सोमवार, 17 मई 2010

खेल बनाम आम जनता : राष्ट्रमंडल खेलों के बहाने कुछ सवाल


राजधानी दिल्ली में आगामी महीनों में होने जा रहे राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन और व्यवस्था के लिए राज्य सरकार को जब अपेक्षित धनराशि नहीं मुहैय्या कराई जा सकी , ( यहां एक बात गौरतलब है कि ये कि ये राज्य सरकार के लिए एक सुखद संयोग है कि अभी केंद्र में भी उसी दल की सरकार है जिसकी राज्य सरकार में अन्यथा खींचतान ज्यादा भी हो सकती थी ), तभी ऐसा लगने लगा था कि राज्य सरकार इसके लिए विकल्पों की तलाश करेगी । सरकार ने बहुत से प्रत्यक्ष परोक्ष फ़ैसले लिए । इनमें आनन फ़ानन में गैसे पैट्रो पदार्थों के दामों मे वृद्धि के अलावा और भी बहुत कुछ सिर्फ़ इस वजह से किया गया ताकि राष्ट्रमंडल खेलों के लिए धन जुटाया जा सके । अब जबकि सूचना के अधिकार के तहत राज्य सरकार से जुटाई गई जानकारी के आधार पर हुए खुलासे के आधार पर ये रिपोर्ट आने पर कि गरीबों के कल्याण के लिए प्रस्तावित कल्याणकारी योजनाओं के निहित धन को सरकार ने इन खेलों के आयोजन में लगा दिया तो सरकार की मंशा और खेलों के साथ आम जनता के सरोकार पर प्रश्न चिन्ह उठ गए हैं ।


किसी भी देश के लिए , कोई भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के किसी भी आयोजन का मेजबान बनना कई मायनों में महत्वपूर्ण और बहुत हद तक आर्थिक रूप से फ़ायदेमंद भी साबित होता है । न सिर्फ़ देश की प्रशासन व्यवस्था , में देश वासियों में , भारत में 1982 , वो वर्ष था जब एशियाड खेलों के रूप में भारत में पहली बार किसी बडे अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था । इस खेल प्रतियोगिता की सफ़लता ने विश्व परिदृश्य में न सिर्फ़ भारत के बढते आत्मविश्चास और विकास को कायम किया बल्कि ,भारत में रंगीन टेलिविजन , राजधानी में व्यापार संवर्धन पार्कों और अप्पू घर सरीखी स्मृतियों को सहेज लिया । एक और बडी उपलब्धि ये रही कि एक दम अप्रत्याशित रूप से भारत का स्थान उस बार पदक तालिका में दूसरा रहा । इन सबसे कुछ बातें तो स्पष्ट हो जाती हैं ।

कोई भी अंतरराष्ट्रीय आयोजन देश की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है । यदि ये कोई खेल आयोजन होता है तो देश के खेल जगत और खिलाडियों को भी इसका सकारात्मक फ़ायदा मिलता है जो उनके सुधरे हुए प्रदर्शन में साफ़ प्रमाणित हो जाता है । यदि आयोजन सफ़ल रहता है तो ये भविष्य में ऐसे सभी आयोजनों के लिए रास्ते खोल देता है ।

किंतु इसके साथ ही इस मुद्दे पर कुछ अन्य बहुत से महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देना भी जरूरी हो जाता है । जिस देश में अब भी सरकार , बुनियादी समस्याओं से जूझ रही हो , अपराध , आतंकवाद , भ्रष्टाचार, और अंदरूनी कलह जैसी जाने कितनी ही मुसीबतें सामने मुंह बाए खडी हों , जिस देश को अभी अपने विकास के लिए जाने कितने ही मोर्चों पर संघर्ष करना बांकी हो , जिस देश को आज अपना धन और संसाधन खेल, मनोरंजन जैसे कार्यों से अधिक ज्यादा जरूरी कार्यों पर खर्च करने की जरूरत हो , सबसे बढकर जिस देश को ऐसे खेल आयोजनो की मेजबानी हासिल करने के बाद , उनकी तैयारी के लिए इस तरह के अपराध ( जी हां सरकार के इस कृत्य को निश्चित रूप से एक सामाजिक और आर्थिक अपराध ही माना जाएगा ) करने की मजबूरी सामने आ जाती हो ,क्या उसके लिए जरूरी है कि विश्च में सिर्फ़ अपनी साख बढाने के लिए वो ऐसे आयोजनों की जिम्मेदारी उठाने को उत्कट हो ।

