राजधानी दिल्ली में हाल ही में ,बच्चों की खरीद फ़रोख्त की घटना में जिस तरह से एक स्वयंसेवी संस्था की लिप्त्ता जगजाहिर हुई है उसने एक बार फ़िर से देश भर में चल रही तमाम स्व्यंसेवी संस्थाओं को सवाल के घेरे में रख दिया है ॥ ऐसा नहीं है कि ऐसे किसी घृणित काम में किसी स्वयं सेवी संस्था का नाम पहली बार आया है । वर्तमान में जिस तरह के देश के सामाजिक , राजनीतिक , प्रशासनिक हालात हैं उसमें कोई भी तंत्र कोई भी व्यवस्था इस सर्व्यापी और सर्वग्राह्य बन चुके अपराध का हिस्सा न बनने देने से खुद को रोक नहीं पाया है । मगर सबसे अधिक अफ़सोस उन व्यवस्थाओं के लिए होता है जो समाज और उसकी सेवा के नाम पर या उसके इर्द गिर्द है । इनमें से एक बहुत बडी व्यवस्था है चिकित्सा और शिक्षा , बहुत ही दुखदायी बात ये है कि आज दोनों ही व्यवस्थाएं , लालच , और धनोपार्जन का पर्याय मात्र बन कर रह गई हैं ।
ब्लॉग से डोमेन की ओर अग्रसर हूं
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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..