रविवार, 27 नवंबर 2011

पुरस्कार नहीं तिरस्कार का समय है ये


उफ़्फ़ इस दोस्ती की दास्तां 



प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने पडोसी देश पाकिस्तान के प्रमुख गिलानी को शांति का दूत बताकर भारत-पाक रिश्ते में एक नई पहल की कोशिश की । सरकार के कूटनीतिज्ञ इस वक्तव्य व पहल को ज़ायस ठहराते हुए ये तर्क देर हे हैं कि आपसी रिश्तों को बातचीत से ही सुधारा जा सकता है । आज़ादी के बाद से अब तक जाने कितनी ही बार इस तरह की नई पुरानी पहल के प्रयास और उसका परिणाम पूरा देश देख चुका है । आम आदमी तो हर बार इस तरह की पहल के परिणाम का खामियाज़ा तक भुगतना पडता है । ये ठीक है कि पडोसी राष्ट्र से संबंध स्थिर और स्वस्थ हों तो देश का विकास और शांति द्विगुणित हो जाती है । इसलिए पडोसी राष्ट्रों के साथ रिश्ते मधुर करने का प्रयास निरंतर होते रहना चाहिए , किंतु ऐसे राष्ट्र के साथ कतई नहीं जो आज विश्व आतंकवाद का गढ बना हुआ है ।


हर राष्ट्र का एक चरित्र होता है और इस लिहाज़ से पाकिस्तान की छवि एक आतंक पोषित राष्ट्र की है । विश्व के सभी सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि विश्व के सभी आतंकी गुटों का संबंध कहीं न कहीं पाकिस्तान से है । अमेरिकी सैनिकों द्वारा किए गए विशेष अभियान के बाद विश्व के सबसे वांछित आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में उसके गुप्त ठिकाने पर मारा गया । दाऊद इब्राहिम सहित जाने कितने ही दुर्दांत आतंकियों के पाकिस्तान में छिपे होने की आशंका जताई जाती रही है ।


पिछले दो दशकों में भारत में होने वाली आतंकी घटनाओं में से अधिकांश के लिए पाकिस्तानी आतंकी ही जिम्मेदार रहे हैं । इन परिस्थितियों में यदि प्रधानमंत्री पडोस के प्रमुख को शांति का दूत बताते हैं तो उन्हें देशवासियों को ये भी बताना चाहिए कि इसका आधार बना है । इस तरह की किसी भी पहल , किसी सार्वजनिक बयान और किसी भी नए प्रस्ताव से पहले आतंकी घटनाओं में मारे गए लोगों के परिवारजनों की भावना का ख्याल रखना क्यों जरूरी नहीं समझा जाता ?


एक तरफ़ सेना व सुरक्ष एजेंसियां बार बार संभावित खतरे की चेतावनी दे रही हैं और दूसरी तरह प्रधानंत्री इस तरह का बयान दे रहे हैं । इस मुद्दे का एक महत्वपूर्ण पहलू ये है कि पाकिस्तान के राजनीतिक वर्चस्व में हमेशा से पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों का प्रभाव रहा है । ऐसे में किसी राजनेता के साथ कोई संधि वार्ता ,नया समझौता कितना कारगर साबित होगा इसका अंदाज़ा सहज़ ही लगाया जा सकता है ।


सबसे जरूरी बात ये है जब पूरा देश मुंबई हमले के आरोपी कसाब को मृत्युदंड दिए जाने की प्रतीक्षा में है उधर प्रधानमंत्री पडोसी मुल्क के मुखिया को शांतिदूत बनाए दे रहे है । वास्तव में ये समय शांति , सहकार और पुरस्कार का नहीं बल्कि तिरस्कार का समय है । आज जब अमेरिका ने भी पाकिस्तान को दुत्कार दिया है तो यही समय है भारत भी इस राष्ट्र के साथ " शठम शाठयेत चरेत " जैसा व्यवहार करे ।

1 टिप्पणी:

  1. agree ...समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/.

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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