गुरुवार, 26 जनवरी 2012

विकास के लिए तत्पर होता बिहार





देश के सबसे बीमार , पिछडे , अविकसित राज्य की फ़ेहरिस्त में सबसे पहला नाम बिहार का ही आता है । यही नहीं देश के सुदूर उत्तर पूर्वी राज्यों से लेकर राजधानी दिल्ली , मुंबई ,पंजाब और गुजरात के अलावा बंग्लौर जैसे आईटी हब बने शहरों में बिहार से पलायन करके पहुंचे लोगों की संख्या इतनी अधिक है कि अब उन्हें स्थानीय राजनीति का विरोध और हिंसा तक का सामना करना पड रहा है । पिछले डेढ दशकों में , यानि कि वर्तमान सरकार से पहले की सरकारों ने अधोगति की ओर अग्रसर बिहार को पत्तन के गर्त में पहुंचा दिया । इस दौरान न सिर्फ़ शिक्षा ,रोज़गार ,परिवहन और उद्दोग सहित राज्य की सभी मूलभूत व्यवस्थाएं न सिर्फ़ चरमराई व राजकोष की स्थिति ऐसी कर दी सरकारी कर्मचारियों व राज्य के शिक्षकों को वेतन देने में भी सरकार को कठिनाई होने लगी । अपराध व भ्रष्टाचार का ऐसी जोड बन गया जिसने राज्य के आर्थिक ढांचे को बिल्कुल ढहा दिया ।

वर्तमान मुख्यमंत्री ने जब राज्य का जिम्मा संभाला तब सबने परिवर्तन की उम्मीद करने के बावजूद किसी बडे बदलाव की उम्मीद नहीं की थी । नई सरकार ने राज्य के विकास को दोबारा पटरी पर लाने के लिए पूरी प्रतिबद्धता से कार्य शुरू किया । सबसे पहले सडक परिवहन को दुरूस्त करने के लिए राष्ट्रीय राजमार्गों व राजकीय मार्गों के निर्माण , विस्तार एवं मरम्मत का काम  पूरे जोर शोर से शुरू किया गया । बहुत जल्दी ही इसका परिणाम भी स्पष्ट दिखने लगा । लगातार आ रहे बाढ ने सडकों की हालत बिल्कुल खस्ता व जर्जर कर दी थी , जिनका जीर्णोधार करके राज्य के सभी छोटे बडे शहरों को मिलाने का काम किया गया । इन सडकों के निर्माण में तमाम तरह के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए न सिर्फ़ उनकी निगरानी की गई बल्कि अभी हाल ही में राज्य सरकार ने उन तमाम ठेकेदारों की पहचान की है जिन्होंने जानबूझ कर सडक निर्माण के कार्य में देरी की है , प्रशासन उनके खिलाफ़ प्राथमिकी दर्ज़ कराने की तैयारी में है ।

राज्य के विकास में अपराध व परिवहन व्यवस्था के बाद सबसे बडी बाधा थी प्रशासकीय भ्रष्टाचार । इससे निपटने के लिए सरकार ने कई अभूतपूर्व कार्य किए । राज्य में पहली बार एक निश्चित समय में किसी भी कार्य को करने कराने के लिए राईट टू सर्विस बिल को लागू कर दिया ।  भ्रष्टाचार पर अध्य्यन करने वाली एजेंसियों ने बताया कि आम आदमी को अपने छोटे-छोटे काम समय पर करवाने के लिए रिश्वत देनी पडती है । सरकारी दफ़्तर व कर्मचारियों का टालू रवैय्या आम आदमी को जरूरत के समय काम न करने होने के कारण रिश्वत व भ्रष्टाचार की गुंजाईश को बनाए रखता है । आम आदमी का काम , कम से कम और एक नियत समय तक हो जाने को सुनिश्चित कराने वाले इस कानून को लागू करने से प्रशासनिक भ्रष्टाचार की एक गुंजाईश को रोक दिया गया ।

देश में भ्रष्टाचार उन्मूलन के संदर्भ में एक चौंकाने वाला तथ्य ये है कि बडे बडे आर्थिक घपलों घोटालों के उजागर होने और आरोपियों/दोषियों की पहचान हो जाने के बावजूद सरकार , प्रशासन व कानून तक उनसे गबन के पैसे की उगागी नहीं कर पाते । ऐसे में अभी हाल ही में सरकार ने एक भ्रष्ट अधिकारी के महंगे आलीशान आवास को कब्जे में लेकर उसमें स्कूल खोल कर एक नई नज़ीर पेश कर दी ।  यदि सूत्रों की मानें तो सरकार ने बहुत सारे ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की पहचान कर ली है जिनकी नामी/बेनामी संपत्तियों को ज़ब्त करने की योजना है ।

