रविवार, 24 जून 2012

माही की मौत से उठे सवाल










चार दिन की अथक परिश्रम और जीतोड कोशिश के बावजूद , पूरे देश की दुआओं और किसी चमत्कार की आशा के विपरीत आखिरकार जब नन्हीं माही को गहरे बोरवेल से बाहर निकाला गया तो उसकी मौत हो चुकी थी । बुधवार को  अपने जन्मदिन के बाद घर से बाहर निकली चार वर्षीय माही अचानक ही एक खुले हुए बोरवेल के गहरे गड्ढे में जा गिरी जो उसके लिए मौत का मुंह साबित हो गया ।

बोरवेल के गहरे गड्ढे में किसी बच्चे के गिरने की पहली घटना जिसने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा या कहें कि मीडिया कवरेज के कारण सबका ध्यान उस ओर चला गया वो था प्रिंस नामक एक बच्चे का गिरना । उस समय से लेकर हालिया दुर्घटना तक जाने कितनी बार कितने बच्चे बडे ऐसी दुर्घटनाओं के शिकार होते रहे हैं , और शायद आगे भी ये सिलसिला चलता रहेगा ।

भारत में अभी तक  दुर्घटनाओं से सबक सीखने और भविष्य में उनसे बचाव की कोई परंपरा नहीं बनी है । और तो और ऐसी लापरवाहियों को सरकार , प्रशासन व पुलिस तक गंभीर अपराध तो दूर , मामूली अपराध तक के नज़रिए से नहीं देखती है । हर बार की तरह इस बार भी कुछ दिनों तक खूब शोर शराबा होगा । मुआवजा , दिए जाने की घोषणा, प्रशासन की लापरवाही की बातें , दोषियों के खिलाफ़ कार्यवाही का आश्वासन और फ़िर भविष्य में ऐसा न होने देने की कोरी बयानबाजी करके मामले की इतिश्री कर ली जाएगी । इसके बाद फ़िर किसी प्रिंस किसी माही के बोरवेल में गिरने तक कहीं कुछ भी होता दिखता नहीं मिलेगा , ये अब इस देश की नियति बन चुकी है ।

माही की मौत ने इस बार कई सवाल छोड दिए हैं अपने पीछे जिनका उत्तर तलाशा जाना और प्रशासन के सामने उन्हें रखा जाना बेहद जरूरी है ।

१.  किसी पॉश इलाके/वीआईपी/वीवीआईपी क्षेत्र में इस तरह की लापरवाही भरी घटना क्यों नहीं देखने सुनने को मिलती । आखिर वहां के सारे सुरक्षा इंतज़ाम क्यों और कैसे पुख्ता होते हैं । ऐसी लापरवाही /ऐसी भूलें और ऐसी दुर्घटनाएं सिर्फ़ सामान्य क्षेत्रों में ही क्यों घटित होती हैं ? कहीं इसलिए तो नहीं कि प्रशासन सरकार के लिए उनकी कोई वरीयरता नहीं ?

२. अब तक कितने व्यक्तियों को बोरवेल , सडकों पर गड्ढे , मेनहोल के ढक्कन आदि खुले रखने के लिए दोषी ठहरा के कठोर सज़ा दी गई है ? सज़ा क्या कितनों के खिलाफ़ प्राथमिकी दर्ज़ करके उन पर मुकदमा चलाया गया है ? इन दुर्घटनाओं वाले मामलों से इतर इस तरह की कितनी शिकायतों पर सरकार , प्रशासन और पुलिस ने कार्यवाहियां की हैं और क्या की हैं ?

३. माही, प्रिंस जैसे बच्चे या अन्य पीडित यदि बडे रसूखदार मंत्रियों , उद्योगपतियों , अभिनेताओं , खिलाडियों के घर के होते , तब भी क्या प्रशासन मदद करने में इतनी कोताही , इतना ही विलंब करता या तब ये काम युद्ध स्तर पर होता शायद , यानि आम आदमी का जीवन सरकार , प्रशासन के लिए कोई मोल नहीं रखता । वो तो धन्य है हमारी सेना और उनका ज़ज़्बा जो हर बार मौत के मुंह में जाकर पीडितों को बचाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा देते हैं ।

४. सबसे जरूरी और ध्यान देने योग्य बात ये कि क्या भारत के अलावा अन्य देशों में भी ऐसी दुर्घटनाओं में पीडितों को बचाने के लिए यही विलंबकारी उपाय अपनाए जाते हैं । यदि नहीं तो आखिर क्या वजह है कि भारत आज तक ऐसी दुर्घटनाओं . आपदा के लिए आधुनिक तकनीक व उन्नत मशीनों , नए उपकरणों से लैस नहीं हो सका है ? इस देश में जब करोडों अरबों रुपए घपले घोटाले के लिए उपलब्ध है तो फ़िर जीवन रक्षक मशीनों उपकरणों के लिए क्यों नहीं ?

