जिस देश में क्रिकेट एक खेल से बढकर जुनून बन गया हो और अगर वो देश अट्ठाईस वर्षों के बाद विश्व विजेता बन जाए तो उस देश में क्रिकेट के खिलाफ़ कोई भी कुछ कहना सुनना कतई नहीं चाहेगा और यकीनन कोई कहता सुनता भी नहीं है । बल्कि सुना तो ये है कि इस खेल के सबसे बडे जादूगर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने की मांग की जाने लगी और महाराष्ट्र सरकार ने तो शायद इसकी औपचारिक मांग भी की है । इसके अलावा उन लोगों कि भावनाएं भी जोर मारने लगी हैं जो कह रहे हैं कि अब भारत के राष्ट्रीय खेल को हॉकी से बदल कर क्रिकेट कर दिया जाना चाहिए । जाने अगले पचास वर्षों में ऐसा ही कोई चमत्कार फ़ुटबॉल या अन्य किसी खेल में हो जाए और किसी दिन भारत फ़ुटबॉल का विश्व कप जीत जाए तो क्या पता कि क्रिकेट की जगह फ़ुटबॉल को राष्ट्रीय खेल का दर्ज़ा देने की मांग की जाने लगे । वैसे तो किसी खेल , किसी भाषा या किसी को भी राष्ट्रीय दर्ज़ा दे देने भर से कुछ खास हासिल होता है ऐसा नहीं लगता उलटा उसकी हालत पतली सी ही दिखती है । खैर यहां बात क्रिकेट की हो रही थी , लेकिन असल में बात क्रिकेट की भी नहीं उसके बहाने या उसके पीछे चल रहे खेल की हो रही है ।
क्रिकेट भारत में दिनोंदिनो अत्यधिक लोकप्रिय होता चला जा रहा है और पिछले कई सालों से इसकी लोकप्रियता का ग्राफ़ बढता ही जा रहा है । इसी बात को भलीभांति समझते हुए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और उसके अधिकारियों ने विशेषकर ललित मोदी ने भारत के उन करोडों दर्शकों को क्रिकेट के ग्राहकों के रूप में बदल दिया और खेल को भी एक व्यवसाय का रूप दे दिया । जो खेल कभी पांच दिन की अथक शारीरिक मेहनत , कलात्कमता और भद्रता तथा धैर्य का परिचायक था वो पहले पचास ओवर के एकदिनी किक्रेट में और उसके बाद फ़िर मात्र कुछ घंटे और बीस बीस ओवर के उन्माद और जुनून में बदल गया । ग्राहकों को लुभाने भरमाने और मदमस्त करने के लिए उसमें न सिर्फ़ ग्लैमर , मनोरंजन का तडका लगा दिया बल्कि बाकायदा बोली बिक्री का फ़लसफ़ा जोड के नीलामी का बाजार सज़ा के उसे पूरी तरह से एक कारोबार का रूप दे दिया गया ।
क्रिकेट अब क्रिकेट नहीं रहा , क्रिकेट के मायने बदल गए । भारत की आम जनता का जुनून और क्रिकेट के प्रति उनका लगाव कितना ज्यादा था ये इस बात से ही समझा जा सकता है कि काऊंटी क्रिकेट , एशेज जैसी श्रंखलाओं को कहीं पीछे छोडते हुए आईपीएल संस्करण ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के साथ साथ भारतीय क्रिकेट के शीर्ष खिलाडियों बल्कि कई विदेशी खिलाडियों को इतना आकर्षित कर दिया कि वे अपने देश का प्रतिनिधित्व करने से भी बगावत पर उतर आए । इसका कारण सिर्फ़ एक था पैसा और बेतहाशा पैसा । ये पैसा भारतीय दर्शकों से , विज्ञापन दाता कंपनियों से , और एक सबसे बडे ढके छुपे सूत्र यानि माफ़िया डॉन से ( अब ये बात कोई नई बात नहीं है कि किक्रेट के खेल के साथ सट्टेबाजों की सांठ गांठ का का एक गठजोड भी बहुत मजबूत होता जा रहा है ) उगाहा जा रहा है ।
