बुधवार, 17 मार्च 2010

गुटखा पान मसाला : एक धीमा ज़हर

गुटखा : एक धीमा जहर 



आज से एक दशक पहले तक आम लोगों ने यदि किसी पान मसाले के बारे में देखा सुना था या कि उपयोग किया करते थे तो वो शायद पान पराग और रजनीगंधा हुआ करता था । उसकी कीमत उन दिनों भी आम पान मसाले या सुपाडी से कुछ ज्यादा हुआ करती थी । और लोग बडे शौक से उसे खाया चबाया करते थे । मगर तब तक ये एक बुरी लत नहीं बनी थी और न ही तब आज की तरह घटिया पान मसाले जो अब गुटखे के नाम से प्रचलित हैं , का चलन इतने ज़ोरों पर था । मगर पिछले दस वर्षों में इस गुटखे खाने का चलन इतना जोर पकड गया है कि अब ये एक धीमे ज़हर के रूप में सबको डसता जा रहा है । सबसे दुख की बात तो ये है कि इस गुटखे खाने की लत के शिकार सबसे अधिक ११ वर्ष से ४० वर्ष की आयु के हैं । 


          बिहार , उत्तर प्रदेश , बंगाल , उडीसा, दिल्ली , आदि राज्यों में तो प्रति वर्ष इसकी खपत में लगभग ३८ प्रतिशत की वृद्धि ही ईशारा कर रही है कि ये अब एक नशे के लत की तरह सबको जकडता जा रहा है । आज बाज़ार में सिर्फ़ पचास पैसे एक रुपए के पाऊच में उपलब्ध गुटखे का ये पैकेट ,दांतों के  खराब होने  मुंह एवं गले के कैंसर , गुर्दे , आमाशय, आंत आदि सबके लिए बेहद ही घातक साबित होता है । इसके ज़हरीले होने का प्रमाण इस बात का उदाहरण अक्सर देकर किया जाता है कि यदि किसी गुटखे के पाऊच में थोडे से गर्म पानी की बूंदों के साथ ..ब्लेड के टुकडे भी रख दिए जाएं तो कुछ समय बाद वे भी गले हुए मिलते हैं । अब इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है कि ये शरीर के अंदर जाकर कितना भयानक प्रभाव छोडता होगा ।


 इस मुद्दे पर गौर करने लायक एक और बात ये है कि ,शायद ही इस बात पर किसी ने कभी ध्यान दिया हो कि इन गुटखों का घटिया निर्माण और बहुत ही बेकार सामग्री के इस्तेमाल के कारण इसका मूल्य काफ़ी कम होता है । इसका दोहरा बुरा प्रभाव आम व्यक्ति पर पडता है । एक तरफ़ तो एक घटिया उत्पाद के सेवन से वो लगातार ही अपनी सेहत से खिलवाड करता जाता है , दूसरी तरफ़ चूंकि ये बेहद सस्ता होता है इसलिए धीरे धीरे खाने वाले की लत बढती जाती है । मोटे मोटे आंकडों के हिसाब से इसे खाने वाला एक व्यक्ति प्रति दिन कम से कम तीन गुटखे और ज्यादा से  ज्यादा पंद्रह बीस तक भी खा जाते हैं । सबसे खौफ़नाक बात ये है कि स्कूलों के बाहर इसकी खासी खपत देखी गई है । मतलब स्पष्ट है , आज के बच्चे भी तेजी से इसकी गिरफ़्त में फ़ंसते जा रहे हैं ।हैरत और दुख की बात ये भी है कि सरकार को इससे शराब की तरह बहुत बडी आय भी नहीं हो रही है जो कि सरकार इस पर अंकुश नहीं लगा रही है । यदि जल्दी ही इस ज़हर को फ़ैलने से नहीं रोका गया तो एक दिन ऐसा आएगा जब ये ज़हर लाईलाज़ हो जाएगा ।

11 टिप्‍पणियां:

  1. अजय जी बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने।इसमे हमारा राज्य छ्त्तीसगढ भी पीछे नही है।मुझे पूर्व सरकार ने राज्य साक्षरता मिशन का सदस्य मनोनित किया था और उस की एकमात्र बैठक जो मैन अटैंड की थी उसमे मैने इसी गुटखे का मुद्दा उठा दिया था।मुख्यमंत्री की अध्यक्षता मे हुई उस बैठक मे जब नशे के खिलाफ़ जनजागरण अभियान चलाये जाने की बात सचिव आईएएस अफ़सर नंद कुमार ने की तो डा रमन सिंह मुख्यमंत्री भड़क गये और उन्होने गांव गांव मे गुटखा बिकने और बच्चों के इस्की लत लगने पर नाराज़गी जताई।इस पर मैने उन्हे टोका और कहा अगर सच मे बुरा लगता है तो बंद करवा दिजीये इसकी बिक्री।मेरी आवाज़ पहली आवाज़ थी जो सदस्यो की ओर से निकली थी।उन्होने मुझे देखा और हंसते हुये पूछा था तो आप भी हैं।अफ़सरो के तमाम विरोध के बाद जब मैने कहा कि यदी सच मे बुरा लगता है तो इसकी बिक्री पर प्रतिबंध की घोषणा किजीये नही तो जैसा चल रहा है चलने दिजीये।मुख्यमंत्री ने उसी समय इसकी बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी और जैसा की अफ़सरों ने पहले ही शंका ज़ाहिर की थी गुटखा कंपनियों को उस आदेश पर कोर्ट से स्टे मिल गया।अब बताओ क्या किया जा सकत्ता है?वैसे आपकी जानकारी के लिये बता दूं कि मैं गुटखा को छुता भी नही हूं और पता नही क्यों मुझे उससे चीढ सी है?

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  2. धीमा नहीं superfast जहर है जनाब ..यकीन न हो तो आजमा कर देख लो

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  3. अजय भाई
    सही कहा किन्तु इस पर नियंत्रण के लिए तो
    कठोर सरकारी कोशिशें ज़रूरी है. भारत में स्वास्थ्य
    संबंधी कानूनों का पालन कराना बेहद कठिन है
    सारा मामला जन जागरण अभियानों के हाथों
    में सौंपना लोड-शिफ्ट फार्मूले का अंश है.

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  4. अजय जी मैने तो आज तक इसे दॆखा भी नही, हां सुना बहुत है, इसे क्यो नही बंद कर देते.... सारे देश मै इस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिये,इस से सावधान करने के लिये आप का धन्यवाद

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  5. बहुत जिम्मेदार पहल. सार्थक लेखन. बधाई

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  6. सार्थक आलेख...बहुत लती होता है ..एक बार बस खाने की देर है.

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  7. इस धीमे जहर पर सरकारों को तुरन्त प्रतिबन्ध लगाना चाहिए!

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  8. अजय जी, ज्वलन्त प्रश्न उठाया है आपने! छोटे छोटे बच्चे तक इस लत का शिकार बनते जा रहे हैं।

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  9. सार्थक बात

    उम्दा पोस्ट !

    आपका अभिनन्दन !

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  10. अजय जी जब तक लोग बाग़ स्वयं जागरुक नहीं होंगे तब तक इसे नियंत्रित करना मुश्किल है ...

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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