम उनकी परँपरा ढोते रहने को बाध्य हैं ।
मिथिला-वैशाली में कहावत है
माँगल चुम्मा सिट्ठी अउर चोरअउका चुम्मा मिट्ठी !
निषेध आमंत्रण है । अजय बाबू, हमेशा ।
जवाब देंहटाएंआपकी बात बिलकुल सही है "नकारात्मता की और मनुष्य सहजता से आकर्षित हो जाता है" ....इसके पीछे एक कारण जिज्ञासा भी है ! सकारात्मकता सार्वभोमिक तथ्यों की तरह सत्यापित और सर्वविदित है जिसमे कम जिज्ञासा होना स्वाभाविक है इसीलिए भी मनुष्य नकारात्मता की और आकर्षित हो जाते है !!
जवाब देंहटाएंसादर
जो कहा गया है उसे समझना मत
जवाब देंहटाएंजो समझ गये तो फिर कहना मत
यह तो मानव स्वभाव है। ऐसा ही होता है।
जवाब देंहटाएंयह तो सभी के साथ होता है!!
जवाब देंहटाएंक्या हमें कोशिश नहीं करनी चाहिए नकारात्मकता के बीच सकारात्मकता के अवसरों को चुनने की।
जवाब देंहटाएंबढ़िया। शायद ऐसा ही सब के साथ होता है।
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