बदलते सामाजिक परिवेश में भारत जैसे देश में भी पारिवारिक परंपराऐं, वैवाहिक मान्यतायें, और एक अटूट बंधन जैसी स्थापित हो चुकी अवधारणा किस तेजी से टूट रही है इस बात का अंदाजा सिर्फ़ इस बात से ही हो जाता है ..राजधानी की बहुत सी पारिवारिक अदालतों मे से सिर्फ़ एक पारिवारिक अदालत में ही प्रति माह सौ -सवा सौ तलाक लिये और दिये जा रहे हैं। और सबसे ज्यादा अफ़सोस की बात ये है कि ये दर प्रति दिन बढती ही जा रही है। तलाक की बढते चलन पर अद्ध्य्यन करने के बाद कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकल कर सामने आये हैं।
वर्तमान में तलाक का ये चलन सिर्फ़ शहरों में ही ज्यादा तेजी से फ़ैल रहा है। आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में तलाक के मामले बहुत ही कम हो रहे हैं। जबकि विवाह संबंधी विसंगतियां अभी भी सबसे अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में ही पाई जाती हैं । सामाजिक विशलेषक इसका कारण मानते हैं, ग्रामीण क्षेत्रीय समाज काअ अधिक मजबूत और अब भी काफ़ी प्रभावी होना। यही कारण है कि दांपत्य जीवन में यदि कभी कोई गडबड वाली बात होती भी है तो पहले दोनों परिवार और फ़िर समाज भी बीचबचाव करके वैवाहिक संस्था को बचाने का ही प्रयास करते हैं।
इसके अलावा एक दूसरा अहम कारण है ग्रामीण महिलाओं मे शिक्षा और आत्मनिर्भरता की कमी । गांव में अभी स्त्री शिक्षा को बहुत ही उपेक्षित रखा जाता है, इसका एक परिणाम ये होता है कि फ़िर इससे उनके आत्मनिर्भर होने का सवाल ही नहीं उठता। इसी कारण से बहुत बार कई प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद जल्दी से कोई महिला अपनी ससुराल छोडने की स्थिति में नहीं होती। क्योंकि शायद उसके दिमाग में ये बात भी ्होती है कि किस कठिनाई से उसके माता पिता ने उसका विवाह करवाया था। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं मे शिक्षा की कमी के कारण वे अपने अधिकार और उसकी प्राप्ति हेतु बने कानूनों के प्रति जागरूक नहीं हो पाती हैं। इसका एक परिणाम ये होता है कि विवाह टूटने से बच जाते हैं।
इससे इतर एक मुख्य कारण होता है विकल्पों की कमी। ग्राम क्षेत्र में आज भी दूसरा विवाह..विशेषकर यदि महिला का होना हो तो ये बिल्कुल अनोखी या कहें तो अनहोनी जैसी बात होती है।. यानि विवाहित स्त्री के पास इस बात का कोई विकल्प नहीं होता कि कि यदि विवाहित जीवन जीना है तो उसी परिवार में ही जीना होगा।ये डर भी उन्हें कोई प्रतिकूल कदम उठाने से रोक देता है।
इसके विपरीत शहरी जीवन में, महिलाओं का पूर्ण शिक्षित होना...नौकरी, व्यवसाय,आदि हर क्षेत्र में भागीदारी और सबसे बढकर अपने सभी कानूनी, सामाजिक अधिकारों की भलीभांति जानकारी ही वे मुख्य कारण हैं जो शहरों मे तलाक के चलन को बढावा दे रहे हैं। इन सबके साथ साथ एक सबसे बडी वजह है शहरों मे समाज का न होना..या किसी भी सामाजिक बंधन से बंधे न होने का एहसास । शहरों में आज लोग इतने संकुचित हो गये हैं कि उसे सिर्फ़ अपने परिवार, अपनी समस्याओं से ही फ़ुर्सत नहीं मिलती। ऐसे में कोई क्यों किसी के पारिवारिक जीवन को बचाने या तोडने में अपना समय गंवाएगा । और जहां तक अभिभावकों की भूमिका की बात है तो ये बात अब अक्सर देखेने सुनने को मिल जाती है कि कई बार तो घर सिर्फ़ इस कारण से टूटते जा रहे हैं क्योंकि बनती हुई बात को ..पति या पत्नि के माता पिता या किसी प्रभावी रिश्तेदार ने अपनी नाक का प्रश्न बना कर उसे और बिगाड कर रख दिया।
