एक खबर के अनुसार राजधानी दिल्ली में प्रतिदिन औसतन १७ बच्चे गायब हो रहे हैं । मीडिया में आई एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है कि एक जून २००८ से लेकर १२ जनवरी तक राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों से २२१० बच्चे लापता हो गए हैं , जिनका अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है । इस मामले का खुलासा तब हुआ जब एक विचाराधीन मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को आदेश दे कर हलफ़नामा दायर करने को कहा कि जब राजधानी में इतनी बडी संख्या में प्रतिदिन बच्चों के गायब किए जाने की खबरें आ रही हैं तो ऐसे में दिल्ली पुलिस इस दिशा में क्या कर रही है ।
अब ये अंदाज़ा सहज़ ही लगाया जा सकता है कि , जब राजधानी दिल्ली का ये हाल है तो पूरे देश में स्थिति क्या होगी । ज्ञात हो कि ऐसा ही कुछ , पिछले कुछ वर्षों में भी हुआ था जब राजधानी से सटे गांव निठारी में भी एक के बाद एक कई बच्चों के गायब होने की खबरें सामने आईं और उसकी तह में जाने पर जो कुछ भी सामने निकला उसने न सिर्फ़ अपराध जगत को चौंका दिया बल्कि इंसानियत को भी शर्मसार कर दिया ॥जाने कितने ही मासूमों को अपनी जान से हाथ धोना पडा । ऐसे ही कुछ समय पहले राजधानी में एक गिरोह का पर्दाफ़ाश किया गया था जो मासूम बच्चों, गरीब मजदूरों और भिखारियों तक को अगवा करके ले जाता था , बाद में उनकी आंखें , किडनी और अन्य अंगों को निकाल कर उन्हें ऊंचे दामों पर बेच दिया जाता था । अब इन सारे तथ्यों के मद्देनज़र ये सहज़ ही अंदाज़ा हो जाता है कि बच्चों की इतनी बडी संख्या में गुमशुदगी किसी बहुत बडी साजिश के तहत ही हो रहा है ।
इन आंकडों में तो सिर्फ़ वो संख्या शामिल है जो राजधानी में दर्ज़ की जा रही है , इसके अलावा सैकडों वो मासूम जो रोज अपने गांव घरों से भाग कर दिल्ली के अलग अलग बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर लावारिस की तरह आते हैं और अगले ही दिन जाने कहां गुम हो जाते हैं । दिल्ली पुलिस , प्रशासन , इस दिशा में कतई गंभीर नहीं दिखतीं और तो और दिल्ली में कार्यरत हजारों स्वयं सेवी संस्थाएं भी इस दिशा में कुछ करती नहीं दिखती हैं । इसमें एक बहुत बडा दोष अभिभावकों का भी है जो ये जानते बूझते कि आज के हालातों में बच्चों को ज्यादा सुरक्षा और सरंक्षण की जरूरत है , उन्हें अकेला छोडने की भूल करते हैं । यदि जल्दी ही स्थिति पर नियंत्रण नहीं किया गया तो हालात विस्फ़ोटक हो सकते हैं । किसी घर के चिराग का यूं असमय ही लुप्त हो जाना उस परिवार पर किसी कहर से कम नहीं होता और ये बात तो सिर्फ़ भुक्तभोगी परिवार ही बेहतर समझ सकते हैं । भविष्य में अदालत के दबाव में ही सही यदि दिल्ली पुलिस इस दिशा में कुछ करती है तो ये शायद कुछ राहतकारी हो । मीडिया को भी ऐसी घटनाओं को अपनी प्राथमिकता सूची में रखना चाहिए ॥
रविवार, 25 अप्रैल 2010
राजधानी में फ़िर गायब हो रहे हैं मासूम बच्चे
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पुलिस को इस पर ध्यान देना चाहिए. लेकिन? मर्ज बहुत हैं डाक्टर और दवा कम।
जवाब देंहटाएंइस देश में मंत्री मंत्रालय में सारा दिन क्या करता है ,इसका लेखा जोखा जिस दिन से मंत्रालय के बाहर बोर्ड पे चिपकाना अनिवार्य कर दिया जायेगा, उस दिन से पुलिस भी अपना काम मुस्तैदी से करेगी / तब - तक हमलोगों को अपना और अपने बच्चों की सुरक्षा खुद ही करनी पड़ेगी /
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचिंताजनक है
जवाब देंहटाएंबहुत चिंता का विषय है...इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए
जवाब देंहटाएंये तो निहायत चिन्त्ता का विषय है....पुलिस को इस ओर ज़रूर ध्यान देना चाहिए..
जवाब देंहटाएंनिराशा उपजती है ,कुछ नहीं हो सकता एक और निठारी का इंतज़ार कर रहा है प्रशासन ....
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