शुक्रवार, 12 मार्च 2010

विकास या विध्वंस : तय खुद करना है


आज विश्व समाज जिस दो राहे पर खड़ा है उसमें दो ही खेमे स्पष्ट दिख रहे हैं। पहला वो जो किसी भी कारण से किसी ना किसी विध्वंसकारी घटना, प्रतिघटना, संघर्ष, आदि में लिप्त है । दूसरा वो जो विश्व के सभी अच्छे बुरे घटनाक्रमों , उतार चढाव , राजनितिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों के साथ अपने विकास के रास्ते पर अपनी गति से बढ़ रहा है। आप ख़ुद ही देख सकते हैं कि , एक तरफ़, अमेरिका, इंग्लैंड, जापान। यूरोप, चीन, भारत, फ्रांस और कई छोटे बड़े देश अपनी अपनी शक्ति और संसाधनों तथा एक दूसरे के सहयोग से ख़ुद का और पूरे विश्व का भला और विकास करने में लगे हुए हैं। वहीँ एक दूसरा संसार जिसमें पाकिस्तान, इरान, अफगानिस्तान, कई अरब और अफ्रीकी देश, आदि जैसे देश हैं जो किसी न किसी रूप में अपने पड़ोसियों और एक हद तक पूरे विश्व के लिए अनेक तरह की परेशानियों का सबब बने हुए हैं। या कहें तो उनका मुख्य उद्देश्य ही अब ये बन गया है कि अपने नकारात्मक दृष्टिकोण और क्रियाकलापों से पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर लगाये रखें ।

ये जरूर है कि जो देश बिना किसी अदावत के अपने विकास और निर्माण में लगे हैं , वे ही आज दूसरे विश्व जो कि विध्वंसकारी रुख अपनाए हुए हैं, उनके निशाने पर हैं, कभी आतंकवादी हमलों, तो कभी अंदरूनी कलह के कारण से उनके पड़ोसी यही चाहते हैं कि किसी न किसी रूप में वे भी भटकाव का रास्ता पकड़ लें। लेकिन ये तो अब ख़ुद उस समाज को ही तय करना होगा कि उसे किस रास्ते पर चलना है, वर्तमान में जबकि भारत और पकिस्तान के बीच रिश्ते अच्छी दौर में नहीं हैं , हालांकि दिखाने की कोशिश तो हो रही है तो , ऐसे में तो ये प्रश्न और भी महत्वपूर्ण हो जाता है । क्योंकि इतना तो तय है कि आप एक साथ चाँद पर कदम रखने और दुश्मनों के साथ युद्ध में उलझने का काम नहीं कर सकते, खासकर तब तो जरूर ही, जब आपके सामने अमेरिका का उदाहरण हो। जिस अमेरिका ने ११ सितम्बर के हमले की प्रतिक्रयास्वरूप पहले इराक़ और फ़िर अफगानिस्तान का बेडा गर्क किया उसे देर से ही सही, आज भारी आर्थिक मंदी का सामना करना पर रहा है।

आज विश्व सभ्यता जिस जगह पर पहुँच चुकी है उसमें तो अब निर्णय का वक्त ही चुका है कि आप निर्माण चाहते हैं या विनाश, और ये भी तय है कि जिसका पलडा भारी होगा, आगे वही शक्ति विश्व संचालक शक्ति होगी इन सारे घटनाक्रमों में एक बात तो बहुत ही अच्छी और सकारात्मक है कि आतंक और विध्वंस के पक्षधर चाहे कितनी ही कोशिशें कर लें मगर एक आम आदमी को अपने पक्ष में अपनी सोच के साथ वे निश्चित ही नहीं मिला पायेंगे। और यही इंसानियत की जीत होगी। अगले युग के लिए शुभकामनायें...

4 टिप्‍पणियां:

  1. अगले युग के लिए शुभकामनायें...ये तो दे ही सकते है बाकी कोशिशों के साथ.

    अच्छा सधा हुआ चिन्तन!

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  2. अब इस विनाश से विकास की ओर कैसे पहुंचा जायेगा,दूसरों के लिए परेशानी खड़े करने वाले कब खुद बारूद के ढेर पर खड़े हो जाते है नहीं जानते

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  3. आप ने गंभीर मुद्दे उठाए हैं। लेकिन वास्तविकता कुछ और है। दो खेमें तो हैं दुनिया में विकसित देश और विकासशील देश हैं। जितनी हिंसा है वह सब विकासशील देशों के बीच है। वस्तुतः विकसित देशों की संपूर्ण अर्थव्यवस्था। विकासशील देशों के शोषण पर आधारित है। इस कारण से वे यहाँ कुछ और ही मुद्दे गरमाए रहते हैं। आतंकवाद उन की इस काम में मदद करता है। वे उसे पनपाते रहे, उस की मदद करते रहे। अब वही पनपा हुआ आतंकवाद उन के खुद के लिए और पूरी दुनिया के लिए खतरा बन गया है।
    इस विश्वव्यापी मंदी को तो आना ही था। ईराक और अफगानिस्तान न होते तो और जल्दी आती। उन युद्धों से तो युद्धोपयोगी सामग्री बनाने वाले उद्योगों को बचा लिया गया।
    सही बात तो यह है कि आतंकवाद ने विकासशील देशों को नष्ट किया और उन के आगे बढ़ने में बाधा पैदा की। यदि अमरीका भारत को आतंकवाद से बचाने में रुचि रखता तो अब तक बहुत से आतंकवादी पकड़े गए होते जिन्हों ने भारत में आतंकवाद फैलाया। अमरीका नहीं चाहता कि आतंकवाद भारत में कम हो वह चाहता है भारत उसी में उलझा रहे। वह सिर्फ अपने को बचाना चाहता है, भारत को नहीं, पाकिस्तान को भी नहीं। क्यों की भारत और पाकिस्तान में शांति रहेगी तो वे अमरीका के लिए और अधिक आर्थिक समस्याएँ और चुनौतियाँ प्रस्तुत कर सकते हैं। चीन की तरह।

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  4. धन्यवाद सर .....मगर एक प्रश्न अब भी दिमाग में घूम रहा है कि ...फ़िर क्या ये माना जाए कि ...अमरीका, फ़्रांस , जर्मनी बनने के लिए ...के उन्हीं रास्तों को चुनना पडेगा ...या कि वो जिस पर अभी भारत चल रहा है ???
    अजय कुमार झा

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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