क्रिकेट का ये पनपता हुआ कारोबार इतना प्रभावी होता जा रहा है और इसका मुनाफ़ा इतना बडा है कि अब इसे रोक टोक पाना उसी तरह असंभव है जैसे कि देश में शराब के बढते फ़लते फ़ूलते कारोबार को रोक पाना । जब भी ऐसी कोशिश की जाती है तो एक दलील दी जाती है कि करों के रूप में इससे भारत सरकार को बहुत बडी आय होती है , इसमें कोई संदेह नहीं कि होती भी होगी । लेकिन दो सवाल नि:संदेह महत्वपूर्ण हो जाते हैं । इन खेलों का समय जानबूझ कर शाम और रात का रखा जाता है । जिस देश में अब भी सिंचाई के लिए किसानों को बिजली मुहैय्या करा पाने में सरकार खुद को असमर्थ बताती है उसमें लगात इतने दिनों तक लाखों वॉट बिजली को इस तमाशे के नाम पर फ़ूंका जाता है । ज्ञात हो कि बिजली बचाने के लिए पहले और हाल ही में , अर्थ आवर और इस जैसे प्रयासों को बढावा दिया जाता रहा है जहां एक घंटे तक बिजली को और बिजली से चलने वाले तमाम उपकरणों को बंद करके बिजली की बचत करने की कोशिश होती रही है ऐसे में इस खेल में बहाई जा रही बिजली का हिसाब किताब कोई न तो लेने वाला है न देने वाला ।
एक दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि पहले इन खेलों के लिए शीत काल का समय निश्चित किया गया था । कम से कम भारतीय महाद्वीपों में तो ऐसा ही था । लेकिन पश्चिमी देशों की शीतल पेय बनाने वाली बडी बडी कंपनियों के दबाव में आईपीएल का आयोजन ग्रीष्म काल में ही रखा जाता है । इस खेल को बडी आसानी से यूं समझा जा सकता है कि इन मैचों के दौरान सबसे ज्यादा विज्ञापन सिर्फ़ शीतल पेयों के ही होते हैं और उनमें भी अधिकांश में क्रिकेट खिलाडी ही चमकते हैं ।
आने वाले समय में आईपीएल का जुनून और भी बढेगा और जैसा कि अभी से प्रचारित किया जा रहा है कि पचास दिनों के लिए या इक्यावन दिनों के लिए पूरा देश बंद रहेगा , तो वाकई देश बंद रहेगा या नहीं ये तो नहीं कहा जा सकता हां ये जरूर है कि क्रिकेट के पीछे और क्रिकेट के नाम पर चल रहा ये खेल अब कभी भी बंद नहीं हो पाएगा , बावजूद इसके कि भारतीय टीम के करिश्माई कप्तान सार्वजनिक रूप से ये कहते हैं कि बहुत अधिक खेल होने के कारण खिलाडी मानसिक और शारीरिक रूप से बहुत थक जाते हैं और अपने स्वाभाविक खेल करियर की उम्र से कहीं पहले ही चुक जाते हैं ।
इस बार मैं आई पी एल से बहुत दूर हूँ भईया...बस अखबार में खबर पढता हूँ, एक भी मैच नहीं देखा अभी तक...
जवाब देंहटाएंवैसे आई पी एल के पिछले संस्करण के मुकाबले ये वाला वैसा उत्साहित नहीं कर रहा लोगों को...पता नहीं शायद कर भी रहा हो...
ये बात भी सही है क्रिकेट का खेल पहले जाड़े के दिनों में ही ज्यादा होता था..और मुझे क्रिकेट जाड़े के दिनों में ज्यादा अच्छा लगता है...
बहुत बढियां अजय जी इसी तरह इस क्रिकेट का सत्यानाशी चालीसा लिखते रहिये...ये खेल अब सभ्य लोगों का नहीं बल्कि कुकर्मियों,भ्रष्टाचारियों तथा गद्दारों का खेल हो गया है....देश और समाज का खून चूसने वाले ज्यादातर हैवानों का इस खेल से गहरा नाता बन चुका है....
जवाब देंहटाएंइस बार तो आई पी एल फॉलो नहीं कर रहे हैं...धीरे धीरे इसका नशा कम हो जायेगा.
