मसूरी टूर पर गए बालाक शिवम की मौत ने एक बार फ़िर से विद्यालय प्रशासन और व्यवस्था द्वारा बच्चों के प्रति बरती जा रही अंसवेदनशीलता और दिन प्रतिदिन होते गैर जिम्मेदार रवैये को एक बार फ़िर से सामने लाकर खडा कर दिया है । ये कोई पहली घटना नहीं है जब विद्यालय प्रशासन की लापरवाही का शिकार होकर किसी मासूम ने अपनी जान गंवाई है । अभी कुछ समय पहले ही राजधानी के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में ,एक बच्ची की ऐसे ही संदेहास्पद स्थिति में मौत हो गई थी जबकि परिजनों का आरोप था कि तबियत बिगडने पर भी स्कूल प्रशासन द्वारा , बच्ची को समय पर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं कराने के कारण हो गई । ऐसे ही कुछ माह पहले एक विद्यालय में अचानक बारिश के दिन फ़ैले करंट लगने से मची भगदड में भी कई बच्चों ने अपनी जान गंवाई थी । इनके अलावा आए दिन बच्चों को स्कूल ले कर आने जाने वाले गाडी का दुर्घटनाग्रस्त होकर बच्चों की जान जोखिम में डालना तो एक आम बात सी हो गई है ।सरकारी विद्यालयों का प्रशासन तो खैर पहले से ही साधनों, धन , और सुविधा का रोना रोता रहता है ।मगर आश्चर्यजनक रूप से जो निजि विद्यालय जाने कौन कौन से मद में इतनी भारी भरकम राशि वसूलते हैं अभिभावकों से वो भी किसी तरह से इन बच्चों की सुरक्षा के प्रति , जरा से भी गंभीर नहीं दिखते हैं । यहां गौरतलब तथ्य ये है कि समय समय पर न्यायपालिका और संबद्ध नियंत्रणकारी संस्थाओं द्वारा इन स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर बहुत से आदेष निर्देश जारी किए जाते रहे हैं । जिनका पालन यूं तो देखने दिखानो को कुछ दिनों के लिए जरूर कर दिया जाता है मगर फ़िर बाद में उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है । उदाहरण के लिए राजधानी दिल्ली में ये आदेश दिया गया था कि वे सभी वाहन जो स्कूली बच्चों को लाने और ले जाने का काम करते हैं उनका रंग पीला होगा ताकि दूर से पता चल सके कि उनमें स्कूली बच्चे हैं , उन सबमें गति नियंत्रक लगे होने चाहिए । मगर आज हजारों की संख्या में सुबह दौडती बसें , वैन , तथा अन्य वाहन मिल जाएंगे जिनमें बच्चों को ले जाया जा रहा है इन आदेशों का उल्लंघन करते हुए ।सबसे बडे दुख की बात तो यही है कि जब भी कोई हादसा होता है तो एक बार फ़िर से सभी नियमों के पालन की खानापूर्ति की रस्म निभाई जाती है उसके बाद फ़िर वही ढाक के तीन पात । इन सभी हादसों , दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवाने वाले बच्चों के दोषियों को कभी सजा भी नहीं मिल पाती है क्योंकि स्कूल प्रशासन मिल कर पुरजोर तरीके से इसकी लीपापोती में लग जाता है ।और आखिर लगे भी क्यों न ,ये तमाम स्कूल और शिक्षण संस्थान , बडे बडे राजनीतिज्ञों, और व्यवसायियों के हैं जो हर तंत्र को आजमा कर ऐसी घटनाओं को दबा देने का प्रयास करते हैं ।आज सबसे अहम समस्या ये है कि शिक्षा अब व्यवसाय का रूप ले चुकी है । आज जिस तरह से स्कूलों में दाखिले से लेकर , विद्यार्थियों की वर्दी , उनकी पुस्तकें , आवागमन के साधन , और जाने किस किस नाम पर अभिभावकों से पैसे वसूलने का जुगाड बनाया जा रहा है उससे ये स्पष्ट दिखता है कि आज शिक्षा सिर्फ़ पैसा कमाने का एक साधन बन गया है । इस बात का अंदाज़ा इस बात से भी होता है कि अभी हाल ही में जब राजधानी दिल्ली में आयकर विभाग ने सभी विद्यालय प्रशासनों को नोटिस भेज कर अपने खातों को जांच करवाने की बात कही तो उनके हाथ पांव फ़ूल गए । शिक्षण के इस व्यापारिक होते रूप पर चिंता यदि न भी की जाए तो कल को देश का भविष्य बनने वाले बच्चों के प्रति , खासकर उनकी सुरक्षा के प्रति इतना गैर जिम्मेदार रुख कैसे अख्तियार किया जा सकता है ? देखना तो ये है कि इस बार ये घटना इस मुद्दे को कितने दिनों तक जीवित रख पाती है ????