लडकियों का शिक्षित होना , न सिर्फ़ शिक्षित बल्कि समाज के हर सक्रिय पेशे में प्रभावी रूप से सक्रिय होना, इतना कि वे अपने जीवन से जुडे हर निर्णय को खुद ही ले सकें , भी परिवार के टूटने का कारण बन रहा है। दरअसल आज भले ही विकास के मायने बदल चुके हैं, पारिवारिक संरचनायें भी परिवर्तित हो रही हैं, किंतु इन सबके बावजूद आज भी भारतीय परिवारों में महिलाओं की भूमिका और उनसे घरेलू जिम्मेदारियों की जो अपेक्षा है वो हमेशा की तरह वही पुरातनकाल की है, जबकि आज के समय में न तो ये स्वाभाविक है और न ही अपेक्षित । ऐसे में ये स्थितियां उत्पन्न होना कोई अप्रत्याशित नहीं लगता । और देर सवेर परिवार की टूटने के हालात आ ही जाते हैं।
तलाक की ये बढती प्रव्रित्ति अपने साथ न सिर्फ़ कई सामाजिक विसंगतियां ला रही है बल्कि ..स्वंय तलाकशुदा महिलाओं और उस दंपत्ति के बच्चों को हाशिये पर लाने का काम कर रही है। गौर तलब है कि तलाकशुदा महिलाओं को भारत में किसी भी तरह का कोई विशेषाधिकार या आरक्षण की व्यवस्था नहीं है । चाहे लाख दावे किये जाएं, बेशक इस तरह की दलील दी जाती रहे कि तलाकशुदा महिलाओं की जिंदगी पर तलाक शुदा होने का बहुत बडा फ़र्क नहीं पडता ,या कि इस तरह के कथन कि तलाक से जिंदगी खत्म नहीं होती मगर हकीकत तो यही है कि तलाकशुदा महिला की आज भी भारतीय समाज में बिल्कुल अलग थलग स्थिति सी हो जाती है। जो नौकरी पेशा हैं या आत्मनिर्भर हैं वे तो फ़िर भी जैसे तैसे खुद के जीवन को व्यस्त और दुरुस्त कर भी पाती हैं। मगर उनकी हालत तो बहुत ही ज्यादा दयनीय हो जाती है जो न ससुराल में रह पाती हैं और तलाक के बाद उन्हें मायके में भी बहुत सी प्रतिकूल स्थितियों का सामना करना पडता है।जो दोनो ही स्थान में रहना नहीं चाहती और अपना अलग निवास बनाती हैं, उन्हें भी इस समाज की रुढिवादिता से अलग अलग रूपों मे रूबरू होना ही पडता है।
सबसे दुखद बात तो ये है कि सरकार,महिला संरक्षण संस्थानों, स्वंय सेवी संस्थानों आदि ने अभी तक इस विषय में कुछ भी गंभीरतापूर्वक सोचा किया नहीं है। अलबत्ता आवेदन पत्रों पर महिलाओं से उनकी वैवाहिक स्थिति के बारे में जरूर ही जाना जाता है। कानून में भी इन तलाक शुदा महिलाओं के लिये सिर्फ़ उनके पति या ससुराल से ही कुछ भी दिलाने का अधिकार प्रदान किया गया है।आज जिस तरह से तलाक की घटनायें बढ रही हैं..तो अब ये समय आ गया है कि इस बिंदु पर गौर किया जाए..और इनके लिये कुछ ठोस योजनाएं, कानून, और उनके राह्त के लिये बनाई जायें।उम्मीद हि कि निकट भविष्य में इस दिशा में कुछ किया जा सकेगा ।
तलाक पर ये लेख काफी महत्वपूर्ण लगा...तलाक की समस्या इस देश में भी बहुत तेजी से बढ़ती जा रही है..हमें अब सोचना होगा कि हम जिस तेजी से अपने मू्ल्यों को भूलते जा रहे हैं कहीं न कहीं उसका खामियाजा भुगत रहे हैं...अब हमें समय रहते इसका निदान ढूढना चाहिए। ये देखना चाहिए कि कैसे तलाक के मामले कम हो सकते हैं...या तो हम तलाक को अपनी जिंदगी का एक हिस्सा मान लें या फिर ऐसी कोशिश करें कि तलाक की नौबत ही न आए
जवाब देंहटाएंयह रचना --- --- समस्या के विभिन्न पक्षों पर गंभीरती से विचार करते हुए कहीं न कहीं यह आभास भी कराती है कि सब कुछ नहीं बदल रहा है।
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख!सामयिक!
