अभी हाल ही में हुई रेल दुर्घटना , और इससे पहले दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड की दुर्घटना ,ने एक बार फ़िर से भारतीय रेलों में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार , रेल प्रशासन और संबंधित लोगों की सोच और प्रतिबद्धता को कटघरे में खडा कर दिया है । भारतीय रेलवे न सिर्फ़ रेलों के परिचालन , बल्कि अपनी बहुत बडी नियोजकों की संख्या के कारण न सिर्फ़ एशिया में बल्कि विश्व में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।भारत में अंग्रेजी शासन के देनों में यदि ये कहा जाए कि भारतीय रेल उनके द्वारा दी गई सबसे बहुमूल्य प्रणाली थी तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी शायद ।इस बात का अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि स्वंत्रता से पहले भारत में अंग्रेजों द्वारा ,बिछाई गई ,रेल पटरियों की कुल लंबाई का सिर्फ़ दो प्रतिशत स्वंत्रता के बाद भारत की सरकारों द्वारा बिछाई गई । न सिर्फ़ सवारी गाडियों बल्कि वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए ढुलाई वाली मालगाडियों के परिचालन का विचार भी उन्हीं की देन थी । रेल परिचालन की ताकत को पहचानते हुए आजादी की लडाई लड रहे रणबांकुरे कहते थे कि जो काम बम और बारूद न कर सके जो काम समाचार और अखबार न कर सके वो काम रेल ने कर दिया
आज भारतीय रेलों के परिचालन को दशकों बीत चुके हैं । भार और व्यवसाय के दृष्टिकोण से आज भारतीय रेल बहुत लंबा सफ़र तय कर चुकी है । ऐसा भी नहीं है कि आधी शताब्दी से ज्यादा उम्र की हो चुकी भारतीय रेलवे , आधुनिक चुनौतियों , नई समस्याओं , और अन्य समकालीन सुविधाओं से लैस होने में बिल्कुल ही कोताही बरत चुकी है । एक साथ बहुत सी परियोजनाओं पर काम चल रहा है । राजधानी , शताब्दी के बाद दुरंतो और भविष्य में बुलेट ट्रेनों के संचालन जैसी महात्वाकांक्षी योजनाओं पर भी काम चल रहा है । भारत में जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि होते जाने के कारण स्वाभाविक रूप से सबसे बडे यातायात साधन के रूप में यात्रियों का भारी दबाव भी कमोबेश भारतीय रेलवे झेलता ही जा रहा है । अब तो कई राज्यों , दुर्गम पहाडियों आदि में भी नई पटरियों को बिछाने का काम जोर शोर से चल रहा है । कुच वर्षों पहले सफ़लता पूर्वक शुरू की गई कोंकण रेलवे परियोजना एक ऐसी ही सफ़लता थी भारतीय रेल के लिए । बरसों पुराने चले रही व्यवस्थाओं , नीरस हो चुके रेल टिकटों , स्टेशनों और प्लेटफ़ार्मों के रंग रूप में समय समय पर बदलाव करने का प्रयास किया जाता रहा है । इसके अलावा पिछले एक दशकों में भारतीय रेलवे ने मुनाफ़े में सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा अर्जित सफ़लता में अपना नाम भी दर्ज़ कराया । लेकिन ऐसा नहीं है कि भारतीय रेलवे का सिर्फ़ यही उजला उजला पक्ष है ।
भारतीय रेल संचालन व्यवस्था को विश्व की कुछ असुरक्षित यातायात व्यवस्थाओं में भी स्थान मिला हुआ है । आंकडे ही बता देते हैं कि छोटी छोटी घटनाओं , लापरवाही से लेकर बहुत ही बडी दुर्घटनाओं से रूबरू होता भारतीय रेलवे इतने समय बाद भी श्रोताओं का विश्वास नहीं जीत सका है । एक सर्वेक्षण के अनुसार भारतीय रेल में सफ़र करने वाले यात्रियों में से ७९ प्रतिशत ने बेझिझक माना कि उन्हें रेल यात्रा में सफ़र करना कष्टदायी और असुरक्षित लगता है । यदि दुर्घटनाओं