देश के सबसे बीमार , पिछडे , अविकसित राज्य की फ़ेहरिस्त में सबसे पहला नाम बिहार का ही आता है । यही नहीं देश के सुदूर उत्तर पूर्वी राज्यों से लेकर राजधानी दिल्ली , मुंबई ,पंजाब और गुजरात के अलावा बंग्लौर जैसे आईटी हब बने शहरों में बिहार से पलायन करके पहुंचे लोगों की संख्या इतनी अधिक है कि अब उन्हें स्थानीय राजनीति का विरोध और हिंसा तक का सामना करना पड रहा है । पिछले डेढ दशकों में , यानि कि वर्तमान सरकार से पहले की सरकारों ने अधोगति की ओर अग्रसर बिहार को पत्तन के गर्त में पहुंचा दिया । इस दौरान न सिर्फ़ शिक्षा ,रोज़गार ,परिवहन और उद्दोग सहित राज्य की सभी मूलभूत व्यवस्थाएं न सिर्फ़ चरमराई व राजकोष की स्थिति ऐसी कर दी सरकारी कर्मचारियों व राज्य के शिक्षकों को वेतन देने में भी सरकार को कठिनाई होने लगी । अपराध व भ्रष्टाचार का ऐसी जोड बन गया जिसने राज्य के आर्थिक ढांचे को बिल्कुल ढहा दिया ।
वर्तमान मुख्यमंत्री ने जब राज्य का जिम्मा संभाला तब सबने परिवर्तन की उम्मीद करने के बावजूद किसी बडे बदलाव की उम्मीद नहीं की थी । नई सरकार ने राज्य के विकास को दोबारा पटरी पर लाने के लिए पूरी प्रतिबद्धता से कार्य शुरू किया । सबसे पहले सडक परिवहन को दुरूस्त करने के लिए राष्ट्रीय राजमार्गों व राजकीय मार्गों के निर्माण , विस्तार एवं मरम्मत का काम पूरे जोर शोर से शुरू किया गया । बहुत जल्दी ही इसका परिणाम भी स्पष्ट दिखने लगा । लगातार आ रहे बाढ ने सडकों की हालत बिल्कुल खस्ता व जर्जर कर दी थी , जिनका जीर्णोधार करके राज्य के सभी छोटे बडे शहरों को मिलाने का काम किया गया । इन सडकों के निर्माण में तमाम तरह के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए न सिर्फ़ उनकी निगरानी की गई बल्कि अभी हाल ही में राज्य सरकार ने उन तमाम ठेकेदारों की पहचान की है जिन्होंने जानबूझ कर सडक निर्माण के कार्य में देरी की है , प्रशासन उनके खिलाफ़ प्राथमिकी दर्ज़ कराने की तैयारी में है ।
राज्य के विकास में अपराध व परिवहन व्यवस्था के बाद सबसे बडी बाधा थी प्रशासकीय भ्रष्टाचार । इससे निपटने के लिए सरकार ने कई अभूतपूर्व कार्य किए । राज्य में पहली बार एक निश्चित समय में किसी भी कार्य को करने कराने के लिए राईट टू सर्विस बिल को लागू कर दिया । भ्रष्टाचार पर अध्य्यन करने वाली एजेंसियों ने बताया कि आम आदमी को अपने छोटे-छोटे काम समय पर करवाने के लिए रिश्वत देनी पडती है । सरकारी दफ़्तर व कर्मचारियों का टालू रवैय्या आम आदमी को जरूरत के समय काम न करने होने के कारण रिश्वत व भ्रष्टाचार की गुंजाईश को बनाए रखता है । आम आदमी का काम , कम से कम और एक नियत समय तक हो जाने को सुनिश्चित कराने वाले इस कानून को लागू करने से प्रशासनिक भ्रष्टाचार की एक गुंजाईश को रोक दिया गया ।
देश में भ्रष्टाचार उन्मूलन के संदर्भ में एक चौंकाने वाला तथ्य ये है कि बडे बडे आर्थिक घपलों घोटालों के उजागर होने और आरोपियों/दोषियों की पहचान हो जाने के बावजूद सरकार , प्रशासन व कानून तक उनसे गबन के पैसे की उगागी नहीं कर पाते । ऐसे में अभी हाल ही में सरकार ने एक भ्रष्ट अधिकारी के महंगे आलीशान आवास को कब्जे में लेकर उसमें स्कूल खोल कर एक नई नज़ीर पेश कर दी । यदि सूत्रों की मानें तो सरकार ने बहुत सारे ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की पहचान कर ली है जिनकी नामी/बेनामी संपत्तियों को ज़ब्त करने की योजना है ।
हालांकि बहुत से मोर्चों पर सरकार सही दिशा में चलते हुए आशातीत सफ़लता हासिल कर रही है । लोगों का विश्वास भी बढा है , किंतु कुछ बहुत अहम मुद्दों पर बेहद गंभीरता से अभी बहुत कुछ किया जाना बांकी है । इनमें शिक्षा, ग्रामोद्योग , औद्यौगीकरण एवं चिकित्सा आदि क्षेत्रों में स्थिति न सिर्फ़ चिंताजनक बल्कि भयावह है । राज्य के प्राथमिक , माध्यमिक व उच्च उद्यालयों के साथ ही महाविद्यालय व विश्वविद्यालय तक धन व श्रम की कमी , संसाधनों का अभाव झेलने को अभिशप्त हैं । हालात का अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों शिक्षकों के बकाए वेतन के बदले सरकारी गोदामों में पडे अनाज को देने की पेशकश की गई थी । और तो और लगभग ४७ प्रतिशत शिक्षा संस्थानों में पेयजल व शौचालय की व्यवस्था दुरूस्त नहीं पाई गई। उच्च एवं उच्चतर शिक्षा , व्यावसायिक शिक्षा आदि के लिए तो गिनती के लिए भी शिक्षण संस्थान उपलब्ध नहीं हैं यही कारण है कि प्रतिवर्ष लाखों मेधावी छात्र शिक्षा और कैरियर के कारण राज्य से पलायन कर जाते हैं ।