हालांकि बहुत से मोर्चों पर सरकार सही दिशा में चलते हुए आशातीत सफ़लता हासिल कर रही है । लोगों का विश्वास भी बढा है , किंतु कुछ बहुत अहम मुद्दों पर बेहद गंभीरता से अभी बहुत कुछ किया जाना बांकी है । इनमें शिक्षा, ग्रामोद्योग , औद्यौगीकरण एवं चिकित्सा आदि क्षेत्रों में स्थिति न सिर्फ़ चिंताजनक बल्कि भयावह है । राज्य के प्राथमिक , माध्यमिक व उच्च उद्यालयों के साथ ही महाविद्यालय व विश्वविद्यालय तक धन व श्रम की कमी , संसाधनों का अभाव झेलने को अभिशप्त हैं । हालात का अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों शिक्षकों के बकाए वेतन के बदले सरकारी गोदामों में पडे अनाज को देने की पेशकश की गई थी । और तो और लगभग ४७ प्रतिशत शिक्षा संस्थानों में पेयजल व शौचालय की व्यवस्था दुरूस्त नहीं पाई गई। उच्च एवं उच्चतर शिक्षा , व्यावसायिक शिक्षा आदि के लिए तो गिनती के लिए भी शिक्षण संस्थान उपलब्ध नहीं हैं यही कारण है कि प्रतिवर्ष लाखों मेधावी छात्र शिक्षा और कैरियर के कारण राज्य से पलायन कर जाते हैं ।

कभी खादी ग्रामोद्योग , मखाना उद्योग , जूट उद्दोग सहित तमाम लघु व कुटीर उद्योगों की स्थिति मरणासन्न अवस्था को प्राप्त हो चुकी हैं । प्रशासन की उदासीनता और बाज़ार की कमी ने मानो इन्हें हाशिए पर धकेल कर विस्मृत कर दिया । कभी चीनी उद्योग, कागज़ उद्योग, जूट उद्योग सूत व धागा उद्योग आदि में अग्रणी  स्थान पाने वाले राज्य की आज एक एक औद्योगिक ईकाई बंद पडी अपने जीर्णोद्धार का बाट जोह रही हैं । इन औद्योगिक संस्थानों में लगी लाखों करोडों की मशीनें भी अब पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं । हालांकि राज्य सरकार इस दिशा में देश के बडे औद्योगिक घरानों व अन्य व्यावसायिओं को राज्य में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु कई प्रयास कर रही है , किंतु उसका सार्थक परिनाम अब तक निकल कर सामने नहीं आया है । इस बीच सुधा डेयरी व दुग्ध उत्पाद उद्दोग एवं मैथिली-भोजपुरी फ़िल्मोद्योग ने पिछले दिनों खुद को नए सिर से स्थापित करके एक आस जरूर जगाई है ।

चिकित्सा और कृषि व्यवस्था की स्थिति भी बेहद खराब है । झारखंड के अलग होने के नुकसान के अलावा पिछले सालों से बिहार में लगातार आ रही बाढ और किसानों पर बढते कर्ज़ आदि ने कृषकों को हतोत्साहित कर कृषि मजदूरों में बदल कर रख दिया है । यहां एक सकारात्मक तथ्य ये सामने आया है कि मुजफ़्फ़रपुर स्थित कृषि अनुसंधान की पहल पर पारंपरिक खेती से अलग जाकर कृषकों ने कई वनस्पतियों , सब्जियों और औषधियों की खेती शुरू कर दी है । आम , लीची , केले जैसे फ़लों के बगीचों को व्यावसायिक उद्देश्य से तैयार किया जा रहा है ।


बिहार में जितनी बुरी हालत शिक्षा व्यवस्था की है उससे भी ज्यादा खराब स्थिति राज्य की चिकित्सा व्यवस्था की है । पूरे राज्य में कोई भी सरकारी या निजि अस्पताल ऐसा नहीं है जो राज्य के बीमारों को उच्चतम चिकित्सा सुविधा मुहैय्या करा सके । कुछ वर्ष पहले केंद्र सरकार ने एम्स के स्तर के छ चिकित्सा संस्थानों एवं अस्पताल को खोलने की योजना बनाई थी जिसमें से एक बिहार के पटना में संभावित था । ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों , डिस्पेंसरियों के साथ साथ चिकित्सकों की भी घोर कमी है । ऊपर से नीम हकीमों का प्रभाव और नकली दवाइयों का फ़ैलता कारोबार स्थिति को और भी अधिक नारकीय बना रहा है ।


