आज भारतीय गणतंत्र अपने साठवें वर्ष में पहुंच चुका है और चारों तरफ़ हम अपनी चिर परंपरा को निभाते हुए सबसे यही कहते जा रहे हैं कि गणतंत्र दिवस मुबारक हो । और हो भी क्यों न आखिर एक देश जो जाने कितने दशकों , शताब्दियों या कहें कि युगों तक अलग अलग गुलामियों का दौर देख चुका था वो आजाद होने के बाद इतने शानदार सफ़र पर निकला हुआ है कि दुनिया रश्क कर रही है । आज विश्व के कोने कोने में भारत के विकास , उसकी सफ़लता , और उसके भविष्य की बातें ही हो रही है । आज विश्व का कोई देश , कोई समूह ऐसा नहीं है जो किसी भी लिहाज़ से भारत की उपेक्षा कर सके । मगर क्या इतना बहुत है एक देश के लिए खुद पर फ़ख्र करने के लिए , इतराने के लिए , घमंड करने के लिए और सबसे बढके अब आगे भटकने के लिए । यदि हां तो फ़िर चिंता की कोई बात नहीं , फ़िर तो देश सही दिशा में जा रहा है यानि आज बिल्कुल सच में ही भटकाव की ओर बढ रहा है । और बहुत मायनों में तो पीछे की ओर चल रहा है । अब देखिए न जिस धर्म/जाति/भाषा/प्रांत के झगडे को हम वर्षों पहले पीछे छोडने की राह पर थे अब एक बार फ़िर हमारे राजनीतिज्ञ पूरे देश को, समाज को ,उन्हीं रास्तों पर धकेल रहे हैं । तो फ़िर आखिर क्या माना जाए कि साठ बरस का एक देश ,परिपक्वता की जगह सठियाता जा रहा है ।
मेरी समझ में ये नहीं आता कि जब देश की प्रथम नागरिक होने और राष्ट्रपति होने के नाते श्रीमती प्रतिभा पाटिल पूरे देश की बालिकाओं/महिलाओं को ये संदेश देती हैं कि उन्हें आगे बढना है , महिला सशक्तिकरण की बात करती हैं तब वे इस बात की सफ़ाई भी दे पातीं कि ठीक उनकी नाक के नीचे , सोनिया गांधी , शीला दीक्षित जैसी महिलाओं के साथ के बावजूद .....देश की सबसे शूरवीर और साहसिक बेटी ...किरण बेदी को जबरन ही सिर्फ़ इस वजह से नौकरी से स्थाई अवकाश कैसे दिलवा दिया गया वो भी इस वजह से यदि वे जारी रहती तो उन्हें दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनाना पडता जो बहुतों को भारी पड जाता ।
मेरी समझ में ये भी नहीं आता जब पूरे देश को बडे ही ओजपूर्ण स्वर में कहा जाता है कि अब हम किसी भी आतंकी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेंगे और ऐसे करने वालों के सारे मंसूबों को नेस्तनाबूत कर दिया जाएगा तो फ़िर उन्हें ये क्यों नहीं समझाया जाता है कि पिछले कुछ सालों से अफ़जल कसाब और इसके भाई बंदों को आखिर किस वजह से पाला पोसा जा रहा है ?
मेरी समझ में ये नहीं आता कि सरकार मे कोई व्यक्ति वित्त मंत्री के रूप में लगातार तीन तीन बार विश्व के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री होने का पुरस्कार पाता है तो फ़िर वही व्यक्ति जब प्रधानमंत्री के पद पर , यानि सरकार का अगुवा बनता है तो फ़िर आखिरकार किन कारणों से इस कदर बेबस हो जाता है कि उसकी सारी अर्थनीति बेकार हो जाती है और जनता त्राहि त्राहि करती रहती है और सरकार का कहना होता है कि दाम कब कैसे कम होंगे ये तो ज्योतिषि ही बता सकते हैं ?
और भी कई सारे प्रश्न दिमाग में इस तरह घुमडते हैं कि समझ ही नहीं आता कि कैसे कहूं गणतंत्र दिवस मुबारक हो
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
कैसे कहें कि गणतंत्र दिवस मुबारक हो !
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देश के राष्ट्रपति का नाम श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल है...
जवाब देंहटाएंगलती की तरफ़ ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया सैयद भाई अभी दुरूस्त किए देते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज़बरदस्त पोस्ट..... एक एक शब्द से सहमत..... सचमुच कैसे कहें कि गणतंत्र दिवस है......?
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी पोस्ट.....
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबात ओ आपकी सही है.
जवाब देंहटाएंसकारात्मक पक्ष ही देखॆं .
धीरे धीरे रे मना......
हम आने वाले सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे हैं.
क्या कहू ??? बोलेंगे तो बोलेगा की बोलता है !!!
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