कभी खादी ग्रामोद्योग , मखाना उद्योग , जूट उद्दोग सहित तमाम लघु व कुटीर उद्योगों की स्थिति मरणासन्न अवस्था को प्राप्त हो चुकी हैं । प्रशासन की उदासीनता और बाज़ार की कमी ने मानो इन्हें हाशिए पर धकेल कर विस्मृत कर दिया । कभी चीनी उद्योग, कागज़ उद्योग, जूट उद्योग सूत व धागा उद्योग आदि में अग्रणी स्थान पाने वाले राज्य की आज एक एक औद्योगिक ईकाई बंद पडी अपने जीर्णोद्धार का बाट जोह रही हैं । इन औद्योगिक संस्थानों में लगी लाखों करोडों की मशीनें भी अब पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं । हालांकि राज्य सरकार इस दिशा में देश के बडे औद्योगिक घरानों व अन्य व्यावसायिओं को राज्य में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु कई प्रयास कर रही है , किंतु उसका सार्थक परिनाम अब तक निकल कर सामने नहीं आया है । इस बीच सुधा डेयरी व दुग्ध उत्पाद उद्दोग एवं मैथिली-भोजपुरी फ़िल्मोद्योग ने पिछले दिनों खुद को नए सिर से स्थापित करके एक आस जरूर जगाई है ।
चिकित्सा और कृषि व्यवस्था की स्थिति भी बेहद खराब है । झारखंड के अलग होने के नुकसान के अलावा पिछले सालों से बिहार में लगातार आ रही बाढ और किसानों पर बढते कर्ज़ आदि ने कृषकों को हतोत्साहित कर कृषि मजदूरों में बदल कर रख दिया है । यहां एक सकारात्मक तथ्य ये सामने आया है कि मुजफ़्फ़रपुर स्थित कृषि अनुसंधान की पहल पर पारंपरिक खेती से अलग जाकर कृषकों ने कई वनस्पतियों , सब्जियों और औषधियों की खेती शुरू कर दी है । आम , लीची , केले जैसे फ़लों के बगीचों को व्यावसायिक उद्देश्य से तैयार किया जा रहा है ।
बिहार में जितनी बुरी हालत शिक्षा व्यवस्था की है उससे भी ज्यादा खराब स्थिति राज्य की चिकित्सा व्यवस्था की है । पूरे राज्य में कोई भी सरकारी या निजि अस्पताल ऐसा नहीं है जो राज्य के बीमारों को उच्चतम चिकित्सा सुविधा मुहैय्या करा सके । कुछ वर्ष पहले केंद्र सरकार ने एम्स के स्तर के छ चिकित्सा संस्थानों एवं अस्पताल को खोलने की योजना बनाई थी जिसमें से एक बिहार के पटना में संभावित था । ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पतालों , डिस्पेंसरियों के साथ साथ चिकित्सकों की भी घोर कमी है । ऊपर से नीम हकीमों का प्रभाव और नकली दवाइयों का फ़ैलता कारोबार स्थिति को और भी अधिक नारकीय बना रहा है ।
जो भी हो इतना तो तय है कि आज बिहार बदल रहा है , बिहार विकास की ओर अग्रसर है । सबसे जरूरी बात ये है कि अब भविष्य में चाहे कोई भी शासक या सरकार आए , इस विकास को और धीरे-धीरे बहुत मुश्किल बने इस सकारात्मक माहौल को बनाए रखा जाए । उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में बिहार अपनी गरिमा और विकास को थाम ही लेगा ।
जितने समय से नीतीश हैं,उतने के हिसाब से प्रगति की दर बहुत धीमी है। सारी चीनी मिलों को खोलने का मामला भी सपना ही बना हुआ है। रोज़गार के नाम पर जिस तरह के शिक्षक भर्ती हुए हैं,वह बिहारी भविष्य के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है। विश्वविद्यालयों में भी शिक्षक भर्ती के नाम पर खींचतान पिछले तीन वर्षों से चल ही रही है। बिड़ला ठीक ही कह रहे हैं कि बिजली के बगैर निवेश और विकास की बात बेमानी है। इतना ज़रूर है कि कोई ह्वाइट हाउस का मामला नीतीश के समय सामने नहीं आया है,बल्कि स्कूल खुलने की खबरें जब-तब आती रहती हैं।
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