का आकलन किया जाए तो एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में पिछले कुछ दशकों में भी रेल दुर्घटनाओं में से ३७ प्रतिशत जहां मानवीय भूलों के कारण हुई है तो १९ प्रतिशत दुर्घटनाएं आतंकी घटनाओं के कारण जबकि २२ प्रतिशत मौसम के कारण और बांकी की अन्य कारण जैसे , रेलवे क्रासिंग पर फ़ाटकों का न होना , रेलों की छतों पर सफ़र करना और ऐसे ही कारणों से होती हैं । वैश्विक आतंकवाद पर अध्ययन और विश्लेषण करने वाली संस्था की मानें तो भारत भी उन देशों में शामिल है जहां के यातायात व्यवस्था , हमेशा ही अलगाववादियों , आतंकवादियों , और आंदोलनकारियों के निशाने पर रहती है । ताजातरीन रेल दुर्घटना भी माओवादियों की करतूत का ही परिणाम मानी जा रही है ।
सबसे अहम बात ये है कि भारतीय रेल प्रशासन कभी भी सुरक्षा और सफ़ाई व्यवस्था के प्रति गंभीर नहीं दिखा । हालात का अंदाज़ा इसी बात से हो जाता है कि पिछले कुछ समय से मुनाफ़े में चल रही भारतीय रेल अभी तक अपनी सभी क्रासिंग्स पर फ़ाटकों की व्यवस्थ नहीं कर पाई है , जो प्रति वर्ष होने वाली रेल दुर्घटनाओं का सबब बनते हैं । आज भी सर्दी और धुंध /कोहरे वाले मौसम में रेलों की परिचालन व्यवस्था बिल्कुल चरमरा सी जाती है और बहुत सी दुर्घटनाओं का कारण बनती हैं । बेशक आज रफ़्तार की बात में भारतीय रेल बहुत सी अन्य समकालीन रेल परिचालनों के समकक्ष बन गई है मगर अब भी सुरक्षा की दृष्टि से उनसे कोसों दूर है । अत्याधुनिक संचार प्रणालियां , सुरक्षा उपकरणों , नए संयंत्रों से अभी भी भारतीय रेलों को लैस नहीं किया जा सका है । और हास्यास्पद रूप से यहां के रेल मंत्री कभी रेलों में कुल्हड योजना चला कर तो कभी गरीब रथ चला कर और कभी दुरंतो रेल चला कर अपनी और भारतीय रेलों की सफ़लता का ढिंढोरा पीटते रहे हैं ।
एक आम आदमी की नज़र से देखा जाए तो टिकट लेने से , रेल गाडी में सवार होने तक , सफ़र की शुरूआत से लेकर सफ़र की समाप्ति तक पूरी रेल यात्रा एक कटु अनुभव ही रहता है उसके लिए । बहुत सारी वैकल्पिक व्यवस्थाओं के होने के बावजूद रेल प्रशासन आज तक ये नहीं सुनिश्चित कर पाया है कि रेल यात्री अपने आपको सुरक्षित महसूस कर सकें । बेशक बढती रेल दुर्घटनाओं और उनमें मरने वालों निर्दोष यात्रियों की बढती संख्या को देखते हुए कुछ वर्षों पहले रेल यात्रियों का बीमा करवाए जाने की योजना शुरू की गई थी , किंतु दुर्घटना के बाद जिस तरह से प्रशासन किसी भी जवाबदेही से पल्ला झाड लेता है उसीसे से उसकी नीयत का पता चल जाता है । हाल ही दिल्ली रेलवे स्टेशन पर मची भगदड पर बोलते हुए वर्तमान रेल मंत्री के बयान ने भी ऐसी ही बानगी पेश की थी । सुरक्षा के साथ साथ सफ़ाई और खान पान व्यवस्था का भी यही है । हालांकि कई रेल जोनों में सफ़ाई की व्यवस्था को निजि हाथों में सौंपे जाने के बाद स्थिति में कुछ सुधार अवश्य हुआ है मगर कुल मिला कर स्थिति अभी भी नारकीय ही है । ऐसा ही हाल रेलवे की खान पान व्यवस्था का भी है ।
भारतीय रेल मंत्रालय , रेल मंत्री , रेल प्रशासन , बेशक हर साल कोई न कोई लोक लुभावन योजना बना कर , कभी किराए में रियायत देकर , तो कभी कोई विशेष ट्रेन चला कर आम जनमानस को थोडी देर के लिए भटका दे । मगर जब समय समय पर इस तरह के हादसों में आम लोग अपने परिजनों को खोते हैं तो उनके मन में सिर्फ़ एक ही सवाल टीस मारता है ..........आखिर कब तक ??????????