जवाब देंहटाएंपर अभी संख्या बढ़ेगी।
जैसे-जैसे ज्ञान फैलेगा बराबरी बढ़ेगी जिससे ढ़ाचा चरमराएगा,पुनर्निर्माण में समय लगेगा
जमी हुई मानसिकता के कारण नयापन लाने में बहुत समय लेगा।
ग्रामीण वाली बात काफ़ी हद तक ठीक पर वहाँ भी जागृति आ सकती है कुछ समय में।
विवाह जैसा पवित्र बंधन आज के युग में मज़ाक बन गया है जब तक चला ठीक है नही तो तलाक़ ऐसा प्रतीत होता है यह कोई प्रेम का रिश्ता नही बल्कि अब केवल समझौता बन गया है....बढ़िया चर्चा...
जवाब देंहटाएंविवाह का टूटना वास्तव में गंभीर समस्या बन कर सामने आया है। लेकिन यह एक अवश्यंभावी परिणाम है। स्त्रियों का आत्मनिर्भर होना और समानता की ओर बढ़ना परिवारों को स्वीकार्य नहीं हो पाता। यहीँ से टूटन उत्पन्न होती है। परिवारों में आंतरिक जनतंत्र का विकास ही इस समस्या का हल है। लेकिन उस की शिक्षा की ओर अभी किसी का ध्यान नहीं है।
जवाब देंहटाएंवैसे तो हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति उतनी अच्छी नहीं .. पर किसी की बेटी ,किसी की बहू , किसी की पत्नी और किसी की मां के रूप में उसे प्रतिष्ठा मिल ही जाती है .. पर तलाकशुदा महिलाओं की स्थिति वाकई बहुत कमजोर है .. वह न तो किसी की बेटी रह जाती है , न किसी की बहू , न किसी की पत्नी और न ही किसी की मां .. समाज की ओर से उपेक्षित इन महिलाओं के लिए सरकार की ओर से भी कोई अधिकार नहीं दिए गए है .. आज जब इनकी संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है .. इनके लिए सोचा जाना आवश्यक है !!
जवाब देंहटाएंझा जी, एक सर्वे के मुताबिक तलाक का अनुपात अरेंज्ड शादियों की जगह लव मैरिज करने वाले जोड़ों में कहीं ज़्यादा होता है...जहां पति-पत्नी दोनों कमाने वाले हों, वहां भी तलाक के मामले ज़्यादा ही देखने आने लगे है बनिस्बत उन जोड़ों के जहां एक ही कमाने वाला होता है...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
जब तक़ एक दूसरे पर हावी होने की प्रवृत्ति नही बदलेगी ये समस्या बढती ही जायेगी,ऐसा मै समझता हूं।
जवाब देंहटाएं"महिलाओं का पूर्ण शिक्षित होना..."
जवाब देंहटाएंकैसी शिक्षा? ऐसी शिक्षा जो पारिवारिक परंपराऐं, वैवाहिक मान्यतायें और अटूट बंधन को तोड़ दें?
सही शिक्षा तोड़ती नहीं बल्कि जोड़ती है। सारी समस्यों का कारण है सही शिक्षा का न होना, गलत शिक्षा दिया जाना। हमारी तो अपनी कोई शिक्षानीति जो नहीं है जो हमें हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार का ज्ञान दे। इसीलिए आज युवावर्ग में भटकाव की स्थिति है।
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2009/10/blog-post_11.html
जवाब देंहटाएंइस लिंक पर इसी विषय से सम्बंधित
जानकारी हैं देख ले सुविधा अनुसार
मुद्दा तो आपने अच्छा उठाया है , और इस मामले में मेरी राय अनिल पुसदकर जी के साथ है .
जवाब देंहटाएं