सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

बच्चों का बदलता मनोविज्ञान


आज यदि अपने आसपास नज़र डाली जाये, आसपास ही क्यों यदि अपने घरों में भी झांका जाये तो साफ़ पता चल जाता है कि बच्चे अब बहुत बदल रहे हैं । हां ये ठीक है कि जब समाज बदल रहा है, समय बदल रहा है तो ऐसे में स्वाभाविक ही है कि बच्चे और उनसे जुडा उनका मनोविज्ञान, उनका स्वभाव, उनका व्यवहार ..सब कुछ बदलेगा ही। मगर सबसे बडी चिंता की बात ये है कि ये बदलाव बहुत ही गंभीर रूप से खतरनाक और नकारात्मक दिशा की ओर अग्रसर है। आज नगरों , महानगरों में न तो बच्चों मे वो बाल सुलभ मासूमियत दिखती है न ही उनके उम्र के अनुसार उनका व्यवहार।कभी कभी तो लगता है कि बच्चे अपनी उम्र से कई गुना अधिक परिपक्व हो गये हैं। ये इस बात का ईशारा है कि आने वाले समय में जो नस्लें हमें मिलने वाली हैं..उनमें वो गुण और दोष ,,स्वाभाविक रूप से मिलने वाले हैं , जिनसे आज का समाज ,बालिग समाज खुद जूझ रहा है।

बच्चों के बदलते व्यवहार और मनोविज्ञान पर शोध कर रही संस्था ,"बालदीप" ने अपने सर्वेक्षण और अध्ययन के बाद तैयार की गयी रिपोर्ट में इस संबंध में कई कारण और परिणाम सामने रखे हैं।बदलते परिवेश के कारण आज न सिर्फ़ बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से अवयव्स्थित हो रहे हैं बल्कि आश्चर्यजनम रूप से जिद्दी , हिंसक और कुंठित भी हो रहे हैं। पिछले एक दशक में ही ऐसे अपराध जिनमें बच्चों की भागीदारी थी ,उनमें लगभग सैंतीस प्रतिशत की बढोत्तरी हुई है। इनमें गौर करने लायक एक और तथ्य ये है कि ये प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा, नगरीय क्षेत्र में अधिक रहा है। बच्चे न सिर्फ़ आपसी झगडे, घरों से पैसे चुराने, जैसे छोटे मोटे अपराधों मे लिप्त हो रहे हैं..बल्कि चिंताजनक रूप से नशे, जुए, गलत यौन आचरण,फ़ूहड और फ़ैशन की दिखावटी जिंदगी आदि जैसी आदतों में भी पडते जा रहे हैं।संस्था के अनुसार ऐसा नहीं है कि बच्चों मे आने वाले इस बदलाव का कोई एक ही कारण है। उन्होंने सिलसिलेवार कई सारे कारणों का हवाला देकर इसे साबित किया ।


इनमें पहला कारण है बच्चों के खानपान में बदलाव। आज समाज जिस तेजी से फ़ास्ट फ़ूड या जंक फ़ूड की आदत को अपनाता जा रहा है उसके प्रभाव से बच्चे भी अछूते नहीं हैं। बच्चों के प्रिय खाद्य पदार्थों में आज जहां, चाकलेट, चाऊमीन, तमाम तरह के चिप्स, स्नैक्स, बर्गर, ब्रेड आदि शामिल हो गये हैं वहीं, फ़ल हरी सब्जी ,साग दूध, दालें जैसे भोज्य पदार्थों से दूरी बनती जा रही है। इसका परिणाम ये हो रहा है कि बच्चे कम उम्र में ही मोटापे, रक्तचाप, आखों की कमजोरी,और उदर से संबंधित कई रोगों का शिकार बनते जा रहे हैं।




बच्चों के खेल कूद, मनोरंजन, के साधनों,और तरीकों में बद्लाव । एक समय हुआ करता था जब अपने अपने स्कूलों से आने के बाद शाम को बच्चे अपने घरों से निकल कर आपस में तरह तरह के खेल खेला करते थे। संस्था के अनुसार वे खेल उनमें न सिर्फ़ शारीरिक स्वस्थता, के अनिवार्य तत्व भरते थे, बल्कि आपसी सहायोगिता, आत्मनिर्भरता, नेत्र्त्व की भावना जैसे मानवीय गुणों का संचार भी करते थे। आज के बच्चों के खेल कूद के मायने सिर्फ़ टेलिविजन, विडियो गेम्स, कंप्यूटर गेम्स आदि तक सिमट कर रह गये हैं। और तो और एक समय में बच्चों को पढने सीखने में सहायक बने कामिक्स भी आज इतिहास बन कर रह गये हैं। जबकि ये जानना शायद दिलचस्प हो कि पश्चिमी देशों मे अभी भी बच्चों द्वारा इन्हें खूब पसंद किया और पढा जाता है ।



