बुधवार, 14 अप्रैल 2010

अपराध के बढते जाने का कारण है कानून के भय का खत्म होना ..



आज ही समाचार पत्रों में खबर पढने को मिली कि दिल्ली में बम विस्फ़ोट के आरोपियों के मुकदमे में बहुत जल्द ही फ़ैसला आने वाला है । इस खबर के संदर्भ में सबसे चौंकाने वाली बात सिर्फ़ ये लगी कि आरोपी के नाते रिश्तेदार पूरी तरह आश्वस्त दिख रहे थे और उनका कहना था कि आरोपियों को कुछ नहीं होगा । जी हां जिन बम धमाकों में सैकडों मासूमों की जान चली गई , जाने कितनी ही और जान माल की क्षति हुई , उसके आरोपियों को भी कुछ नहीं होगा । और उसे ही क्या , देश की सीने , मुंबई में सबके सामने दु:साहसिक हमला करने वाले अजमल कसाब , संसद तक घुस जा पहुंचे आतंकवादियों में से अफ़जल कुरैशी जैसे दुर्दांत आतंकवादियों , बडे बडे घोटाले घपले करने वाले लालू और मधु कोडा जैसे भ्रष्ट राजनीतिज्ञों , निठारी जैसा वीभत्स कांड करने वालों , उन जैसे अनगिनत अपराध करने वाले हजारों अपराधियों के मन में भी यही विश्वास है कि कुछ नहीं होगा । सच तो है आज उनका ये विश्वास ही ये बता रहा है कि उनके मन में भारतीय कानून और उससे मिलने वाली सज़ा के प्रति कितना भय है ।

         एक तो भारतीय कानून प्रक्रिया , यानि अदालती कार्यवाही इतनी जटिल सुस्त और लंबी है कि पहले तो निचले और प्राथमिक स्तर पर ही उन्हें अंजाम तक पहुंचाने में सालों लग जाते हैं । हद तो इसके बाद होती है जब अपीलों में निचली अदालत में लगे समय से भी दुगुना या तिगुना समय लगता है । और आम आदमी को तब सबसे ज्यादा कोफ़्त होता है जब सबकुछ होने के बावजूद जाने किन किन उपबंधों , उपायों और अन्य नियमों का बहाना बना कर अपराधियों को कठोर दंड नहीं दिया जाता है । इससे एक तरफ़ तो दिनों दिन अपराधियों का साहस बढता जा रहा है । दूसरी तरफ़ इन सबके पीडित लोगों , सैनिकों , ईमानदार सुरक्षाकर्मियों आदि के मनोबल पर सबसे प्रतिकूल प्रभाव पडता है । इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय जगत में भी भारत की छवि एक ऐसे दब्बू देश की बनती है जो सिर्फ़ गिदडभभकियां ही देता रहता है , असलियत में कुछ नहीं करता ।

थोडी देर के लिए ये माना जा सकता है कि आतंकवादियों के साथ निपटने में बहुत सी कूटनीतिक दिक्कतें पेश आती होंगी । मगर एक ऐसा व्यक्ति जो सबके सामने खुले आम लोगों पर गोलियां बरसा रहा है , एक व्यक्ति जो किसी चार पांच साल की बच्ची का बलात्कार करता है , एक व्यक्ति जो पूरी बेशर्मी से लाखों , गरीब आदिवासियों ,किसानों , मजदूरों का हक खा जाता है , उसे अपने अंजाम तक पहुंचाने में भी यदि सरकार और प्रशासन इतने ही विवश हैं तो फ़िर ये किस आधार पर दावा किया जा रहा है कि आज जो समस्या नक्सलवाद के रूप में उभर कर सामने आई है कल को वो किसी और रूप में देश के हर उस घर में जन्म लेगी जो इसका भुक्तभोगी होगा । अभी जो स्थिति है उसमें यही पता लगाना मुश्किल है कि शोषक अधिक हैं समाज में या वो अधिक हैं जिनका शोषण हो रहा है , मगर यकीनन देखने से तो यही लगता है कि मजलूमों की संख्या ही अधिक है । जिस दिन भी आम आदमी को ये लग गया कि अब समय आ गया कि कानून के भरोसे चुप नहीं बैठा जा सकता और वो जंगल के कानून को मानने लगे उस दिन स्थिति यकीनन विस्फ़ोटक होगी मगर अपराध में जरूर कमी आएगी । इसलिए सरकार को चाहिए कि न्याय व्यवस्था और कानूनी प्रक्रिया में जल्द से जल्द बदलाव लाएं ताकि कम से कम अपराधियों को महसूस तो हो कि कानून नाम की भी कोई चीज़  होती है ..वर्ना अभी तो सब यही कहते फ़िरते हैं ..कानून ....ये किस चिडिया का नाम है ॥

12 टिप्‍पणियां:

  1. ye sab padh kar khoon khaul jata hai.. lekin pata nahin jinke hath me power hai wo kis mitti ke bane hain

    जवाब देंहटाएं
  2. bhai sahab, jaldibazi ke faisale me begunaho ko hi jyada saja milegi ye baat aap jaan lijiye.
    moral jaisi cheez ka khatm hona hi apradho ka badhana hai.

    जवाब देंहटाएं
  3. अजय भाई,
    पढने में बहुत जोर लगाना पड़ रहा है आंखों को। बैक ग्राउंड़ बहुत गहरा है।

    जवाब देंहटाएं
  4. गगन जी पता नहीं क्या और क्यों आती है ये दिक्कत शायद थोडा इंतजार करेंगे तो ठीक हो जाएगा क्योंकि बैकग्राऊंड तो बिल्कुल सफ़ेद है ।

    रजत जी , आपकी बात सही है और भारतीय कानून की मूल अवधारणा भी यही है , मगर अफ़जल और अजमल के लिए क्या कहा जाए और ऐसों की संख्या बहुत बढ गई है । हां सच कहा आपने कि सबके भीतर की आत्मा मर चुकी है

    जवाब देंहटाएं
  5. इसमें मीडिया का दोष सबसे अधिक है , कुछ हरामखोर बजाये निष्पक्ष खबर देने के पुलिस का मनोबल गिराने के लिए खुद ही जांच एजेंसी बन जाते है , जिसका लाभ क्रिमिनल उठा रहे है !

    जवाब देंहटाएं
  6. जब कानून को सज़ा देने में मुद्दतें लगती हों तो ऐसे में कुछ और उम्मीद की भी क्या जा सकती है.

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रक्रिया में तो कोई कमी नहीं है। असल बात तो यह है कि अदालतों की संख्या जरूरत की चौथाई भी नहीं है। सरकार को तुरंत अदालतों की संख्या बढ़ाने और आवश्यकता के अनुसार संख्या तक लाने का अभियान आरंभ कर देना चाहिए।

    जवाब देंहटाएं
  8. अपराध रोकने के लिए कानून को तो सख्‍त होना ही चाहिए .. पर हमारी शिक्षा व्‍यवस्‍था या अन्‍य व्‍यवस्‍था में आयी खामियां भी अपराध को बढाने में कारगर है !!

    जवाब देंहटाएं
  9. कानून तो कानून है क्या सख्त क्या नरम!
    मुद्दा यह है कि इसका पालन कौन करता है/ करवाता है?
    निश्चित तौर पर कार्यपालिका!

    न्यायपालिका का काम तो उसके बाद शुरू होता है!!

    जवाब देंहटाएं
  10. y sb padh k khoon khaul jata hai par koi action h nhi leta

    जवाब देंहटाएं

मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...