बुधवार, 16 दिसंबर 2009

भारत में यौन व्यवसाय को लेकर उठी एक बहस



हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक मुकदमे के दौरान खीज कर की गई टिप्पणी के बाद एक बहस शुरू हो गई है माननीय न्यायालय ने सरकार द्वारा यौन कर्मियों की स्थिति और उनकी दशा पर तथा बढते यौन व्यवसार पर सरकार की लापरवाही वाले रुख को देखते हुए खीज कर टिप्पणी की कि , इससे तो अच्छा क्या ये नहीं होगा कि सरकार इसे कानूनी मान्यता दे दे बस इसी वक्तव्य को आगे खींच कर बढाया जा रहा है और उसे अपने अपने तरीके से विशलेषित किया जा रहा है हालांकि ये पहला मौका नहीं है जब इस तरह की कोई बात इस विषय पर सामने आई है ।कुछ समय पूर्व भी समाज कल्याण मंत्रालय भी कुछ इसी तरह की योजना पर विचार कर रहा था , मगर जाने किन कारणों से वो बात कहीं अटक कर रह गई

सबसे पहले बात करते हैं न्यायालय के कथन की , न्यायपालिका के कहने का कहीं से भी ये मतलब नहीं था कि यदि वो बुराई खत्म नहीं हो पा रही है तो उसे वैधानिक मान्यता प्रदान कर दी जाए बल्कि ये तो सरकार को जूता भिगो के मारने जैसी झिडकी थी कि , यदि सरकार कुछ वैसा करने में रुचि नहीं दिखा रही है तो फ़िर ऐसा ही सही ताकि कम से कम इसी से शर्मसार होकर सरकार कुछ गंभीर हो सके अब बात करते हैं कि यौन व्यवसाय को वैधानिक मान्यता देने की दरअसल जब कल्याण मंत्रालय ने इसी तरह का प्रस्ताव रखने की सोची थी तो उनके दिमाग में पश्विमी देशों में चलाई जा रही ऐसी ही योजनाएं थी जिनसे प्रभावित होकर मंत्रालय भारत में भी उसे लागू करने की सोच रहा था आईये पहले देखते हैं कि जर्मनी फ़्रांस आदि देशों में यौन व्यवसाईयों\यौन कर्मियों के लिए क्या किया जा रहा है


सबसे पहले पूरे देश भर के यौन व्यवसाईयों की पहचान करके उन्हें पंजीक्रत करके लाईसेंस जारी किया गया इस लाईसेंस प्रणाली से कई लाभ हुए , एक तो उन्हें पुलिस दलाल आदि के अनावश्यक शोषण आदि से मुक्ति मिली दूसरे उनको स्पष्ट पहचान मिल गई सरकार को एक बार उनकी कुल संख्या/ उनकी स्थिति / उनका स्थान आदि का पता चलने के बाद शुरू हुआ उनके लिए कल्याण कार्यक्रमों की शुरुआत इसके तहत सबसे पहले उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सरंक्षण की व्यवस्था की गई सिर्फ़ उनके बल्कि उनके आश्रितों और सबसे बढके उनके बच्चों के लिए आवास शिक्षा, रोजगार आदि की समुचित व्यवस्था की गई इसके बाद पूरे योजनाबद्ध तरीके से उन्हें समाज में , समाज की मुख्यधारा में लाने की कोशिशें की गई लेकिन इन सबके अमलीकरण के बीच सबसे जरूरी जिस बात का ध्यान रखा गया वो था , किसी को भी यौन कर्मी बनने से रोकना इसके लिए सिर्फ़ स्वयं सेवी संगठनों बल्कि आपराधिक संगठनों और खुद पहले से इस दलदल में फ़ंसे यौन कर्मियों की सहायता भी सरकार ने नि:संकोच ली इसका परिणाम ये निकला कि आज उनकी स्थिति पहले के मुकाबले कहीं बेहतर है

तो जब भी भारत में इस तरह की कोई कोशिश करने का विचार उठेगा तो क्या ये सरकार ये सुनिश्चित कर पाएगी कि उपर वर्णित सभी उपायों/ कदमों/ कानूनों को वो भलीभांति लागू करवा पाएगी और तो दूर की बात है यदि सरकार अगले दस वर्षों तक सिर्फ़ देश भर में कार्यरत यौन कर्मियों की पहचान ही कर पाए तो गनीमत है दिन प्रतिदिन असुरक्षित यौन संपर्क से एडस जैसी लाईलाज बीमारी की चपेट में आने तक से रोकने के लिए जरूरी छोटे छोटे उपायों तक को तो सरकार लागू नहीं करवा पा रही है ऐसे में आने वाले समय में उनकी स्थिति में कोई सुधार पाएगा ..मुश्किल लगता है

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रीमकोर्ट की टिप्पणी के आशय को सही स्पष्ट किया। वेश्यावृत्ति समाप्त होनी चाहिए। लेकिन उस के लिए पहले तो समाज में इच्छा होना चाहिए। जब सांसद किस्म के लोगों की समझ यह हो कि बलात्कार के लिए खुद लड़कियाँ आमंत्रित करती हैं तो क्या किया जा सकता है।

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  2. चलिए अच्छा है..... TATA's ..Ambani's.. Birla's को नया वेंचर मिला....... विदेशी निवेश... कि भी पूरी आशा है..... इकोनोमी सुधरेगी..... शेयर के दलाल यहाँ पैसा लगायेंगे..... रोज़गार बढेगा.... और हर शहर में कई ब्रोकर होंगे..... स्टॉक एक्सचेंज में और नए स्टॉक आयेंगे.....

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  3. ये नीलाम होते कूचे...
    जिन्हें नाज़ है हिंद पर,
    कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं...

    जय हिंद...

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  4. अजय जी अपनी सरकार और नेताओं को अपनी झोली भरने और वोट बैंक की राजनीति से फुर्सत मिले तब तो किसी और के बारे में सोचेंगे ! और हमारी जनता भी वैसी ही है .... चुनाव से पहले खूब बोलेगी और चुनाव आते ही .... कुछ रुपियों और बोतल ले कर वोट उन्हें ही देगी ....

    अब यौन कर्मियों की सुध लेने वाला कोई नहीं दिखता ....

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  5. हमारी सरकार से कुछ ज्यादा ही अपेक्षाएं हैं !!!!!!!

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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