भारतीय बच्चों मे जो भी नैतिकता, व्यवहार कुशलता स्वाभाविक रूप से आती थी, उसके लिये उनकी पारिवारिक संरचना बहुत हद तक जिम्मेदार होती थी। पहले जब सम्मिलित परिवार हुआ करते थे., तो बच्चों में रिशतों की समझ, बडों का आदर, छोटों को स्नेह, सुख दुख , की एक नैसर्गिक समझ हो जाया करती थी। उनमें परिवार को लेकर एक दायित्व और अपनापन अपने आप विकसित हो जाता था। साथ बैठ कर भोजन, साथ खडे हो पूजा प्रार्थना, सभी पर्व त्योहारों मे मिल कर उत्साहित होना, कुल मिला कर जीवन का वो पाठ जिसे लोग दुनियादारी कहते हैं , वो सब सीख और समझ जाया करते थे। संस्था ने इस बात पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि आज जहां महानगरों मे मां-बाप दोनो के कामकाजी होने के कारण बच्चे दूसरे माध्यमों के सहारे पाले पोसे जा रहे हैं , वहीं दूसरे शहरों में भी परिवारों के छोटे हो जाने के कारण बच्चों का दायरा सिमट कर रह गया है ।


इसके अलावा बच्चों में अनावश्यक रूप से बढता पढाई का बोझ, माता पिता की जरूरत से ज्यादा अपेक्षा, और समाज के नकारात्मक बदलावों के कारण भी उनका पूरा चरित्र ही बदलता जा रहा है । यदि समय रहेते इसे न समझा और बदला गया तो इसके परिणाम निसंदेह ही समाज के लिये आत्मघाती साबित होंगे।

23 टिप्‍पणियां:

  1. सही चिन्तन, आत्मघाती हो रहे समाज व पीढी के कारणो को रेखांकित करने का सार्थक प्रयास.
    बेहतरीन सोच

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  2. एक चिंतनीय मुद्दा जो कह रहा है कि ज्‍यादा पकना (परिपक्‍वता समय से पहले की) भी सडांध को जन्‍म देता है और बच्‍चे टी वी, वीडियो गेम्‍स, मोबाइल से चिपक रहे हैं तो हम त‍थाकथित बड़े भी कहां पीछे हैं, हम इंटरनेट और कंप्‍यूटर से चिपक चुके हैं।

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  3. नया ब्लॉग मुबारक हो!

    बाल मनोविज्ञान पर बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने।

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  4. विषय बहुतों का मनपसंदीदा होगा कितने ही अभिभावक इन बातों का सामना कर रहे होंगे। पर यह परिणाम का चिंतन है। उससे पहले का भी गहन चिंतन हो तो बात बने।

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  5. बाल मनोविज्ञान का सही विवरण है.... लेकिन एक बात जो इन सबके मूल में है उसके प्रति ध्यान देने में शायद थोडी कमी रह गयी है...... यदि बाल मनो वृत्ति बदल रही है तो इसके जिम्मेदार कौन हैं... क्या स्वयं बच्चे.... या फिर उनके अभिभावक , जिनकी जीवन शैली ने इन मासूमो को वो स्थितिया और रहन सहन का स्तर विरासत में सौपा है जिसमे वो जी रहे हैं... इसलिए चिंता अभिभावकों के पछ से है न की इन मासूमो के द्वारा.... अरे इनको जैसा परिवेश मिलेगा ये उसी अनुरूप खुद ब खुद ढल जायेंगे........ जय हिंद

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  6. गंभीर लेखन को समर्पित आपका यह ब्लॉग नई ऊँचाइयों को छुए, यह शुभकामना है।

    बाल मनोविज्ञान को रेखांकित कर अच्छी शुरूआत की है आपने।

    बी एस पाबला

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  7. गंभीर लेखन को समर्पित आपका यह ब्लॉग नई ऊँचाइयों को छुए, यह शुभकामना है।

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  8. विचारणीय मुद्दों को उठाने का आपका ये प्रयास बहुत ही बढिया लगा ।
    शुभकमनाऎं!!!

