अभी हाल ही में दंतेवाडा में जो कुछ भी नक्सलवादियों ने हैवानियत का नंगा नाच करते हुए उससे कोई आश्चर्य नहीं हुआ । न ही सैनिकों के शहीद हो जाने का गम , सैनिक जीवन का अंत शहादत के चुंबन से हो तो उसकी मौत भी सार्थक हो जाती है । किंतु जब उन शहीदों की आत्मा बन के सोचा तो देखा कि वे जैसे कह रही थीं , चलो मौत मिली ये तो ठीक हुआ , लेकिन इस वर्दी को पहनते समय तो यही सोचा था न कि जब भी ये वर्दी तन से लिपटी हुई और खून से नहाई हुई जमीन पर गिरेगी तो , दुशमन की गोली छाती को आर पार करेगी , मगर ये कहां गुमान था कि यूं अपने ही देश में कुछ लोग हथियार उठा कर हम पर ही इस तरह से घात लगा कर हमें मार डालेंगे । अब इस बात की लाख सफ़ाई दी जाए कि नक्सलवाद कोई एक दिन में नहीं पैदा हो गया या फ़िर ये कि उन्होंने भी मजबूर होकर ये कदम उठाया है आदि आदि जैसे सडे गले हुए तर्क अब गले से नहीं उतरते ।
मैं उन नक्सलवादियों से सिर्फ़ चंद सवालों के उत्तर चाहता हूं । जिन जवानों को आपने जाने किन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हैवानों की तरह मार दिया क्या वही लोग आपकी हालत के लिए जिम्मेदार थे ?? आज उन शहीदों के परिवारों में विधवा , अनाथों और बेसहारों को आप कौन सी दलील देकर ये समझा सकेंगे कि ये सब आपने अपनी कोई लडाई लडने के लिए की थी । उन बहादुर जवानों से देश के लिए लडते हुए दुश्मनों की गोली खाकर शहीद होने का गर्व भरी मौत को गले लगाने का हक आपने अपनी निहायत ही घटिया और कायर हरकत से छीन कर क्या हासिल कर लिया ?? यदि आप अपनी ताकत का ही एहसास कराना चाहते थे तो आमने सामने आकर लडते , फ़िर देखते , और दुनिया भी देखती कि कौन कितना वीर था । चलिए मान लिया कि आपको शायद यही एक रास्ता अब दिखाई सुनाई देता है तो फ़िर लीजीए न ये रास्ता तो और भी अच्छा है और आपके मनोनुकूल भी है ।
मारिए ..जरूर मारिए ..मगर हिम्मत है तो फ़िर उन्हें मारिए जो आपकी इस हालत के लिए जिम्मेदार हैं । उन नेताओं को मार डालो जिन्होंने तुम्हारे सपने बेच कर अपने लिए सुख सुविधा खरीदी है । जाओ मारो उन अधिकारियों को जो तुम्हारा हक खा गए । जाओ मारो उन्हें जो तुम्हारा निवाला छीन कर बैठे हैं ।क्यों हिम्मत नहीं है ...ये संभव नहीं लगता । क्यों भाई ..आखिर क्यों ..जब दूसरे देश से चंद लोग आकर मुंबई महानगर में आकर मौत का तांडव कर सकते हैं तो फ़िर तुम क्यों नहीं । जब कुछ आतंकवादी देश की संसद तक पहुंच जाते हैं तो तुम्हारी बंदूंकों की हद में ये नेता , भ्रष्ट अधिकारी , और वो तमाम लोग क्यों नहीं आते जो इसके लिए जिम्मेदार हैं । मगर नहीं शायद तुममें इसकी हिम्मत नहीं है ..या फ़िर जरूर ही वो बात वो मकसद नहीं है तुम्हारा जो दिखता है । देश के सैनिकों को अपने घर में कायरों की तरह छुप कर मारने से कुछ भी कभी भी हासिल होने वाला नहीं है । कभी अपने बिल से बाहर निकल के देखो फ़िर माने कि ...। चलो छोडो , अब समय आ गया है कि तुम्हारे साथ भी वही सलूक किया जाए जो समाज की गंदगी साफ़ करने के लिए अक्सर किया जाता है । और पूरी तरह से तुम्हें नेस्तनाबूत कर दिया जाए ॥
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010
नक्सलवादियों ....मारो ....जरूर मारो .....
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आपने बहुत दिल से और लीक से हटकर लिखा है बधाई
जवाब देंहटाएंअपील अपील तो करती है पर भावुकता भरी है।
जवाब देंहटाएंDinesh ji ki baat par gaur farmaya jaye.. aur bhaia lagta nahin ki rajneeti ke jaal me uljha ye mahabharat haal-filhaal aasani se rukne wala hai, mar rahe hain bechare sainik.. sarkar un sainikon ko naxals ko khatm karne bhej deti hai lekin samasya ki jad tak pahunch kar use khatm nahin karti. Naam to rakh liya Gandhi ki party ka aur kaam hain hitlar ke..
जवाब देंहटाएंbas kahne wali baten hain ki 'paap se ghrina karo, papi se nahin' are bhai sabse bade papi to dilli me hi baithe hain jo is sab ke janak hain. Is gurilla yuddh me pata to sainikon ko bhi tha ki ya to hum maarenge unhen ya wo hamen lekin papi pet ke liye wo bechare bhi sar jhukaye aadesh ka palan karte rahe. Wahan naxals ko bhi bardasht nahin hua ki hamari samasya suljhane ke wade karke peeth peechhe sarkar khanjar bhaunk rahi hai hamen maarne ke liye CRPF bhej rahi hai. ye sadiyon se hota aaya hai ki dushmani kisi ki bhi ho jaan sainik hi ganwate hain.
Aapka aakhiri stanza sahi laga lekin kya kahen wahan kya halaat rahe honge..
ye nikammi sarkar tab kya kar rahi thi jab in logon ko hathiyaar supply kiye ja rahe the?? ab ye Chidambaram isteefe ki nautanki kar raha hai, kyonki maloom hai ise na wo Manmaun sweekar karega aur na unki madam. haan itna jaroor hai ki janta ki sahanubhooti mil jayegi aur unki nazar me fir se imaandaar ho jayenge jisse ki agle chunaav me log is mahabhool ko bhi bhula den.
इसे मार्मिक अपील कहूँगा...एक अलग तरह से आपने बात रखी है.
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक अपील
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