अभी हाल ही में आई दो खबरों ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा । पहली ये कि एक गरीब व्यक्ति जिसे उसकी पत्नी को जच्चगी के लिए अस्पताल में दाखिला नहीं मिला ने पूरी रात सडक पर अपनी मृत पत्नी व बच्चे की लाश के साथ बिताई । दूसरी ये कि न्यायपालिका ने राजधानी दिल्ली में सरकार व निगम द्वारा एक रात्रि विश्राम स्थल रैन बसेरे को गिरा दिए जाने पर अदालत के सामने पहुंच मामले में सरकार व निगम द्वारा एक रात्रि विश्राम स्थल रैन बसेरे को गिरा दिए जाने पर अदालत के सामने पहुंचे मामले में सरकार को लगभग चेतावनी देते ऐसा दोबारा नहीं होने को सुनिश्चित करने को कहा है । ऐसा भी नहीं है देश में भूख-गरीबी, ठंड से लोगों के मरने की ये कोई नई घटना हो । उलटा अब तो ये एक नियति सी बन गई है ।
आज भी ग्रामीण क्षेत्र की उन्नीस प्रतिशत आबादी ,भूख , कुपोषण , बीमारी व अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण समय से पहले काल का ग्रास बन जाते हैं । सामाजिक विकास के असंतुलन की इससे बडी विडंबना और क्या हो सकती है कि जो देश खुद को विश्व महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर मान व बता रहा है उस देश में अब भी रोज़ हज़ारों लोग भूख , गरीबी और यहां तक कि ठंड तक से अपनी जान गंवाने को मजबूर हैं । इनमें से बहुत सारी मौतें तो सरकार प्रशासन की गिनती में ही नहीं आते हैं ।
सबसे बडे दुख की बात ये है कि जिन्हें सरकारी सहायता की आवश्यकता सबसे ज्यादा होती है उन्हीं के प्रति सरकार सबसे ज्यादा उदासीन और संवेदनहीन है । हालात की गंभीरता का अंदाज़ा दो दशक पहले प्रधानमंत्री तक ने ये माना था कि यदि सरकार गरीब के लिए सौ रुपया खर्च करती है तो वास्तव में उस गरीब तक मात्र दो रुपए ही पहुंचते हैं । आज दो दशकों के बाद बेशक ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल के टॉवर आ गए हों किंतु भूख, गरीबी ,कुपोषण ,अशिक्षा आदि की स्थित वही है ।
देश में गरीबी के नहीं खत्म होने का एक बडा कारण सिर्फ़ गरीबों के लिए , उनके नाम पर चलाई जाने वाली सैकडों योजनाओं में घपले -घोटाले की असीम संभावना होना ही है । यदि देश से गरीब खत्म हो जाएं गरीबी खत्म हो जाए तो आर्थिक कदाचार की एक स्थापित परंपरा सिरे से खत्म हो जाएगी । और ज़ाहिर है कि इन घपलों घोटालों के पीछे देश का सबसे शक्तिशाली वर्ग यानि राजनीतिज्ञ और बडे पदों पर बैठे नौकरशाह ही होते हैं ।
आज सरकार विभिन करों के माध्यम से जनता से उनके श्रम की कमाई में से एक बहुत बडा हिस्सा राजकोष में संचित कर रही है इसके अलावा लोगों के अधीन संपत्ति व संपदा ,खनिज , वनस्पति आदि पर भी सरकार का अधिकार होने के कारण उसका विनिमय और मुनाफ़ा भी सरकार के हिस्से ही आता है । सरकार की वर्तमान नीतियों के अनुसार तो सरकार आज अपने नागरिकों से हर तरह का कर वसूल रही है । आम जन आज सभी करों से न सिर्फ़ परिचित हैं बल्कि वे उन करों का भुगतान भी कर रहे हैं । इन करों से इसके अलावा अन्य सभी आय श्रोतों से राजकोष में पहुंच धन का उपयोग विकास एवं शासन के लिए व्यय किया जाना चाहिए ।
प्रति वर्ष गरीबों को मूलभूत सुविधाओं को ही मुहैय्या कराने , ज्ञात हो कि पश्विमी देशों में सूचना पहुंचाने व पारदर्शिता लाने के लिए कंप्यूटर व इंटरनेट की सुविधा को मूल अधिकार की तरह मांगा जा रहा है , के लिए सरकार राजकोष के धन का एक बहुत बडा हिस्सा खर्च होता है । इन योजनाओं में से सत्तर प्रतिशत योजनाओं की जानकारी और उन योजनाओं का लाभ उठाने की पूरी प्रक्रिया से आम लोगों के अनजान होने के कारण ही इनमें व्यय की जा रही राशि की बंदरबांट शुरू हो जाती है । चूंकि इन योजनाओं के शुरू हो जाने के बाद इनके सुचारू चालन की देख रेख न हो पाना , योजनाओं की सफ़लता-विफ़लता का आकलन नहीं किया जाना , इन योजनाओं की धनराशि में गबन घोटालों व हेरफ़ेर करने वालों का साफ़ बच निकलना आदि कारणों से परिणाम ये होता है कि गरीब और गरीबी जस की तस बनी रहती है । फ़िर योजनाएं बनती हैं और इस तरह से ये चक्र चलता ही रहता है ।
देश के विकास का ढांचा का कुछ इस तरह का बन गया है कि सामाजिक -आर्थिक व राजनीतिक , हर क्षेत्र में घोर असंतुलन पैदा हो गया है । सारी सुख सुविधाएं , अधिकार व शक्तियां तक देश की बहुत बडी जनसंख्या होने के बावजूद बहुत थोडे से लोगों के पास केंद्रित होकर रह गई है । इन लोगों आम जनजीवन की आवश्यकताओं , उनकी तकलीफ़ व कठिनाई या कहें कि उनके जीवन मृत्यु से कोई सरोकार नहीं है और इसलिए वे इनके प्रति संवेदनहीन बने हुए हैं । सरकारी राजकोष के एक बहुत बडे हिस्से को यदि इस शक्तिशाली वर्ग के चंगुल से बाहर निकाल कर वास्तव में उसका उपयोग आम जन के कल्याण के लिए कर दिया जाए नि:संदेह तस्वीर कुछ और ही निकल कर सामने आएगी
good comment
जवाब देंहटाएंन गरीब खत्म होंगे न गरीब...
जवाब देंहटाएंअश्वथामा अमर है..
सार्थक एवं सारगर्भित आलेख ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
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