बुधवार, 12 मई 2010
असंवेदनशील और गैर जिम्मेदार होते विद्यालय प्रशासन
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जब मास्टरी करना और स्कूल चलाना धंधे में बदल जाए तो भई और क्या अपेक्षित है. अत्यंत दु:खद.
जवाब देंहटाएंस्कूल में चलने वाले कैंप में मैंने भी बहुत साल पहले अपने परिवार के सदस्य को खोया है,पीड़ा समझ सकती हूँ ..पर इन लापरवाह लोगो का कोई इलाज़ नहीं ?
जवाब देंहटाएंज्ञानदत्त जी से जलने वालों! जलो मत, बराबरी करो. देखिए
जवाब देंहटाएंइन विद्यालयों को आपने विद्यालय कह कर संबोधित किया है ,यह तो वैसे ही है जैसे एक गद्दार को देशभक्त कहा जाय / ये तो विद्यालय नहीं बल्कि इन भ्रष्ट मंत्रियों के दलालालय और अभिभावकों के लिए कसाई खाना हैं / ये शिवम की मौत भी तो हर बच्चे से 3500 रुपया उसूलने और बिला वजह के समर केम्प पे भेजने के कारण ही हुई / इन स्कूलों को बच्चों के पढ़ाई और चरित्र निर्माण से कोई वास्ता नहीं है ,इनको तो बस पैसों से मतलब है / हम लोग बेबकूफ है ,जो झूठी शान और झूठी पढ़ाई के लिए इन स्कूलों में अपने बच्चों को भेजते हैं / हम तो अब इन स्कूलों से अपने बच्चों को निकालने की सोच रहें हैं / वैसे मैं इस विषय पर कल एक पोस्ट लिखने की सोच रहा था ,लेकिन आपने लिख दिया और वो भी बहुत ही बढ़िया / ऐसे मुद्दों पे कौन लिख रहा है ये उतना मत्वपूर्ण नहीं जितना इन मुद्दों पे जरूर लिखा जाना / आपको इसके लिए धन्यवाद /115
जवाब देंहटाएंअब तो स्कूल स्कूल ही नहीं रहा ।
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट....आज विद्यालय विद्यालय कम व्यापार केन्द्र ज्यादा हैं...ऐसी दुर्घटनाओं को बस एक घटना मान कर भूल जाते हैं...दुखद है....
जवाब देंहटाएंदुखद प्रकरण
जवाब देंहटाएंअभी किसी मंत्री का बयान नहीं आया?
कि
ऐसे छोट मोटे हादसे होते रह्ते हैं
जब काम मुनाफाखोरी हो तो मानव सब कुछ ताक पर रख देता है
अब तो कोई हलचल भी नहीं होती...
जवाब देंहटाएंये खबर खुशदीप भैया के ब्लॉग पर पता चली तो मन दुखी हो गया.. आपने ये मुद्दा उठा कर बड़ा सही काम किया अजय भईया. जहाँ एक तरफ गलती अभिभावकों की है तो स्कूल वालों की भी कि इतने छोटे बच्चों को ले जाने का मकसद ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाना ही है.
जवाब देंहटाएंक्या कहें. शिवम की खबर बहुत दुखद रही.
जवाब देंहटाएंआज विद्यालय एल अच्छा खासा व्यापार है .....इस व्यापार को करने वालों के लिए बच्चे किसी वस्तु ज्यादा नहीं होंगे ......ये दुःख की बात है की शिक्षा का क्यों हो रहा व्यापारीकरण . .......बहुत सही मुद्दा उठाया आपने .
जवाब देंहटाएंmain ek shikshan sansthaan se hi sambandh rakhti hu...aur bakhubi jaanti hu in nizi schools ki kaar-guzariyo ko...aur sach kahu to ji karta hai ki haath me ek gun le lu aur in sab amaanveeye vyapaariyo ko suit kar du.
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