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आखिरकार पूरे साठ साल बाद वो दिन आ ही गया .....जब देश की अदालत ....जिसके लिए कहते हैं ...देर भले हो , मगर यकीनन अंधेर नहीं है ..ये तय करेगी कि ...देश के अराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम ....भरत वंशज ....और अयोध्या नाम की प्राचीन नगरी के शासक
श्री रामचंद्र की जनम्भूमि का स्थान वही है ........जो आज विवादित क्षेत्र/स्थान कहला रहा है .......। या फ़िर कि ये ...कि जिस स्थान की निश्चितता को लेकर उठे संशय ....को एक अपमान मान कर देश का आम हिंदू.......ध्यान रहे कि यहां आम हिंदू ही कहा गया है ......कभी अपनी इज्जत , कभी अपनी संपत्ति और कभी अपनी जान को दांव पर लगाता रहा ......वो दरअसल ...वो नहीं थी । इसके अलावा एक बडा प्रश्न ये भी है कि .......फ़िर तो नए सिरे से ......और इस बार इंसान को अपने भगवान के लिए उनका आश्रयस्थल ढूंढना पडेगा ...और जो इंसान अपने जीवन भर अपना ही घर तलाशने से फ़ुर्सत नहीं पाता...वो बेचारा भगवान का घर क्या खाक तलाश पाएगा ????
एक आम आदमी के रूप में यदि सोचा जाए तो फ़िर आज इस मोड पे ...जो कुछ बातें उसके मन में आ रही हैं ..उनमें से कुछ ये बातें हैं.........पहली बात तो ये कि , आखिर सिर्फ़ पिछले साठ सालों पहले ही ये विवाद क्यों उठ खडा हुआ ...उससे पहले के दो सौ साल से अधिक के मुस्लिम शासन में वो कौन सी स्थिति थी ऐसी कि , जिसकी प्रमाणिकता अचानक ही संशय में पड गई .....। चलिए ये भी माना कि शायद ये मामला वाकई ऐसा था कि बिना विधिक स्थिति का पता लगाए निर्णय लेना मुश्किल था ..और इसलिए इसे अदालत तक ले जाना पडा........किंतु तब क्या राज्य की ये जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि जिस एक बात से देश के बडे जनमानस की भावना प्रभावित थी .....उस विवाद को समयबद्ध करके उसके अंतिम फ़ैसले तक पहुंच जाने की सुनिश्चितता तय करे ......। पांच दस . बीस या पचास वर्ष नहीं बल्कि पूरे साठ बरस तक ...ये मामला चलता रहा । यहां एक आम आदमी ये भी सोच रहा है कि ...बात बेबात स्वंय संज्ञान ले लेने वाली अदालत आखिरकार साठ बरस तक इस मुकदमे को क्यों सुलझाती रही ।एक आम आदमी ये भी सोच रहा है ..कि आज आजादी के साठ बरसों के बाद भी देश जहां एक तरफ़ .....गरीबी , अशिक्षा, बेरोजगारी , महंगाई , जैसी शाश्वत समस्याओं से जूझ रहा है ..वहां क्या वाकई ये सच में ही इतना जरूरी मुद्दा है कि जिसके फ़ैसले के बगैरे ...देश का आगे पीछे बढना तय नहीं हो पाएगा ॥
जहां तक आम आदमी के अयोध्या से जुडे होने का प्रश्न है तो ..शायद बहुतों को तो इस मुद्दे का ध्यान ही तभी आया है जब मीडिया में खबर आई है कि ..इस मुकदमे का फ़ैसला अब आने वाला है ....इससे पहले और न ही शायद इसके बाद एक आम आदमी की किसी भी स्थिति पर कोई फ़र्क पडने वाला है । इतना समय बीत जाने के बाद अब कुछ बातें तो स्पष्ट ही तय हैं कि ....इस मुकदमे को जानबूझ कर इतने समय तक काल के गर्त में दफ़न रहने दिया गया । पिछली आधी शताब्दी में आई कोई भी सरकार इतनी हिम्मत नहीं जुटा सकी कि , वो अपनी सत्ता के मोह और वोट बैंक के लालच से बाहर निकल कर इस अयोध्या मसले को निपटा सकी । एक और बडा प्रश्न ये भी है , जो जाने अनजाने सोचा नहीं जा सका है वो ये कि , आखिर क्या वजह रही कि अब जबकि साठ वर्षों तक इस मुकदमे में कोई निर्णय नहीं ले पाने वाली अदालत ये जानते हुए कि इस फ़ैसले के परिणाम कुछ इस तरह से नकारात्मक भी आ सकते हैं कि वो आने वाले राष्ट्रमंडल खेलों को भी प्रभावित कर सकते हैं , तो फ़िर इस फ़ैसले के लिए यही समय क्यों चुना गया । और सबसे बडी बात ये कि , अभी ये फ़ैसला शीर्ष अदालत का नहीं है । यानि अभी तो इस बात की पूरी गुंजाईश है कि अपीलीय अदालत भी इस मुद्दे को अच्छी तरह जांचे परखे ...........तो ऐसे में ये अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है कि ..अभी इस मुद्दे को भुनाने की कितनी संभावनाएं बची हुई हैं ॥
इस मुकदमे का फ़ैसला चाहे जो भी आए ....इतना तय है कि देश में आज धर्म के नाम इस तरह के प्रपंच और प्रौपगैंडे के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है यदि उसे इसी तरह से चलते रहने दिया जाए तो ..फ़िर आने वाले समय में यदि भारत के बीच भी इस्राइल और फ़िलिस्तीन भी देखने को मिल ही जाएंगे । एक उससे भी अहम बात ये कि ..आखिर कब तक देश का एक बडा वर्ग ..यानि कि हिंदू समुदाय अपने धर्म ..अपने अराध्य , अपने धर्मस्थानों , अपने उत्सवों को ये सोच सोच कर और नाप तौल के मानता/मनाता रहेगा कि कहीं जाने अनजाने वो धर्मनिरपेक्षता के तथाकथित उस दायरे को पार न कर जाए , जिसकी समझ एक आम आदमी को कभी भी नहीं हो पाई है
रविवार, 19 सितंबर 2010
देश से बडा एक मुद्दा : अयोध्या ...अपरिचित और अनिश्चित .........
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धर्मनिरपेक्षता के तथाकथित उस दायरे को पार न कर जाए
जवाब देंहटाएंकहीं इस बार पार न कर जायं ! और सब ठगे से देखते रहें !