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  9. यहाँ आपने केवल शहरी बच्चों की बात की है । ग्रामीण परिवेश में रहने वाले बच्चों की स्थिति इनसे भिन्न है , बेहतर है यह मैं नही कह रहा हूँ । लेकिन उनके लिये अलग से सोचने की ज़रूरत है ।

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  10. आप लोगों ने बहुत से पहलुओं पर ध्यान दिलाया मेरा..आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद..और मुझे लगता है कि इस मुद्दे पर मुझे कुछ आगे भी लिखना होगा ..स्नेह के लिये धन्यवाद..और मार्गदर्शन के लिये आभार..

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  11. सत्य वचन, महाराज!!
    नया ब्लॉग और आप को बहुत बहुत शुभकामनाएं !

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  12. sahi vishleshan kiya aapne baccho ki manovriti ka.gyanwardhak aur jagruk karne wali post.
    shukriya.

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  13. इस ब्लॉग की बहुत मुबारक..उम्दा और सार्थक चिन्तन किया है.

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  14. शुभकामनाएँ।
    आप का यह रूप देखना अति सुखद रहा। बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं आप।
    मुद्दे उठाते रहिए। तेजी से बदलती दुनिया में सर्द मरहले बहुत हैं।

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  15. परिणाम निसंदेह ही समाज के लिये आत्मघाती साबित होंगे।nice

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  16. नए ब्‍लाग के लिए शुभकामनाएं .. उम्‍मीद करती हूं .. यहां अच्‍छे मुद्दों पर कुछ न कुछ पढते रहने को मिलता रहेगा .. मेरी मजबूरी है कि हम पाठकों को वही पढा रहे हैं .. जो पाठक पढना नहीं चाहते!!

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  17. सुधार होना नितांत आवश्यक है क्योंकि यही बच्चे कल भारत के सुनहरे भविष्य है माता पिता की फ़र्ज़ है की अपने व्यस्तता से समय निकाल कर इन्हे अच्छे संस्कार और ख़ान पान से के बारे में बताएँ और मार्गदर्शन करें..

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  18. झा साहब,
    बहुत ही उत्तम मुद्दा उठाया आपने : इससे भी आगे कुछ कहना चाहूंगा :
    अमेरिका में बच्चा जब तीन साल का होता है तो उसे पहला पाठ यह पढाया जाता है कि 'चाइल्ड एब्यूज' के खिलाप शिकायत के लिए उसे घर के टेलीफोन से कौन सा नंबर घुमाना है, पुलिस बुलाने के लिए कौन सा नंबर डायल करना है ! यह वहाँ के बच्चे की जिंदगी का पहला सबक है ! ये बात और है कि वहाँ के कल्चर और हमारे कल्चर में बहुत बड़ा अंतर है फिर भी जहां तक एक बच्चे को जागरूक बनाने का सवाल है यह फर्क ज्यादा मायने नहीं रखता! यह तो आप सभी जानते है कि आज की हमारी पीढी चाहे जिस किसी वजह से भी हो, मगर है बहुत अडवांस ! हम भले ही इस बात की आलोचना इस तरह करते हो कि आजकल के बच्चे बहुत बिगडे हुए है, उन्हें हर अच्छी और गन्दी बात के बारे में जानकारी है, और माँ-बाप की इज्जत नहीं करते, उन्हें मुह पर ही जबाब दे देते है, इत्यादि-इत्यादि , तो मैं कहता हूँ कि हम तो बहुत सुधरे हुए थे, केवल अच्छी बाते ही सीखते थे, बाप ने एक बार घूर के देख लिया तो उस तरफ दुबारा नहीं जा पाते थे, माँ-बाप की बड़ी इज्जत करते थे, फिर भी हमने कौन सी तोप मार दी ?

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  19. जिस तरह की जीवनशैली बच्चे अपना रहे है उसके जिम्मेदार अभिभावक तो हैंही साथ ही फास्टफूड बनाने वाली कंम्पनियां भी है, बच्चें में जिस तरह की भावनायें आज कल पैदा हो रही है उनका कारण है समाज में हो रही घटनायें इनको रोका नहीं जा सकता है, क्योंकि वो भी समाज का एक हिस्सा है,

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  20. इस टिप्पणी के माध्यम से आपको, सहर्ष यह सूचना दी जा रही है कि आपके ब्लॉग को प्रिंट मीडिया में स्थान दिया गया है।

    अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर जा सकते हैं।

    बधाई।

    बी एस पाबला

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  21. बहुत अच्छी पोस्ट, बच्चों के बदलते मनोविज्ञान के बारे में,और अमर उजाला में,स्थान पाने के लिये हार्दिक बधाई,बलोग जगत में स्वागत है ।

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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