गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

पहली पोस्ट अमर उजाला में तो दूसरी दैनिक आज समाज में,, कैसे मानूं कि गंभीर लेखन कोई पसंद नहीं करता

मैंने जब ये नया ब्लोग बनाया था तो ...जैसा कि पहले ही कह चुका हूं कि सिर्फ़ एक ही मकसद था।सबकी शिकायत थी कि यहां ब्लोग्गिंग को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है और कोई गंभीर विषयों को नहीं उठा रह है। मैं खुद भी अपनी कसमसाहट और जिम्मेदारी को परखना चाह रहा था। दूसरी तरफ़ अक्सर ये आरोप सभी लगाते हैं कि गंभीर लेखन को ज्यादा पसंद नहीं किया जाता। मुझे तो कहीं से भी ऐसा नहीं लगा। अब देखिये न जुम्मा जुम्मा चार दिन नहीं हुए ब्लोग बनाए। पोस्ट के नाम पर दो, ब्लोग्गर भाई/बहनों का भरपूर स्नेह मिला और रही सही कसर पूरी कर रहा है प्रिंट मीडिया..पहली को स्थान दिया अमर उजाला ने..तो दूसरी को आज दिनांक २२/१०/०९ को दिल्ली के दैनिक आज समाज ने .....


चित्र थोडा छोटा हो गया ...क्या करूं लगता है ठीक से स्कैन नहीं हुआ...इसे तो आप ब्लोग औन प्रिंट पर ही देख पायेंगे ठीक से..।उम्मीद है आप मेरा प्रोत्साहन इसी तरह बढाते रहेंगे।

27 टिप्‍पणियां:

  1. स्‍कैनिंग तो हुई ही नहीं शायद.. फोटो नहीं दिख रहा है .. गंभीर मुद्दों को चुनकर उसपर चर्चा करेंगे .. तो ब्‍लाग जगत में ही नहीं , प्रिंट मीडीया में भी छाना ही है .. बधाई !!

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  2. बधाई! यूहीं लिखते रहें।
    गंभीर लेखन तो हमेशा पसंद किया जाएगा।

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  3. अरे ऐसा है क्या..संगीता जी मैं कोशिश करता हूं ठीक करने की

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  4. बधाई..बधाई...

    चित्र तो नहीं दिख रहा...मगर इ जो खुशिया है उ फूटे पड़ रही है हमारे चेहरे पर.

    बार बार छपो..यही शुभकामना.

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  5. अब दिख रहा है क्या ..कोई देख के बताईये जी...क्योंकि मुझे तो पहले से ही दिख रहा था ...अब भी दिख रहा है..लगता है मि. इंडिया टाईप हो गया है..

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  6. जितनी बार लिखो

    चौगुनी बार छापो

    ब्‍लॉग लेखन को

    प्रिंट से कम न आंको।

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  7. अब पेपर तो दिख रहा है .. पर अक्षरों को देखने के लिए माइक्रोस्‍कोप लेने बाजार जाना पडेगा .. अब तो रात हो गई .. सुबह ही देख पाना संभव है !!

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  8. दरअसल आप लिखते ही बढ़िया हैं....बधाई हो!!

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  9. हा हा हा संगीता जी कल तक के लिये तो जो दिख रहा है वही देख लिजीये कल फ़िर से स्कैन कर के लगाता हूं..वैसे पोस्ट पढनी हो तो इससे पिछली ही है ...

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  10. ब्लॉग के लिए इस खुसखबरी पे आपको बधाई |

    आपने तो ये कहावत चरितार्थ कर दी - "देखन मैं छोटन लगे घाव करे गंभीर"

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  11. झा साहेब,
    ऐसा लगता है, यह आप दूसरों से ज्यादा ख़ुद को समझा रहे हैं। औरों से आप इसकी स्वीकार्यता चाह रहे हैं।

    भई यह सही है, आप कतई ना मानें।
    गंभीरता को अपना बाना बनाएं, संवेदनाओं और हल्के-फुल्के मनोविनोद के साथ।

    शुभकामनाएं। बधाइयां।

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  12. अजय जी,
    मैं तो पढ भी चुकी हूं पिछले आलेख को .. पढकर कमेंट भी किया था .. कल ठीक नहीं भी करेंगे तो मेरे लिए चलेगा .. पर दूसरों के लिए ठीक कर दें .. क्‍यूंकि यह इंटरनेट पर स्‍थायी तौर पर मौजूद रहेगी !!

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  13. @समय जी,
    हां शायद आप ठीक कह रहे हैं...ऐसा ही है ..शायद.

    संगीता जी,
    कोशिश जारी है..उम्मीद है जल्दी ही ठीक हो सकेगा तब तक हुई दिक्कत के लिये क्षमा प्रार्थी हूं।

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  14. भैया जी किसे भरमा रहे हैं? अपना प्रोफाइल देखिये, कब से हैं आप ब्लॉग संसार पर? इतने समय के बाद भी आप जैसों के विषयों को चाहे वो गंम्भीर हों या फिर हलके-फुल्के नहीं पढ़ता तो इसका मतलब है कि उसको पढने का सऊर नहीं है.
    वैसे बधाई हो.......प्रिंट मीडिया में भी धाक जमाने के लिए

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  15. गम्भीर लेखन भी चलेगा जी, बल्कि दौड़ेगा। शर्त यह है कि वह वाकई गम्भीर हो। केवल गम्भीरता का लबादा ओढ़े रहने वाले पीछे रह जाते हैं।

    आपकी सफलता पर बधाई।

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  16. चित्र पर क्लिक करें तो बडा दिखने लगेगा...और हां गंभीर /हल्के फ़ुल्के पर आपके विचार जानना अच्छा लग रहा है.स्नेह और साथ बनाए रखें।

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  17. वधाईयां जी, लख-लख वधाईयां

    जय हिंद...

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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