जो भी हो इतना तो तय है कि आज बिहार बदल रहा है , बिहार विकास की ओर अग्रसर है । सबसे जरूरी बात ये है कि अब भविष्य में चाहे कोई भी शासक या सरकार आए , इस विकास को और धीरे-धीरे बहुत मुश्किल बने इस सकारात्मक माहौल को बनाए रखा जाए । उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में बिहार अपनी गरिमा और विकास को थाम ही लेगा । 

रविवार, 22 जनवरी 2012

क्या कभी मिटेगी गरीबी






अभी हाल ही में आई दो खबरों ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा । पहली ये कि एक गरीब व्यक्ति जिसे उसकी पत्नी को जच्चगी के लिए अस्पताल में दाखिला नहीं मिला ने पूरी रात सडक पर अपनी मृत पत्नी व बच्चे की लाश के साथ बिताई । दूसरी ये कि न्यायपालिका ने राजधानी दिल्ली में सरकार व निगम द्वारा एक रात्रि विश्राम स्थल रैन बसेरे को गिरा दिए जाने पर अदालत के सामने पहुंच मामले में सरकार व निगम द्वारा एक रात्रि विश्राम स्थल रैन बसेरे को गिरा दिए जाने पर अदालत के सामने पहुंचे मामले में सरकार को लगभग चेतावनी देते ऐसा दोबारा नहीं होने को सुनिश्चित करने को कहा है । ऐसा भी नहीं है देश में भूख-गरीबी, ठंड  से लोगों के मरने की ये कोई नई घटना हो । उलटा अब तो ये एक नियति सी बन गई है ।


आज भी ग्रामीण क्षेत्र की उन्नीस प्रतिशत आबादी ,भूख , कुपोषण , बीमारी व अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण समय से पहले काल का ग्रास बन जाते हैं । सामाजिक विकास के असंतुलन की इससे बडी विडंबना और क्या हो सकती है कि  जो देश खुद को विश्व महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर मान व बता रहा है उस देश में अब भी रोज़ हज़ारों लोग भूख , गरीबी और यहां तक कि ठंड तक से अपनी जान गंवाने को मजबूर हैं । इनमें से बहुत सारी मौतें तो सरकार प्रशासन की गिनती में ही नहीं आते हैं ।

सबसे बडे दुख की बात ये है कि जिन्हें सरकारी सहायता की आवश्यकता सबसे ज्यादा होती है उन्हीं के प्रति सरकार सबसे ज्यादा उदासीन और संवेदनहीन है । हालात की गंभीरता का अंदाज़ा दो दशक पहले प्रधानमंत्री तक ने ये माना था कि यदि सरकार गरीब के लिए सौ रुपया खर्च करती है तो वास्तव में उस गरीब तक मात्र दो रुपए ही पहुंचते हैं । आज दो दशकों के बाद बेशक ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल के टॉवर आ गए हों किंतु भूख, गरीबी ,कुपोषण ,अशिक्षा आदि की स्थित वही है ।

देश में गरीबी के नहीं खत्म होने का एक बडा कारण सिर्फ़ गरीबों के लिए , उनके नाम पर चलाई जाने वाली सैकडों योजनाओं में घपले -घोटाले की असीम संभावना होना ही है । यदि देश से गरीब खत्म हो जाएं गरीबी खत्म हो जाए तो आर्थिक कदाचार की एक स्थापित परंपरा सिरे से खत्म हो जाएगी । और ज़ाहिर है कि इन घपलों घोटालों के पीछे देश का सबसे शक्तिशाली वर्ग यानि राजनीतिज्ञ और बडे पदों पर बैठे नौकरशाह ही होते हैं ।

आज सरकार विभिन करों के माध्यम से जनता से उनके श्रम की कमाई में से एक बहुत बडा हिस्सा राजकोष में संचित कर रही है इसके अलावा लोगों के अधीन संपत्ति व संपदा ,खनिज , वनस्पति आदि पर भी सरकार का अधिकार होने के कारण उसका विनिमय और मुनाफ़ा भी सरकार के हिस्से ही आता है । सरकार की वर्तमान नीतियों के अनुसार तो सरकार आज अपने नागरिकों से हर तरह का कर वसूल रही है । आम जन आज सभी करों से न सिर्फ़ परिचित हैं बल्कि वे उन करों का भुगतान भी कर रहे हैं । इन करों से इसके अलावा अन्य सभी आय श्रोतों से राजकोष में पहुंच धन का उपयोग विकास एवं शासन के लिए व्यय किया जाना चाहिए ।

