रविवार, 4 अप्रैल 2010
बदलाव आते नहीं है , लाए जाते हैं ........
आज जो भी परिस्थियां हैं , जैसा भी सडा गला माहौल बन चुका है , जो भी अनैतिक, अवैध, हो रहा है , जिस भी तरह के अपराध किए जा रहे हैं , और जिस तरह की घटनाएं घट रही हैं उससे सब कह रहे हैं कि , बस अब तो ये सूरत बदलनी ही चाहिए , बहुत हुआ अब सहा नहीं जाता ।इस बारे में जब सोचता हूं तो दो बातें एकदम स्पष्त समझ में आती हैं । पहली ये कि ये सब हम सबका ही किया धरा है । हममें से कोई भी इससे अछूता नहीं है , मेरे कहने का मतलब ये है कि आज यदि हम पुलिस पर उंगली उठाते हैं ,शिक्षकों पर प्रश्न उठाते हैं , कहते हैं कि डाक्टर ,इंजिनीयर ,कोई भी ठीक से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं । जबकि हमें ये बहुत अच्छी तरह से पता है कि ये पुलिस , अधिकारी , कर्मचारी, डाक्टर , शिक्षक भी तो हमारे आपके बीच रह रहे परिवारों के ही हैं इसी समाज से ही तो हैं ,कहीं किसी दूसरे ग्रह से आए हुए प्राणी थोडी हैं । दूसरी अहम बात ये कि ये बात हम सब जानते समझते हैं कि स्थिति बदतर होती जा रही है ...जी हां सब ..........फ़िर भी हालात बदलने का नाम नहीं ले रहे । कारण स्पष्ट है बिल्कुल ...बदलाव कभी भी आते नहीं ..उन्हें जबरन लाया जाता है ।
आखिर क्यों हम सब इस सडी गली भ्रष्ट हो चुकी व्यवस्था की धज्जियां उडाने के लिए तत्पर नहीं हो रहे हैं ।क्या अब वो समय नहीं आ गया है जब झूठे मक्कर नेता , आपके पास वोट मांगने पहुंचे और गरीब लोग उसे घसीट कर लिटा लिटा कर लात जूतों से उसकी सेवा करें । क्या अब वो समय नहीं आ गया है जब किसी सरकारी कार्यालय में , टेलीफ़ोन , बिजली के दफ़्तर में , सरकारी अस्पतालों में , बैंकों में ..और बांकी सब जगहों पर भी ..कोई हाथ बढा के कहे कि फ़ाईलों में पहिए तो लगाईये..... और एक तेज़ आवाज़ आए चटाक ....उसकी गूंज से सिर्फ़ उसके कानों में सांय सांय होने के साथ ही बांकियों के कान भी लाल हो उठें । क्या आपको नहीं लगता कि अब समय आ गया है कि बलात्कार जैसे घृणित अपराध करने वाले हैवानों को सरे आम कुत्ते की तरह पीट पीट कर मार डाला जाए । मैं जानता हूं कि बहुत से लोग शायद इसे ठीक न समझें , मगर मैं बता दूं कि ऐसा हो रहा है और इसकी शुरूआत तो हो चुकी है , हां अभी ये आंच जरा धीमी है । शायद आपको मालूम होगा कि अभी कुछ वर्षों पहले ही कुछ महिलाओं ने एक बलात्कारी को झाडू से पीट पीट कर मार डाला था वो भी अदालत परिसर में ही । बात फ़िर उठेगी कि ये तो शायद कानून को हाथ में लेने जैसी बात हो गई जो ठीक नहीं है । अजी कौन सा कानून , कैसा कानून ..जाईये तो सही एक आम आदमी बन कर कोई छोटी सी रिपोर्ट लिखाने थाने , थोडी देर बाद ही वही मन करेगा जो मैंने कहा है । अरे थाने छोडिए अस्पताल, लाईसेंस अथौरिटी , स्कूल ..कहीं भी जाईये ..बस शर्त ये कि एक आम आदमी की तरह ..यकीनन वही सब होगा कि उसके बाद मन में सिर्फ़ यही एक बात उठेगी ..कि अब बस ॥
मगर इस मुद्दे के साथ जुडी मेरे एक अलग और सबसे महत्वपूर्ण चिंता ये है कि , आखिर ये करेगा कौन ?उस गाने के बोल याद हैं आपको .........