जवाब देंहटाएंवक्त के साथ हर शै बदल जाती है। ...और जो नहीं बदलती, वह मिट जाती है। कम से कम तो इतिहास यही बताता है। और यही चीज क्रिकेट में भी देखी जा सकती है।
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ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
क्रिकेट मात्र एक खेल है , इसे भी अन्य खेलों की तरह ही लेना चाहिए । राष्ट्रीय खेल रोज़-रोज़ बदलना अपनी कमजोरी दर्शाता है । उसकी जगह अन्य खेलों को भी मज़बूत करना चाहिए । बराबरी का रवैय्या होना चाहिए ताकि लोगों का रुझान बढे अन्य खेलों की तरफ भी ।
जवाब देंहटाएंजहाँ तक भारत रत्न पुरस्कार का सवाल है , मुझे लगता है , सचिन को मिलना चाहिए । वे एक अच्छे खिलाडी होने के साथ साथ एक अच्छे इंसान भी हैं। खेल के क्षेत्र में ये पुरस्कार मिलने से खेल की भावना को बल भी मिलेगा।
ये तिजारती जमाना है। है कोई चीज जिस में पैसा हो और तिजारत नहीं?
जवाब देंहटाएंअभी-अभी समाचार पढ़कर बहुत आघात हुआ और दुःख पहुंचा. शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन परिवार अजय झा जी के पिताश्री को श्रद्धाँजलि अर्पित करते हुए परमपिता परमात्मा से दिवंगत की आत्मा को शांति और शोक संतप्त परिजनों को यह आघात सहन करने की शक्ति देने की प्रार्थना करता है. दुःख की इस घडी में हम सब अजय कुमार झा जी के साथ है.
जवाब देंहटाएंदेश और समाजहित में देशवासियों/पाठकों/ब्लागरों के नाम संदेश:-
जवाब देंहटाएंमुझे समझ नहीं आता आखिर क्यों यहाँ ब्लॉग पर एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना चाहते हैं? पता नहीं कहाँ से इतना वक्त निकाल लेते हैं ऐसे व्यक्ति. एक भी इंसान यह कहीं पर भी या किसी भी धर्म में यह लिखा हुआ दिखा दें कि-हमें आपस में बैर करना चाहिए. फिर क्यों यह धर्मों की लड़ाई में वक्त ख़राब करते हैं. हम में और स्वार्थी राजनीतिकों में क्या फर्क रह जायेगा. धर्मों की लड़ाई लड़ने वालों से सिर्फ एक बात पूछना चाहता हूँ. क्या उन्होंने जितना वक्त यहाँ लड़ाई में खर्च किया है उसका आधा वक्त किसी की निस्वार्थ भावना से मदद करने में खर्च किया है. जैसे-किसी का शिकायती पत्र लिखना, पहचान पत्र का फॉर्म भरना, अंग्रेजी के पत्र का अनुवाद करना आदि . अगर आप में कोई यह कहता है कि-हमारे पास कभी कोई आया ही नहीं. तब आपने आज तक कुछ किया नहीं होगा. इसलिए कोई आता ही नहीं. मेरे पास तो लोगों की लाईन लगी रहती हैं. अगर कोई निस्वार्थ सेवा करना चाहता हैं. तब आप अपना नाम, पता और फ़ोन नं. मुझे ईमेल कर दें और सेवा करने में कौन-सा समय और कितना समय दे सकते हैं लिखकर भेज दें. मैं आपके पास ही के क्षेत्र के लोग मदद प्राप्त करने के लिए भेज देता हूँ. दोस्तों, यह भारत देश हमारा है और साबित कर दो कि-हमने भारत देश की ऐसी धरती पर जन्म लिया है. जहाँ "इंसानियत" से बढ़कर कोई "धर्म" नहीं है और देश की सेवा से बढ़कर कोई बड़ा धर्म नहीं हैं. क्या हम ब्लोगिंग करने के बहाने द्वेष भावना को नहीं बढ़ा रहे हैं? क्यों नहीं आप सभी व्यक्ति अपने किसी ब्लॉगर मित्र की ओर मदद का हाथ बढ़ाते हैं और किसी को आपकी कोई जरूरत (किसी मोड़ पर) तो नहीं है? कहाँ गुम या खोती जा रही हैं हमारी नैतिकता?
मेरे बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद यह कहना है कि- आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ. अब देखते हैं मुझे मेरी गलती का कितने व्यक्ति अहसास करते हैं और मुझे "क्षमादान" देते हैं.
आपका अपना नाचीज़ दोस्त रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"