अक्षम होती विशिष्ट सुरक्षा एजेंसियां ..........

अब तो ये आए दिन की खबर सी बन गई है कि सीबीआई को अदालत से फ़टकार पडी और अब तो इस खबर पर कोई खास तवज्जो भी नहीं जाती । ऐसा लगता है मानो स्थानीय पुलिस को रोजाना की तरह किसी अनियमितता, भ्रष्टाचार, लापरवाही आदि के लिए झाड पड रही हो । ये बेहद दुखद बात है कि सीबीआई , रा, आईबी , सीआईडी, सीबीसीआईडी, डीआईयू, जैसी विशिष्ट सुरक्षा एजेंसियां जिन सभी को किसी खास उद्देश्य और कार्य के लिए बनाया गया था आज की तारीख में सब की सब नकारा साबित हो रही हैं । देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाले आतंकी हमलों की आशंका भी न लगा पाना, विदेशी धरती पर देश के खिलाफ़ रची जा रही साजिशों को समय से पहले न भांप पाना, स्थानीय पुलिस द्वारा जांच में विफ़ल रहने के बाद , आगे उन अपराधों में सीबीआई, सीबीसीआईडी, सीआईडी जैसी संस्थाओं द्वारा भी कोई सफ़लता न हासिल करना यही साबित कर रहा है कि अब इन संस्थाओं की धार भी कुंद पडने लगी है । और सीबीआई जैसी विशिष्ट संस्था की स्थिति तो कई बार स्थानीय पुलिस से भी दयनीय हो जाती है । आरूषि मर्डर केस का हश्र सामने ही है जिसमें अभी भी स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी उस घटना के समय थी । समझ में नहीं आता कि आखिर इन विशिष्ट एजेंसियों की कार्यप्रणाली और क्षमता को होता क्या जा रहा है ?
ये तो सबको ज्ञात है कि इन विशिष्ट सुरक्षा एजेंसियों का गठन , बहुत सोच विचार कर , और अलग अलग उद्देश्यों के लिए किया गया था । यही कारण है कि इन एजेंसियों की नियुक्ति , कार्यप्रणाली, अधिकार और शक्तियां आम तौर पर अपनाई जाने वाली सभी पद्धतियों से अलग और काफ़ी कठिन होती हैं । इतना ही नहीं इन्हें न सिर्फ़ विशेष प्रशिक्षण , बल्कि बहुत सारे साधन, हथियार, और जाने कौन कौन सी सुविधाएं व विशेषाधिकार से लैस करवाया जाता है । इन सबका एक ही मकसद होता है कि ये एजेंसिया विशेषज्ञता हासिल करके खास और त्वरित परिणाम देंगी । मगर जिस तरह कि पिछले दिनों देखने में आया है कि आतंकियों द्वारा किसी भी घटना या आतंकी कार्यवाही से पहले तसल्ली से सब कुछ प्रायोजित करना और सुरक्षा एजेंसियों को उसकी भनक तक न लग पाना इनके साथ साथ देश की सुरक्षा नीति पर भी प्रश्न चिह्न लगाती है । यही हाल कमोबेश हर विशिष्ट एजेंसी का है ।
इसमें कोई संदेह नहीं कि इन एजेंसियों पर न सिर्फ़ कार्यबोझ का दबाव बढा है बल्कि बहुत तरह के राजनीतिक और प्रशासनिक मजबूरियों से भी इनका सामना हो रहा है । इस बात को सीबीआई के भूतपूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह अपनी एक चर्चित पुस्तक में उठा भी चुके हैं कि बेशक अधिकारों में एक निरंकुशता का प्रदर्शन करने के बावजूद लगभग कुछ भी स्वतंत्र नहीं रह पाता है । कई बार तो ढके छुपे तौर पर खुद इनकी नियंत्रक संस्था यानि गृह मंत्रालय पर ही बहुत सारा हेरफ़ेर और दबाव डालने का आरोप लगता रहा है । खासकर राजनीतिक अपराधियों और प्रशासनिक अपराधों में तो ये दबाव अपने चरम पर होता है ।
सबसे बडा सवाल ये है कि आम जनता द्वारा दिए जाने वाले करों से आर्थिक संबलता हासिल किए हुए इन विशिष्ट एजेंसियों से यदि अपेक्षित कार्य और परिणाम नहीं निकल पा रहा है तो फ़िर क्यों न इन्हें पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए । ये ठीक है कि ये तो कतई मुनासिब नहीं है तो फ़िर ऐसे में , इन सुरक्षा एजेंसियों को नए सिरे से चुस्त दुरूस्त करना चाहिए । जिस तरह से समाज में अपराध बढ रहा है , दिनोंदिन आतंकी घटनाओं मे वृद्धि हो रही है उस स्थिति में तो इन सुरक्षा एजेंसियों के ऊपर जिम्मेदारी और बढ जाती है इसलिए अब समय आ गया है कि बिना विलंब किए इन एजेंसियों का कायापलट किया जाए ।
इन सबल सुरक्षा एजेंसियों का न तो सरकार और न ही गुंडों के दबाब में आना चाहिए था .. इससे आम लोगों का तो सरकार के द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा से विश्वास उठ ही गया है !!
जवाब देंहटाएंबहुत अफसोसजनक और दुखद स्थितियाँ हैं. विचारणीय आलेख.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा अपने,इनकी कायापलट का समय आ गया है,अच्छी पोस्ट,सोचनीय लेख.
जवाब देंहटाएंविकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com
जब सत्ता किसी ऐजेंसी का दुरुपयोग आरंभ कर देती है तो उन की यही हालत होती है।
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