शुक्रवार, 20 मार्च 2020

कैसा कौन सा न्याय दिवस -देर आयद दुरुस्त आयद

          





     इस देश का मौजूदा कानून अपने आप में एक गाली है बाक़ी तो सब निमित्त मात्र हैं | आज सात साल के इंतज़ार के बाद देश में हुए और हो रहे अत्यंत दुर्दांत बलात्कार में से एक बेटी के दोषियों को जैसे जैसे सज़ा पर टँगवा कर देश को जबरन "न्याय दिवस " मनवा कर जाने कौन क्या हासिल कर पा रहा है | 

कानून की बात पूछ रहे हैं आप तो सुनिए फिर ,मौजूदा कानून के तहत सात वर्षों तक जो गुमशुदा हो (यानि मुकदमे का फैसला ) उसे मृत घोषित किया जा सकता है ,और फिर कानून की आत्मा तो उसी दिन उसी समय चीत्कार मार उठी होगी और ऐसे हर अपराधी को बिना सजा पाए छूटते देख मारती होगी जो अपराध कारित करने वालों में सबसे अधिक नृशंस और हैवानियत से भरे होने के बावजूद नाबालिग और  मासूम करार दिए जाने के कारण फांसी तो दूर एक दिन भी जेल नहीं काटते ,ऊपर से सरकार यदि टिक टॉक वीडियो बनाने वाली हो तो फिर सिलाई मशीन , कारखाना और जाने क्या क्या देकर सितम ढाती है उन मासूमों पर | 

लटक गए चारों ,देर आयद दुरुस्त आयद | लेकिन निर्भया देश की एक अकेली बेटी नहीं थी ,नहीं है जिसकी रूह पिछले जाने कितने महीने सालों से इस समाज से सिर्फ एक बात पूछती है ,"बताओ हम बेटियों का क्या कसूर था /है | 

यूं भी अदालतें जब फैसला सुनाती हैं और इन्हें कानूनी भाषा में न्याय कर समाज पर चस्पा किया जाता है उन फैसलों से विवाद और अपराध ख़त्म नहीं होते | ये ख़त्म होते हैं -समाधान से | वर्तमान में जब समाज का हर कारक और हर वर्ग अपने पत्तन के सबसे निचले पायदान पर है तो ऐसे में इतनी देर से भी सही मुजरिमों को उनके किये की सज़ा दिलवा पाना ही एक बहुत बड़ी बात लग रही है |

आप निश्चिंत रहें ऐसे बहुत से फैसले एकसाथ मिल कर भी वो नहीं कर सकते हैं जो समाज खुद अपने निर्णय ,अपने व्यवहार और अपनी बंदिशों से कर सकता है और इसके लिए फिलहाल समाज के पास वक्त नहीं है उसे बहुत तेज़ ,और तेज़ और तेज़ भागना है | 




6 टिप्‍पणियां:

  1. पर ये पूरा ईलाज नहीं है मानसिक बीमारों का। शुभकामनाएं नवसम्वत्सर की।

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    1. प्रतिक्रिया के लिए आपका शुक्रिया सर ,स्नेह बनाए रखियेगा

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  2. कानून व्यस्था में कुछ खामी हो सकती है केवल उन्हें बदलना जरूरी है.
    अच्छा लेख.

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    1. बदलने से ज्यादा जरूरी है उनका अनुपालन और अपराधियों में उन कानूनों का भय। प्रतिक्रिया के लिए आभार मित्र।

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  3. आप निश्चिंत रहें ऐसे बहुत से फैसले एकसाथ मिल कर भी वो नहीं कर सकते हैं जो समाज खुद अपने निर्णय ,अपने व्यवहार और अपनी बंदिशों से कर सकता है और इसके लिए फिलहाल समाज के पास वक्त नहीं है उसे बहुत तेज़ ,और तेज़ और तेज़ भागना है | बिल्कुल सही ,अति उत्तम ,कानून सबूतों का मोहताज है ,

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    1. सहमति और प्रतिक्रिया के लिए साधुवाद। स्नेह बनाए रखिएगा

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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