प्रति वर्ष गरीबों को मूलभूत सुविधाओं को ही मुहैय्या कराने , ज्ञात हो कि पश्विमी देशों में सूचना पहुंचाने व पारदर्शिता लाने के लिए कंप्यूटर व इंटरनेट की सुविधा को मूल अधिकार की तरह मांगा जा रहा है , के लिए सरकार राजकोष के धन का एक बहुत बडा हिस्सा खर्च होता है । इन योजनाओं में से सत्तर प्रतिशत योजनाओं की जानकारी और उन योजनाओं का लाभ उठाने की पूरी प्रक्रिया से आम लोगों के अनजान होने के कारण ही इनमें व्यय की जा रही राशि की बंदरबांट शुरू हो जाती है । चूंकि इन योजनाओं के शुरू हो जाने के बाद इनके सुचारू चालन की देख रेख न हो पाना , योजनाओं की सफ़लता-विफ़लता का आकलन नहीं किया जाना , इन योजनाओं की धनराशि में गबन घोटालों व हेरफ़ेर करने वालों का साफ़ बच निकलना आदि कारणों से परिणाम ये होता है कि गरीब और गरीबी जस की तस बनी रहती है । फ़िर योजनाएं बनती हैं और इस तरह से ये चक्र चलता ही रहता है ।

देश के विकास का ढांचा का कुछ इस तरह का बन गया है कि सामाजिक -आर्थिक व राजनीतिक , हर क्षेत्र में घोर असंतुलन पैदा हो गया है । सारी सुख सुविधाएं , अधिकार व शक्तियां तक देश की बहुत बडी जनसंख्या होने के बावजूद बहुत थोडे से लोगों के पास केंद्रित होकर रह गई है । इन लोगों आम जनजीवन की आवश्यकताओं , उनकी तकलीफ़ व कठिनाई या कहें कि उनके जीवन मृत्यु से कोई सरोकार नहीं है और इसलिए वे इनके प्रति संवेदनहीन बने हुए हैं । सरकारी राजकोष के एक बहुत बडे हिस्से को यदि इस शक्तिशाली वर्ग के चंगुल से बाहर निकाल कर वास्तव में उसका उपयोग आम जन के कल्याण के लिए कर दिया जाए नि:संदेह तस्वीर कुछ और ही निकल कर सामने आएगी


सोमवार, 16 जनवरी 2012

बेहतर हो सडक प्रबंधन




दिल्ली का एक छोटा जाम




अभी हाल ही में राजधानी दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ऑटो एक्सपो के दौरान उस क्षेत्र की सडकों पर लगे जाम ने एक बार फ़िर से इस बात की ओर ईशारा अक्र दिया कि अभी तक राजधानी दिल्ली का सडक प्रबंधन भी चुस्त दुरूस्त नहीं है तो पूरे देश की स्थिति क्या होगी इस अंदाज़ा सहज़ ही लगाया जा सकता है । राजधानी दिल्ली समेत तमाम महानगरों में टैफ़िक जाम की समस्या न सिर्फ़ आम समस्या है बल्कि रोज़ाना वैकल्पिक यातायात व्यवस्थाओं की शुरूआत एवं फ़्लाईओवरों के निर्माण के अलावा बहुत बडा मानव श्रम इसे दुरूसत करने के पीछे लगा रहता है ,किंतु परिणाम बहुत परिवर्तनकारी नहीं दिख रहा है ।

देश में प्रतिदिन सैकडों व्यक्तियों की मृत्यु सडक दुर्घटनाओं में हो रही है । उल्लेखनीय है कि भारत में प्रति मिनट एक दुर्घटना होती है । सडक दुर्घटना पर हाल ही में आयोजित एक अतंरराष्ट्रीय संगोष्ठी में परिवहन मंत्रालय के हवाले से ये आंकडा दिया गया कि वर्ष २०१० में दुर्घटनाओं में एक लाख ३० हज़ार लोग मारे गए तथा पांच लाख लोग घायल हुए ।  चिंताजनक बात यह है कि बहुत उपायों के बावजूद इसमें इज़ाफ़ा ही हो रहा है । पश्चिमी देशों में वाहनों की संख्या भारत से कहीं अधिक है । इतना ही नहीं अभी जहां भारत में सडक पर अधिकतम रफ़्तार की सीमा सौ किलोमीटर प्रति घंटा भी नहीं है वहीं पश्चिमी देशों में वाहनों की रफ़्तार ढाई सौ किलोमीटर प्रति घंटे तक देखी जा सकती है ।
इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले एक दशक में देश में सडक निर्माण के रफ़्तार और स्तर में बहुत वृद्धि हुई है । न सिर्फ़ दिल्ली ,मुंबई ,कोलकाता जैसे महानगरों में बल्कि सुदूर ग्राम देहातों में भी सडक व कच्चे मार्गों का निर्माण होता रहा ।किंतु इस निर्माणकार्य से अपेक्षित परिवर्तन व सफ़लता को नहीं पा सकने का एक बडा कारण अति निम्न स्तर के सडकों का निर्माण । एक सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्थिति ऐसी पाई गई कि लगभग बाईस प्रतिशत सडकें अपने निर्माण के पहले वर्ष में ही ज़र्ज़र होकर बेहद खतरनाक हो जाती हैं ।