आज इस पापी को देंगे सजा मिल कर हम सब सारे ,
लेकिन जो खुद पापी न हो वो पहला पत्थर मारे ॥
अब उस पहले पत्थर उठाने वाले को कहां से लाया जाए । मगर नहीं आप और हम मिल कर ढूढेंगे तो वो भी आपके हमारे बीच मिल ही जाएंगे । मगर यहां ये ध्यान रहे कि , उस पत्थर उठाने वालों कि गिनती , उस पत्थर खाने वालों की गिनती से बहुत कम होगी इसलिए जरूरी है कि उनका हौसला न टूटे ।एक बात और यदि पत्थर उठाने वाले हाथ शक्तिशाली पदों पर हों तो फ़िर उसकी चोट बहुत जल्द ही असरकारक साबित होगी । मगर सवाल ये भी तो बहुत बडा है न कि क्या उस पत्थर को खाने के लिए समाज तैयार है ? हम आप तैयार हैं ? यदि नहीं तो फ़िर इस स्थिति से उकता कर बदलाव की बात करना बेमानी है । मगर मुझे यकीन है कि कभी न कभी ये समय तो आएगा ही ...या शायद आ ही चुका है ।..
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भैया साहब बिल्लकुल्ल असल कह रए हो
जवाब देंहटाएंचलो हो जाये एक पाडकास्ट
सही कहा आपने। बदलाव लाये जाते हैं और बदलाव लाने के लिए स्वयं में बदलाव आवश्यक है अन्यथा बुराई के विरुद्ध खड़ा नहीं हुआ जा सकता है। किसी की पंक्तियाँ याद आतीं हैं-
जवाब देंहटाएंये दुनिया है शराफत से जहाँ पर हक नहीं मिलता
नहीं बागी कोई होता, बगावत करनी पड़ती है
और साथ ही-
सोचा समझा इजहारे गम नपी तुली चालाक हँसी
सीख लिया है हमने यारो जीने के आदाब बहुत
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
रॉबिनहुड का शानदार रेखा -चित्र भी आपके कहे को रेखांकित कर रहा है.
जवाब देंहटाएंबदलाव तो जगत का नियम है। यह सतत चलता है। लेकिन यदि उसे सही दिशा की ओर न मोड़ा जाए तो वह गलत की तरफ चला जाता है।
जवाब देंहटाएंविल्कुल सही कहा आपने...
जवाब देंहटाएंबदलाव के लिए लीडरशिप की आवश्यकता होती है....
हमलोग ज्यादातर तो चीजों को मैनेज करने में लगे रहते हैं....
संवेदनशील प्रस्तुति......
http://laddoospeaks.blogspot.com/
बदलाव लाने के लिए कुछ कर गुजरने की क्षमता होना चाहिए मात्र भाषण से सार्थक नतीजे नहीं निकलते है मित्रवर .... अच्छा विषय उठाने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंअब बदलाव की ज़रूरत है ......सच कहा
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र भाई ,
जवाब देंहटाएंभाषण तो मैं भी नहीं दे रहा हूं मैं तो एक आम आदमी की सोच बता रहा हूं और शायद आप ठीक से पढते तो पता चल जाता कि मैं हर जगह यही कहा है .........हम और आप ....और हां जिस क्षमता की बात कर रहे हैं आप , वो सबमें होती है ..बस खुद को पहचानने की जरूरत होती है ...और सबसे बडी बात कि निराशा से तो कुछ हासिल होने वाला भी नहीं है न ..। स्नेह बनाए रखिएगा
अजय कुमार झा
विचारोत्तेजक!
जवाब देंहटाएंक्रान्तियां हमेशा नेताओं से होती है। प्रत्येक क्रान्ति के पीछे कोई नेता रहा है। जनता तो नेता के पीछे चलती हैं। लेकिन आज तो समाज ने नेता को ही सबसे अधिक भ्रष्ट सिद्ध कर दिया है। इसलिए सुधार चाहिए तो वास्तविक भ्रष्ट व्यक्ति को चाहे वो राजनेता हो, या नौकरशाह या आम जन, चिन्हित करके समाज के सामने प्रस्तुत करना होगा। केवल नेता भ्रष्ट हैं कह देने से भ्रष्टाचार मिटेगा नहीं अपितु बढ़ेगा। क्योंकि हमने अपने भ्रष्टाचार को या अनाचार को भी नेता के माथे मढ़ दिया है। तो ऐसे में क्रान्ति दूत नेता कहाँ से आएगा? इस देश में हजारों नेता है क्या सारे ही अनाचारी हैं? इसलिए अच्छे लो्गों को चिन्हित करना पड़ेगा। नेता सुभाष भी थे, नेता जयप्रकाश नारायण भी थे। आज भी है जो श्रेष्ठ कार्य कर रहे हैं लेकिन मीडिया का कार्य सभी को एक तराजू में तौलने का हो गया है इसलिए समाज की उनके प्रति श्रद्धा खत्म कर दी गयी है ऐसे में कौन परिवर्तन करेगा? व्यापक बहस की जरूरत है, इस मुद्दे पर।
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