आईपीएल खेलों में जिस तरह के घपले घोटाले की आशंका और अनुमान ज़ाहिर किए जा रहे हैं , उससे इतना तो तय है कि बहुत कम समय में ही इतनी बडी लोकप्रियता पाने और खेल को दीवानेपन की हद तक पहुंचाने के पीछे जो लक्ष्य था वो कम से कम खेल भावना तो कतई नहीं थी । अब जबकि पहले शशि थरूर की महिला मित्र सुनंदा , के बाद ललित मोदी के खाते और खुद आईपीएल के बही खातों की जांच हो रही है तो ऐसा लग रहा है जैसे गांठ एक एक करके खुल रही है । इसी वर्ष देश में राष्ट्रमंडल खेल आयोजित किए जाने हैं । ये ओलंपिक, एशियाड जैसा ही एक बडा खेल आयोजन है , जिसका आयोजक बनना किसी भी देश के लिए फ़ख्र की बात है । मगर जिस तरह से उसके आयोजन के लिए , सरकार देश की आम जनता पर तरह तरह के कर थोप रही है , आम रोज़ मर्रा की ज़रूरत की चीज़ों का दाम बढा कर उस मुनाफ़े से खेल आयोजन की राशि का जुगाड कर रही है उसने आम जनता के मन में ये प्रश्न उठा दिया है कि क्या अब खेल सचमुच सिर्फ़ खेल ही रह गए हैं । खेल का उद्देश्य क्या था , और क्या आज भी उसी उद्देश्य को लेकर , उसी खेल भावना को लेकर , सरकार ,समाज ,देश, और खिलाडी भी खेल को सिर्फ़ खेल समझ कर खेल रहे हैं । शायद नहीं ।
पिछले कुछ समय में खेलों का चेहरा , उनका रुतबा बहुत बढा है । आज खेल और उनके खिलाडी किसी सेलेब्रिटी से कम नहीं हैं । न सिर्फ़ प्रसिद्धि बल्कि , पैसा , ग्लैमर , और भी सब कुछ उनको उपलब्ध कराया जा रहा है । यदि एक मायने में देखें तो ये बहुत ही सकारात्मक पहलू है कि कम से कम इसी बहाने अब खेलों को व्यावसायिक रूप में बदला तो गया है । कम से कम इसी बहाने अब खेल में भी कैरियर बनाने को लेकर युवा गंभीर तो हुए ही हैं । मगर ये सिर्फ़ एक ही पक्ष है । अब जरा दूसरा पक्ष देखते हैं । सिर्फ़ क्रिकेट को छोड दिया जाए तो अन्य सभी खेलों में आज भी खिलाडी अपने अस्तित्व के लिए जूझते हुए ही दिखते हैं । और कई खेलों में तो खिलाडियों की हालत इतनी बदतर और दयनीय हो जाती है कि अक्सर वो अखबारों की सुर्खियां बनती है । और किसी दूसरे खेल का क्या कहें जब राष्ट्रीय खेल हाकी की ही हालत पतली है । जहां तक क्रिकेट की बात है तो बेशक भारत और एशियाई महाद्वीप में इसकी लोकप्रियता का डंका बज रहा हो मगर बदलते समय के साथ धीरे धीरे ये खेल भी अपने जेंटलमैन छवि से बाहर निकल कर कई बुराईयों का जनक तो , तो कईयों का वाहक बन गया । मैच फ़िक्सिंग , खेल में गाली गलौज की भाषा , खिलाडियों के चयन में जाने कैसी कैसी बातें , और अब टूर्नामेंट आयोजनों से करोडों अरबों की काली कमाई।
सुना है कि खेलों की खोज का उद्देश्य था , खेल खेल में शारीरिक सौष्ठव , स्फ़ूर्ति , मनोरंजन, सहभागिता की भावना , प्रतिस्पर्धा को इंसान के अंदर विकसित करना । और यही कारण था कि कुशती, दंगल, कबड्डी, खोखो जैसे खेल हुआ करते थे । मगर कालांतर में आदमी ने अपने अन्वेषी चरित्र के अनुरूप न सिर्फ़ खेलों को खेलने बल्कि शायद मूल खेल भावना को ही बदल दिया । आज सबको खिलाडी इसलिए नहीं बनना है कि उसे अपने देश का प्रतिनिधित्व करना है या कि उस खेल के प्रति उसका जुनून ऐसा करने को कह रहा है , हो सकता है कि इस बात का अपवाद भी हो , मगर आज सबको खेल में मिलने वाला पैसा, प्रसिद्धि और ग्लैमर ही चाहिए । इससे इतर सरकार खेलों को प्रोत्साहित करने और उससे भी ज्यादा इन खेल आयोजनों के नाम पर गरीब जनता से जो उगाही कर रही है वो बहुत ही शर्मनाक है । आखिर क्या वजह है कि क्रिकेट से आ रहा अथाह पैसा दूसरे खेलों के लिए नहीं उपयोग किया जा सकता ??
मंगलवार, 20 अप्रैल 2010
खेल के बहाने खेला जा रहा है बहुत बडा खेल
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सादर वन्दे!
जवाब देंहटाएंअपना सपना मनी मनी
और खेल हो तो वेरी फनी.
कृपया इसपर भी ध्यान देने का कष्ट करें
थू है उनपर !
http://www.aaryashri.blogspot.com/
रत्नेश त्रिपाठी
Bahut achchha sawaalapne uthhaya Ajayji.TARAS TO UN LOGON KI SOCH PER AATA HAI ,JO IS KHEL KO KHEL KAHTE HAIN,JABKI SAB JAAN RAHE HAIN KI ISME FIXING BAHUT MAMOOLI BAAT HAI.jO DEKH RAHE HAIN,WOH NAHIN HAI,JAISE WWWF MEIN JAISA UTHHANA AUR PHAINKNA DIKHAATE HAIN ,VAISA DARASALHOTA NAHIN HAI.KYUN HOTA HAI JAB KABHI IS KHEL MEIN KAHIN FIXING KI CHARCHA HOTI HAI TO MEDIA SAMET SABHI KA MUH TURANT SEE DIYA JAATA HAI.AUR KHEL KE DAURAAN SHARAAB SARE AAM BAATI JAATI HAI,CHEER DANCE DIKHAAYA JATA HAI..TO AAP YAHAAN KAUNSA KHEL DEKH RAHE HAIN YAHAAN?SAKAAR KO TURANT IN IPLEEON KO ANDAR KARNA CHAHIYE AUR INKE KAALE DHAN KO ZABT KARNA CHAHIYE.DESH KO HARSHAD MEHTAAON SE BACHANA HOGA AUR HAMAARE AUR KHELON KO BADHAAVA DEKAR IN SO CALLED KHILAADIYON KO KICK OUT KARKE GULAAMI KE PRATEEK KHEL SE BACHAANA HOGA.
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