महानगरों में सडकों पर वाहनों का बढता दबाव आने वाले समय में एक बहुत बडी समस्या का रूप ले लेगा । इस तत्य को भलीभांति समझते हुए इस दिशा में मेट्रो रेल ,मोनो रेल ,बी आर टी कॉरिडोर , बहुस्तरीय फ़्लाईओवरों का निर्माण आदि योजनाओं पर दिन रात काम चल रहा है । किंतु इन सबके वावजूद विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार व प्रशासन सडक प्रबंधन व्यवस्था के प्रति घोर उदासीन हैं । विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार व प्रशासन सडक प्रबंधन व्यवस्था के प्रति घोर उदासीन हैं । विशेषज्ञों ने सडकों पर बढती अव्यवस्था के लिए अपने अध्य्यन में कुछ तथ्यों को विशेष रूप से चिन्हित किया है । आए दिन विभिन्न विभिन्न कारणों से आमजनों द्वारा सडकों को निशाना बनाने की बढती प्रवृत्ति को बेहद खतरनाक माना गया है ।

विशेषज्ञ मानते हैं कि महत्वपूर्ण इमारतों ,धार्मिक स्थलों , पर्यटन स्थलों , सरकारी व गैर सरकारी कार्यालयों तथा मनोरंजन स्थलों के आसपास स्थित सडकों का प्रबंधन एवं यातायात को सुचारू किया जाना सबसे ज्यादा जरूरी है । विकासशील देशों में सार्वजनिक परिवहन साधनों के उपयोग से ज्यादा निजि वाहनों के प्रयोग के चलन से भी सडक जाम का एक मुख्य कारण है । सडक सुरक्षा के लिए कार्य कर रहे विशेषज्ञ इस बात पर बेहद हैरानी जताते हैं कि पश्चिमी देशों में कार्यालयीय समय के दौरान सडकों पर वाहनों की भीड को कम करने व रखने के लिए सफ़लतापूर्वक अपनाई गई पूल व्यवस्था भारत में न के बराबर हैं ।

अक्सर देखा जाता है कि व्यस्त सडकों के साथ ही बहुत बार राजमार्गों पर किसी कारणवश किसी वाहन के रूक जाने के कारण बहुत राजमार्गों एवं अन्य सडकों के लिए न सिर्फ़ उन्नत तकनीक पर आधारित मशीनों\क्रेनों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए बल्कि ये भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि यातायात प्रबंधकों की पहुंच वहां जल्द से जल्द हो । नागरिकों को भी ये बात भलीभांति समझानी चाहिए कि ऐसी परिस्थितियों में उन्हें धैर्य बनाए रख कर प्रशासन को सहयोग देना चाहिए ।

राजधानी समेत देश के अन्य सडक मार्गों पर यात्रियों एवं वाहनों की सहायता के लिए दिशा-निर्देश सूचकों एवं मार्गों मानचित्रों की अनुपब्धता भी सडक प्रबंधन को बाधित करती है । सडकों के साथ सभी महत्वपूर्ण मार्गों के मानचित्र , अन्य दिशा सूचक मानचित्र , सहायता सेवाओं के दूरभाष व पते ,निकटतम अस्पताल का दूरभाष नंबर व पता तथा ऐसी तमाम एहतियाती उपायों पर तेज़ी से कार्य किया जाना चाहिए ताकि दुर्घटनाओं की संख्या और उसकी चपेट में आने वाली जिंदगियों को बचाया जा सके । सडक निर्माता कंपनियों , ठेकेदारों व कारीगरों को सडक की गुणवत्ता में कमी के लिए सीधे जिम्मेदार मान कर कडा दंड दिया जाना चाहिए ।


सबसे मुख्य बात ये कि आम जन से लेकर सरकार व प्रशासन को सडक का महत्व समझना चाहिए और उसकी इज़्ज़त करनी चाहिए क्योंकि यही विकास का रास्ता होता है ।










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