रविवार, 30 मई 2010
भारतीय रेल : सुरक्षा और स्वच्छता से दूर
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रेलों में और स्टेशन परिसरों में यात्री सुविधाओं की घोर कमी है न जाने कब ये कमी पूरी हो गई।
जवाब देंहटाएंपिछली बार देखा था तो साफ सफाई में निश्चित ही बहुत सुखद परिवर्तन आया है. बाकी ओर भी ध्यान देने की जरुरत है.
जवाब देंहटाएंअनुशासन हीनता और कार्यों में लापरवाही का सर्वत्र बोलबाला है और उसे रोकने वाली व्यवस्था बेकार हो चुकी है ,क्या कहें आगे कैसे-कैसे कुव्यवस्था देखने को मिले ?
जवाब देंहटाएंसारा दोष हम सरकार पर लगा देते हैं....सुरक्षा व्यवस्था तो ठीक है कि इस पर सरकार को ही ध्यान देना है...पर साफ़ सफाई में यात्री क्या करते हैं? जहाँ बैठते हैं वहीँ कूड़ा करते हैं...चाहे वो स्टेशन हो या रेल का डिब्बा ....कम से कम इसमें तो नागरिक भी मदद कर सकते हैं..
जवाब देंहटाएंlagta hai kuchh railway wale bhi aapki post padh rahe hain,tabhi to 3 napasand ho gayi hain.
जवाब देंहटाएंjha ji vastavikta to ye hai ki ye sari samasyayen delhi-bihar rout par hi kyu dikhti hai?is par vichar karenge to khud ko hi jyada doshi payenge.
जवाब देंहटाएंभारत में आबादी का दबाव बहुत है। उस से निपटने के उपाय बहुत कम। कल जयपुर गया था. जाते समय बस पकड़ी आते समय ट्रेन से आया। आते-आते कचूमर निकल गया। कार से जाता तो भी यही होता। 500 किलोमीटर की ड्राइव कचूमर निकाल देती। दूसरा कम से कम तीन गुना खर्च करना पड़ता। हाँ यदि अकेला न होता तो शायद दूसरा ही मार्ग चुनता।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति है,रेलवे का पूरा पोस्मार्टम कर दिया है !
जवाब देंहटाएंसाफ़ सफाई की शिकायत तो हमें भी है! आप रेलवे ट्रैक की तरफ तो देख ही नहीं सकते. आम तौर पे तौलिये और तकिया का खोल...दोनों ही गन्दा रहता है. 'री-यूस' करते हैं बिना धुलवाए हुए. मैंने उनके शिकायत पत्र में तीन बार लिखा है आजतक, लेकिन कभी कोई जवाब नहीं आया.
जवाब देंहटाएंआज के समय में सुरक्षा ही सबसे बडा नकारात्मक पक्ष है रेलवे का।
जवाब देंहटाएंअब तो हालांकि रेलवे ट्रेनों को समय से चलाने में भी तत्परता दिखा रहा है। एक आम आदमी भले ही ना समझ पाये, लेकिन रेलवे जानता है कि वो ट्रेनों को समय पर चलाने में कितनी मेहनत कर रहा है।
हां, गन्दगी भी बहुत बडी समस्या है। भिखारियों पर कोई अंकुश नहीं है। खाने-पीने की गुणवत्ता बेहद खराब है। अभी भी पुराने जमाने की रेल पटरियां बिछी हैं, हमेशा खड-खड खड-खड दिमाग को हिलाकर रख देती है। हालांकि इसमें भी सुधार किया जा रहा है।