बेहतर हो सडक प्रबंधन
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दिल्ली का एक छोटा जाम |
अभी हाल ही में राजधानी दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय ऑटो एक्सपो के दौरान उस क्षेत्र की सडकों पर लगे जाम ने एक बार फ़िर से इस बात की ओर ईशारा अक्र दिया कि अभी तक राजधानी दिल्ली का सडक प्रबंधन भी चुस्त दुरूस्त नहीं है तो पूरे देश की स्थिति क्या होगी इस अंदाज़ा सहज़ ही लगाया जा सकता है । राजधानी दिल्ली समेत तमाम महानगरों में टैफ़िक जाम की समस्या न सिर्फ़ आम समस्या है बल्कि रोज़ाना वैकल्पिक यातायात व्यवस्थाओं की शुरूआत एवं फ़्लाईओवरों के निर्माण के अलावा बहुत बडा मानव श्रम इसे दुरूसत करने के पीछे लगा रहता है ,किंतु परिणाम बहुत परिवर्तनकारी नहीं दिख रहा है ।
देश में प्रतिदिन सैकडों व्यक्तियों की मृत्यु सडक दुर्घटनाओं में हो रही है । उल्लेखनीय है कि भारत में प्रति मिनट एक दुर्घटना होती है । सडक दुर्घटना पर हाल ही में आयोजित एक अतंरराष्ट्रीय संगोष्ठी में परिवहन मंत्रालय के हवाले से ये आंकडा दिया गया कि वर्ष २०१० में दुर्घटनाओं में एक लाख ३० हज़ार लोग मारे गए तथा पांच लाख लोग घायल हुए । चिंताजनक बात यह है कि बहुत उपायों के बावजूद इसमें इज़ाफ़ा ही हो रहा है । पश्चिमी देशों में वाहनों की संख्या भारत से कहीं अधिक है । इतना ही नहीं अभी जहां भारत में सडक पर अधिकतम रफ़्तार की सीमा सौ किलोमीटर प्रति घंटा भी नहीं है वहीं पश्चिमी देशों में वाहनों की रफ़्तार ढाई सौ किलोमीटर प्रति घंटे तक देखी जा सकती है ।
इसमें कोई संदेह नहीं कि पिछले एक दशक में देश में सडक निर्माण के रफ़्तार और स्तर में बहुत वृद्धि हुई है । न सिर्फ़ दिल्ली ,मुंबई ,कोलकाता जैसे महानगरों में बल्कि सुदूर ग्राम देहातों में भी सडक व कच्चे मार्गों का निर्माण होता रहा ।किंतु इस निर्माणकार्य से अपेक्षित परिवर्तन व सफ़लता को नहीं पा सकने का एक बडा कारण अति निम्न स्तर के सडकों का निर्माण । एक सर्वेक्षण के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्थिति ऐसी पाई गई कि लगभग बाईस प्रतिशत सडकें अपने निर्माण के पहले वर्ष में ही ज़र्ज़र होकर बेहद खतरनाक हो जाती हैं ।
महानगरों में सडकों पर वाहनों का बढता दबाव आने वाले समय में एक बहुत बडी समस्या का रूप ले लेगा । इस तत्य को भलीभांति समझते हुए इस दिशा में मेट्रो रेल ,मोनो रेल ,बी आर टी कॉरिडोर , बहुस्तरीय फ़्लाईओवरों का निर्माण आदि योजनाओं पर दिन रात काम चल रहा है । किंतु इन सबके वावजूद विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार व प्रशासन सडक प्रबंधन व्यवस्था के प्रति घोर उदासीन हैं । विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार व प्रशासन सडक प्रबंधन व्यवस्था के प्रति घोर उदासीन हैं । विशेषज्ञों ने सडकों पर बढती अव्यवस्था के लिए अपने अध्य्यन में कुछ तथ्यों को विशेष रूप से चिन्हित किया है । आए दिन विभिन्न विभिन्न कारणों से आमजनों द्वारा सडकों को निशाना बनाने की बढती प्रवृत्ति को बेहद खतरनाक माना गया है ।
विशेषज्ञ मानते हैं कि महत्वपूर्ण इमारतों ,धार्मिक स्थलों , पर्यटन स्थलों , सरकारी व गैर सरकारी कार्यालयों तथा मनोरंजन स्थलों के आसपास स्थित सडकों का प्रबंधन एवं यातायात को सुचारू किया जाना सबसे ज्यादा जरूरी है । विकासशील देशों में सार्वजनिक परिवहन साधनों के उपयोग से ज्यादा निजि वाहनों के प्रयोग के चलन से भी सडक जाम का एक मुख्य कारण है । सडक सुरक्षा के लिए कार्य कर रहे विशेषज्ञ इस बात पर बेहद हैरानी जताते हैं कि पश्चिमी देशों में कार्यालयीय समय के दौरान सडकों पर वाहनों की भीड को कम करने व रखने के लिए सफ़लतापूर्वक अपनाई गई पूल व्यवस्था भारत में न के बराबर हैं ।
अक्सर देखा जाता है कि व्यस्त सडकों के साथ ही बहुत बार राजमार्गों पर किसी कारणवश किसी वाहन के रूक जाने के कारण बहुत राजमार्गों एवं अन्य सडकों के लिए न सिर्फ़ उन्नत तकनीक पर आधारित मशीनों\क्रेनों की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए बल्कि ये भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि यातायात प्रबंधकों की पहुंच वहां जल्द से जल्द हो । नागरिकों को भी ये बात भलीभांति समझानी चाहिए कि ऐसी परिस्थितियों में उन्हें धैर्य बनाए रख कर प्रशासन को सहयोग देना चाहिए ।
राजधानी समेत देश के अन्य सडक मार्गों पर यात्रियों एवं वाहनों की सहायता के लिए दिशा-निर्देश सूचकों एवं मार्गों मानचित्रों की अनुपब्धता भी सडक प्रबंधन को बाधित करती है । सडकों के साथ सभी महत्वपूर्ण मार्गों के मानचित्र , अन्य दिशा सूचक मानचित्र , सहायता सेवाओं के दूरभाष व पते ,निकटतम अस्पताल का दूरभाष नंबर व पता तथा ऐसी तमाम एहतियाती उपायों पर तेज़ी से कार्य किया जाना चाहिए ताकि दुर्घटनाओं की संख्या और उसकी चपेट में आने वाली जिंदगियों को बचाया जा सके । सडक निर्माता कंपनियों , ठेकेदारों व कारीगरों को सडक की गुणवत्ता में कमी के लिए सीधे जिम्मेदार मान कर कडा दंड दिया जाना चाहिए ।
सबसे मुख्य बात ये कि आम जन से लेकर सरकार व प्रशासन को सडक का महत्व समझना चाहिए और उसकी इज़्ज़त करनी चाहिए क्योंकि यही विकास का रास्ता होता है ।
अजय भईया, मुद्दा बहुत सही उठाए हैं...
जवाब देंहटाएंकेवल और केवल सरकारी कु-प्रबंधन ही ज़िम्मेदार है इस बात का.....
हां देव बाबा ,सच कहा आपने सरकारी कु-प्रबंधन ही इसके लिए सबसे बडा जिम्मेदार है
हटाएंचीन का अनुसरण कर साइकिल को महत्व दया जाना चाहिए ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही मह्त्वपूर्ण सुझाव दिया आपने अमित जी । गौर करने लायक बात है ये ।
हटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - आखिर कहां जा रहे हैं हम... ब्लॉग बुलेटिन...
जवाब देंहटाएंबुलेटिन टीम का शुक्रिया और आभार
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