अभी तो सिर्फ़ कुछ सूचनाओं के मिलने भर से इस बात का खुलासा हुआ है , जाने ऐसी कितनी ही तिकडम सरकार और प्रशासन ने अपने बजट को पूरा करने के लिए लगाई होंगी जिनका खुलासा होना बांकी है । अब यदि खेल और खिलाडियों के दृष्टिकोण से भी देखा जाए तो भी ऐसे आयोजन का सीधा सीधा असर किसी खिलाडी के पूरे खेल जीवन पर पडता है । हां इतना जरूर है कि घरेलू मैदान और घरेलू दर्शकों का फ़ायदा मेजबान खिलाडियों को जरूर मिल जाता है । लेकिन इन सबके बावजूद भारत में यदि क्रिकेट के अलावा किसी भी खेल के खिलाडियों से खेल को अपने कैरियर के रूप में चुनने के प्रति और देश में खेलों के प्रति आम लोगों के बदलते हुए नज़रिए की दृष्टिकोण से देखने की बात है तो स्थिति पूर्णतया निराशाजनक है ।

इसके कारण भी वाजिब हैं , आज भी गाहे बेगाहे इस तरह की खबरें सुनने को मिलती रहती हैं कि किसी खेल में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले अमुक खिलाडी के साथ बुरा सलूक किया गया या वो प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार होकर किसी तरह कोई छोटा मोटा काम करके जीवन यापन करने पर मजबूर है । अभी कुछ माह पहले देश की उडन परी के खिताब से नवाजी गई धाविका पी टी ऊषा के साथ खेल अधिकारियों द्वारा किया गया बर्ताव सबको भूला नहीं होगा ।
यहां एक अहम मुद्दा ये भी है कि आखिर एक आम आदमी को ऐसे अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों से क्या सरोकार हो सकता है , वो भी ऐसे में जबकि उसे रोज आटे दाल के बढते हुए भावों को सिर्फ़ इसलिए जूझना पड रह है क्योंकि उसकी भरपाई किसी खेल आयोजन के लिए की जा रही है ।


सरकार और उसके कर्ताधर्ता तो इतने कृतघ्न हो चुके हैं कि ऐसे प्रकरणों के खुलने के बावजूद भी सरकार और उसके नुमाईंदों की तरफ़ से कोई स्पष्टीकरण तक नहीं दिया गया है । इसका मतलब साफ़ है कि सरकार भी ये सब सोची समझी साजिश के तहत ही कर रही है । एक और पहलू ये भी है कि एक तरफ़ जब दिल्ली में आतंकी घटनाओं की वारदातें , अपराधियों की बढता मनोबल , जैसी प्रवृत्ति भी सामने है , इनके अलावा जगह जगह पर फ़ैली हुई गंदगी ,ट्रैफ़िक के बिगडते हालात , जैसी बहुत सी बातें हैं जिनपर गौर करने की बहुत ही जरूरत है । अभी इन खेलों के आयोजन में बहुत ज्यादा समय नहीं रह गया है देखना है कि तब तक इन खेलों के पीछे चल रहे और कितने खेलों पर से पर्दा उठता है ॥

1 टिप्पणी:

  1. अजय जी अगर इस गेम के पीछे के गेम की ईमानदारी से जाँच की जाय तो कई बड़े-बड़े मंत्री तिहार के अन्दर नजर आयेंगे /

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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