५. एक गौरतलब बात ये कि हालिया घटना में बच्ची को बचाने के लिए खोदे गए गहरे गड्ढों और सुरंगों का असर उस रिहायशी क्षेत्र और वहां निर्मित भवनों , मकानों पर क्या पडेगा , क्या इस ओर किसी का ध्यान गया , क्या इस दिशा में कुछ किया गया ?

और भी ऐसे जाने कितने ही प्रश्न छोड गया है उस चार वर्षीय बच्ची की मौत जो सरकार प्रशासन और खुद को भविष्य का महाशक्तिशाली , सुपर पावर बनने का दंभ भरने वाले देश के सामने । अब बात आम जनता की । देखा गया है कि ऐसे तमाम दुर्घटनाओं जिनमें पीडित बच्चे होते हैं अक्सर उनमें एक बडा कारण होता है माता पिता और अभिभावकों की लापरवाही , समस्या को नज़रअंदाज़ करने की प्रवृत्ति । सरकार , प्रशासन , पुलिस का रवैय्या आम लोगों के प्रति कैसा और क्या है अब ये बात किसी से छुपी नहीं है इसलिए अब आम आदमी के लिए ये बहुत जरूरी हो जाता है कि वो चुप न बैठे ।



असल में होने ये चाहिए कि अपने बच्चों और खुद के प्रति लापरवाही की हर संभावना को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए । इसके अलावा इससे भी जरूरी बात ये है कि देश के हर नागरिक को समस्याओं के प्रति , विशेषकर ऐसी अपेक्षित दुर्घटनाओं के प्रति बेहद सजग और सचेत होना चाहिए । इसके लिए सबसे पहला कार्य होना चाहिए इन तमाम गड्ढों , खुले बोरवेलों , मेनहोलों की शिकायत और बाकायदा पुलिस से शिकायत की जानी चाहिए , जरूरत पडे तो सीधा प्राथमिकी दर्ज़ करवाना चाहिए । मीडिया और संचार माध्यमों को भी इसमें आम लोगों का साथ देना चाहिए । प्रशासन को इस बात के लिए मजबूर किया जाना चाहिए कि वो न सिर्फ़ उन समस्याओं पर ध्यान देकर जरूरी कार्यवाही करे बल्कि दोषियों पर भी सख्ती से कारवाई की जाए । ये ध्यान रखा जाना बहुत जरूरी है कि आम आदमी खुद पहले अपनी मदद करे तो ही बात बन सकती है और शायद ऐसी दुर्घटनाओं में अपने बच्चों को लील जाने से बचाया जा सकता है ।


मंगलवार, 19 जून 2012

आस्था का बाज़ार






इस देश में धर्म का अस्तित्व तब से है जब से देश की सभ्यता और समाज का अस्तित्व है । इससे भी अधिक ये तथ्य गौरतलब है कि विश्व का सबसे पुराना धर्म और विश्व के सबसे ज्यादा धर्मावलंबियों को पोषित करने का श्रेय भी भारत को ही जाता है । शायद यही कारण था कि स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माताओं ने देश के चरित्र को धर्मनिरपेक्ष रखने का हर संभव प्रयास किया । हालांकि यही धर्मनिरपेक्ष चरित्र कालांतर में राजनेताओं द्वारा धर्म के राजनीतिकरण और धार्मिक भावनाओं का वोट बैंक के रूप में उपयोग का बायस बना ।  इनसे अलग देश में धर्म , आस्था को बाज़ार और व्यापार की तरह परिवर्तित करने में भी कोई कोर कसर नहीं छोडी गई ।


 इस स्थिति की गंभीरता को समझने के लिए सिर्फ़ दो तथ्यों पर गौर करना बहुत जरूरी है । देश में आज धर्मस्थलों की संख्या , शिक्षण संस्थानों व चिकित्सा संस्थानों की संख्या से कई गुना ज्यादा है । न सिर्फ़ इतना ही नहीं , देश की अर्थव्यवस्था का एक बडा भाग कहीं न कहीं इस आस्था के बाज़ार से जुडा हुआ है या कहें कि इसके पीछे ही छुपा/दबा हुआ है । परंपरावादी धार्मिक मान्यताओं , धार्मिक उत्सवों , धर्म स्थलों आदि को दरकिनार करते हुए पिछले कुछ वर्षोम में नए -नए धर्म गुरूओं , महंतों , बाबाओं , साधु साध्वियों ने ईश्वरीय सत्ता के समानांतर या ईश प्राप्ति के स्वघोषित मार्ग बन कर इस आस्था के बाज़ार को अधोगति की पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया ।

