बुधवार, 1 जून 2011

शिकायत तो करिए जनाब ....आज का मुद्दा






अपने दिल पर हाथ रख कर बताइए कि अब तक आप कितनी बार , किसी दफ़्तर , बैंक , स्कूल , बस , या रेल की शिकायत एवं सुझाव पुस्तिका पर अपनी शिकायत या सुझाव दे चुके हैं । अगर ये प्रश्न भारत की आम जनता से पूछा जाए , तो जवाब होगा , शिकायत और सुझाव पुस्तिका ...ये क्या होता है ..लगभग चालीस प्रतिशत , हां जानते तो हैं लेकिन कभी किया नहीं ..पचास प्रतिशत ..जिन्होंने किया या फ़िर कि चाह कर भी नहीं कर पाए क्योंकि शिकायत एवं सुझाव पुस्तिका उन्हें लाख सर पटकने पर भी नहीं मिली । हो सकता है कि आंकडा थोडा सा इधर उधर हो लेकिन हालात कमोबेश ऐसे ही है ।


सुझाव और शिकायत पुस्तिका का रिवाज़ जहां भी स्थापित हुआ होगा वहां उसके पीछे एक ही उद्देश्य निहित होगा कि , संबंधित संस्था/संस्थान में व्याप्त कमियों को बाहर लाना और जिनकी वजह से वो कमियां आ रही हैं उनके बारे में संस्था/संस्थान को पता होना ताकि वो एक साथ दो मोर्चों पर आराम से नीति बना सके । ये परिकल्पना तो बहुत अच्छी है मूल रूप से ,लेकिन जितनी आसानी से इसे प्रशासक दफ़न करते रहे हैं ऐसा लग रहा है मानो समाज को न तो अब सरकार और प्रशासन से कोई शिकायत है और न ही उसे अच्छी बुरी सलाह देने की कोई फ़िक्र , तो क्या अब ये सही वक्त नहीं है कि उस सो चुकी परंपरा को झिंझोड के जगाया जाए , और उस पुस्तिका को इतना भर दिया जाए कि जब सरकार बेशर्मी से अपना रिपोर्टकार्ड जारी करे तो जनता द्वारा दर्ज़ की गई शिकायतें उसे बता सकें कि सरकार कब कहा फ़ेल हुई ।


सरकारी नियमों के अनुसार तो हर दफ़्तर , सार्वजनिक कार्यालय , परिवहन व्यवस्थाओं से लेकर , खूबसूरत इमारतों , सुंदर उपवनों , और लगभग हर जगह ही शिकायत एवं सुझाव पुस्तिका का प्रावधान है । निजि क्षेत्रों में तो , बाकायदा इसके लिए अलग से विशेष विभाग एवं इसे सुनने और निपटाने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित लोगों को रखा जाता है , जो ग्राहकों की समस्याओं को सुन कर उनका निदान निकालने में ग्राहक की सहायता करते हैं । सार्वजनिक क्षेत्रों में इसका ठीक उलटा है । यहां एक दिलचस्प तथ्य की ओर ईशारा करना ठीक हो शायद , सरकार द्वारा चालित हर बस और रेल में शिकायत एवं सुझाव पुस्तिका यात्रियों को उपलब्ध करवाने का नियम है , और ये रखी भी जाती है । किंतु लाख सर पटकने के बावजूद भी संबंधित कर्मी आपको वो पुस्तिका उपलब्ध नहीं करवाते हैं । कारण स्पष्ट है कि , आपकी वहां पर लिखी शिकायत उस कर्मी से सर पर गाज बनके गिर सकती है । यही कारण है कि वो आपको किसी भी परिस्थिति में शिकायत पुस्तिका उपलब्ध ही नहीं करवाएगा । ऐसी ही परेशानी विभिन्न दफ़्तरों में भी आती है । वहां और अधिक कठिनाई और गुस्सा इस बात पर आता है आम लोगों को यदि को चाहता कि किसी की शिकायत खुद जाकर किसी अधिकारी , या वरिष्ठ कर्मी से करे तो उसे ऐसा भी नहीं करने दिया जाता है । 


लेकिन इससे जुडा एक अन्य पहलू यही है कि लोग शिकायत और सुझाव के इस नायाब हथियार के प्रति उदासीन और उपेक्षा का भाव रखते हैं । आम लोगों ने तो जैसे लडने का माद्दा ही छोड दिया है । अगर आज भी दस में से पांच विरोध का रास्ता चुन लें , न सिर्फ़ चुनें बल्कि पुरजोर तरीके से इन शिकायत व्यवस्थाओं का का उपयोग करते हुए सारी गलत बातों को बार बार सामने लाएं तो यकीनन ये बात माहौल बदलने में कारगर साबित होगी । सरकार और प्रशासन को भी देखना चाहिए कि आखिर क्या कारण है कि , अन्य विकल्पों पर इतनी अधिक शिकायत दर्ज़ करवाने के बावजूद सालों साल तक शिकायत पुस्तिका कोरी कैसे रह जाती है या उसे जानबूझ कर कोरा ही रहने दिया जाता है । तो आगे बढिए और दर्ज़ कराइए अपनी हर शिकायत को ...आप करेंगे न ॥

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज का मुद्दा...मुदा जरुरी मुद्दा!!

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  2. अजय भाई,
    यहां सब ये गाना गाने वालों की भरमार है...

    कौन सुनेगा, किसको सुनाए,
    इसलिए चुप रहते हैं...

    जय हिंद...

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  3. मैं तो यदा-कदा करते रहता हूं। पिछली दो हवाई यात्राओं के दौरान उन विमान कम्पनियों के खिलाफ़ अपनी शिकायत दर्ज़ कराई, ये और बात है कि मुझे आज तक ज्ञात नहीं हुआ कि उन्होंने क्या कार्रवाई की।

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  4. लगातार शिकायतें होती रहें तो कुछ तो फर्क पड़ता है !
    आगे से ध्यान रखूँगा !

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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