ये सर्वविदित है कि इस देस के आम लोग धर्म के मामले में न सिर्फ़ अति संवेदनशील हैं बल्कि लगभग धर्मांध की तरह व्यवहार करते हैं । यही वजह है कि कभी ईश प्रतिमाओं द्वारा दूध पीने की तो कभी दीवार ,पेड , और धुएं तक में किसी देवी-देवता की आकृति देखे जाने के अफ़वाहनुमे दावे के पीछे एक जुनून सा देखने को मिलता रहा है । आम लोगों की इसी सहिष्णुता व मासूमियत का फ़ायदा उठाते हुए इन तथाकथित धर्मगुरूओं ने अपने अपने तरीकों व हथकंडों से न सिर्फ़ आम जनमानस की धार्मिक भावनाओं से खेला बल्कि उनसे दान , सहयोग राशि  और कई अन्य बहानों से उनके खून पसीने की कमाई का एक हिस्सा भी हडप जाते हैं ।


इस समस्या का अध्ययन करने वालों ने एक दिलचस्प कारण भी ढूंढा । आधुनिक युग में आम आदमी का जीवन और दिशा आवश्यकता की पूर्ति से विलासिता एवं सुख सुविधा की ओर मुड गया । उच्च जीवन स्तर की प्राप्ति और सब कुछ जल्दी से जल्दी पा लेने की प्रवृत्ति ने सामाजिक जीवन को घोर प्रतिस्पर्धी बना दिया । लोगों के लिए नैतिकता श्रम , आदि के मायने पूरी तरह से बदलने लगे । किंतु इसके साथ-साथ एक आत्मग्लानि और पापबोध की भावना से भी ग्रस्त जनमानस ने इसकी भरपाई या प्रायश्चित स्वरूप धर्म , धार्मिक क्रियाकलापों की ओर रुख किया ।


इसी दुविधापूर्न स्थिति का पूरा फ़ायदा उठाते हुए आस्था के कारोबारियों ने किसी को जीवन की दौड में शार्टकट सफ़लता दिलाने के नाम अप्र तो किसी सफ़ल को उसके पापबोध का एहसास करवा कर दान, सहयोग, आदि के बहाने अपनी दुकान चमकाए रखी । इसका परिणाम ये हुआ कि देश में आज पारंपरिक धर्मों से परे लगभग उतने ही पाखंड और प्रपंचनुमा धार्मिक आडंबरों की एक बडी दुनिया रच डाली गई है ।


एक तथाकथित कृपानिधान बने बाबा जो खुद में किसी तीसरे नेत्र जैसी चमत्कारिक शक्ति आने का दावा करके लोगों पर कृपा बरसाने का ऐसा कार्यक्रम पिछले कुछ समय से करते चले आ रहे थे जिसके बदले में कृपा पाने के इच्छुक आम लोगों से अच्छी खासी धनराशि वसूल की जा रही थी । हाल ही में जब इनके खिलाफ़ लोगों को गुमराह करने व अंधविश्वास फ़ैलाए जाने का आरोप लगा कर मुकदमा दर्ज़ किया गया तो ये कृपा बरसनी बंद हो गई ‘। इनके साथ ही एक महिला जो खुद को देवी रूप में स्थापित करने करवाने के प्रयास में चर्चित हुईं ने उसी प्रवृत्ति को पुख्ता करने की कोशिश की है जिसमें आजकल बहुत कम उम्र अनुभव वाले भी खुद को दैवीय कृपा प्राप्त बताने मानने में लगे हुए । प[रवचन , सत्संग ,समागम , मिलन आदि का आयोजन इस तरह से किया कराया जा रहा है मानो बाज़ार /हाट लगाकर ईश्वरीय कृपा को बेचा जा रहा हो ।


इस संदर्भ में एक तथ्य यह भी है गौरतलब है कि धर्म और आस्था के इन तथाकथित व्यावसायियों ने अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा भी दबा रखा है । हैरानी की बात ये है कि ये सब कुछ खुलेआम चल रहा है और जब तक कोई शिकायत न की जाए कोई कार्यवाही नहीं होती । अब समय आ गया है कि विज्ञान और तकनीक के इस युग में आस्था ,धर्म , धार्मिक मान्यताओं को ढोंग और आडंबर से जरूर ही अलग कर दिया जाए । न सिर्फ़ ये बल्कि तेज़ी से बढते धर्मस्थलों पर अंकुश लगा कर उनकी जगह पर अस्पताल , सकूल एवं अन्य आवश्यक संस्थानों का निर्माण किया जाना चाहिए ।


आज विश्व की नज़र भारत पर है । कोई इसे भविष्य की महाशक्ति के रूप में  देख रहा है तो कोई इसे सबसे बडी अर्थव्यवस्था के रूप में  ऐसे में ये बहुत जरूरी हो जाता है कि कम से कम ये सुनिश्चित किया जाए कि ऐसे धर्म/आस्था के कारोबारियों से पूरी सख्ती से निबटते हुए इन्हें बिल्कुल खत्म कर दिया जाए ।
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