अब से कुछ वर्षों पहले जब देश की राजधानी दिल्ली में सर्दियों की एक रात में , वहशी दरिंदे अपराधियों ने एक चलती हुई बस में एक बच्ची का सामूहिक बलात्कार करके अमानवीय और नृशंस तरीके से उसकी ह्त्या करके सड़क पर फेंक दिया। अपराध इतना वीभत्स और भयानक था कि इसने पूरे देश को बेटियों की सुरक्षा के प्रति उद्वेलित किया। सरकार , समाज की प्रतिक्रया देख कर लगा था कि शायद अब महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार और शोषण की घटनाओं पर अंकुश लग सकेगा।
आज एक दशक के बाद जब अभी दस दिन पूर्व एक महिला प्रशिक्षु चिकित्सक के साथ वही बर्बबरता , वही शोषण करके क्रूर तरीके से उसकी ह्त्या कर दी गई है और एक बार फिर देश खूबड़ और आक्रोशित है। सच तो ये है कि दिल्ली के उस और कोलकाता के इन दो अपराधों के बीच बीते समय में भी देश भर में बच्चियों , युवतियोन और महिलाओं पर अत्याचार शोषण की हज़ारों लाखों घटनाएं हर साल , हर महीने , हर दिन घटती रही हैं और ये अब भी बदस्तूर जारी है।
किसी भी देश या समाज की सभ्यता , संस्कृति और संस्कार इस बात पर निर्भर करते हैं कि वो अमुक समाज , देश अपनी स्त्रियों , बच्चों वृद्धों और बेजुबान पशु पक्षियों से कैसा व्यवहार करता है , उनके प्रति कितनी आत्मीयता दया भाव रखता है और किस तरह से इनकी सुरक्षा , संरक्षण और सहायता के लिए खुद को प्रतिबद्ध करता है। किन्तु ये उतनी ही अफ़सोस की बात है कि भारतीय समाज अपने वृद्धों , बच्चों , महिलाओं के प्रति कहीं से भी संवेदनशील और सहृदय नहीं है तो बेजुबानों की तो क्या ही कहा जाए।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर नज़र डालें तो स्थति की भयवहता का अनुमान हो जाता है। दिसंबर 2023 को जारी रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार भारत में महिलाओं के प्रति किए जा रहे अपराधों में पिछले वर्ष की तुलना में ये 4 % और अधिक बढ़ गया। रिपोर्ट में खुलासा किया गया है की वर्ष 2020 में कुल 3 , 71 , 503 घटनांए तो वर्ष 2021 में ये बढ़कर4 , 28 , 278 हो गेन और वर्ष 2022 में यह संख्या और अधिक बढ़कर 4 , 45, 256 घटनाओं की हो गई और ये सब वो मामले हैं जो दर्ज़ किए जा सके हैं। रिपोर्ट बताती है कि 31 प्रतिशत मामलों में तो घर वाले ही कहीं कहीं संबधित पाए गए हैं और 20 प्रतिशत मामले में उनका अपहरण और शोषण किया गया। महिलाओं के प्रति अपराध में उत्तर प्रदेश , राजस्थान , पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की स्थति ज्यादा सोचनीय है।
ऐसा नहीं है कि सरकार , प्रशासन और विधायिका बलात्कार जैसे घृणित अपराध को रोकने के लिए सोच या कर नहीं रहीं हैं , दिल्ली निर्भया मामले के बाद महिलाओं के प्रति अपराध विषयक कानूनों में और अभी हाल ही में लाए संशोधन में दंड को अधिक कठोर किए जाने के बावजूद कानूनों में परिवर्तन मात्र से या दंड को अधिक कठोर भर कर देने से इस अपराध और अपराधियों के मनोभाव पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा खासकर उन परिस्थितयों में जब अपराधी कई खामियों की वजह से साफ़ बच निकलते हैं या छूट जाते है और सालों साल चलने वाले न्यायिक अभियोग के बाद मिले दंड को भुगतने से बचने के लिए भी कानूनी विकल्पों का का सहारा लेते हैं। हाल ही में राम रहीम को बार बार मिल रहे फर्लो का उदाहरण देख सकते हैं।
इस घृणित अपराध के अपराधियों में कानून व्यवस्था या अपने अपराध के लिए भुगते जाने वाले दंड का रत्ती भर भी भय नहीं होने की सबसे बड़ी वजह है न्याय मिलने में समयातीत देरी। विडम्बना या त्रासदी इससे बड़ी और क्या हो सकती है कि संयोगवश अभी हाल ही में , अजमेर में 32 वर्ष पूर्व 100 कालेज जाने वाली बच्चियों का शोषण किया गया , आधे दर्जन पीड़िताओं ने आत्महत्या तक कर ली थी और पूरे 32 वर्ष के बाद सत्र न्यायालय द्वारा दोषियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई है। गौरतलब है की अभी उच्च न्यायालय और सर्वोच्चय न्यायालय में अपील दलील का विकल्प उपलब्ध है।
महिलाओं युवतियों यहाँ तक कि बच्चियों पर भी हुए अत्याचारों , अपराधों , को लेकर भी देश की पुलिस अफसोसजनक रूप से बेहद असंवेदनशील और गैर जिम्मेदार रवैया दिखाती है। हाल ही में महाराष्ट्र के बदलापुर में मात्र चार वर्ष की अबोध बच्चियों के साथ शोषण की शिकायत ,पुलिस अधिकारी तीन दिनों तक अनसुनी करती रही जबकि जांच अधिकारी एक महिला पुलिसकर्मी थीं। शोषण , छेड़छाड़ आदि के अपराध में पीड़ितों की यही शिकायत रहती है की समय रहते ही पुलिस नहीं सुनती , कार्यवाही नहीं करती और वारदात के बाद भी लीपापोती करती है।
अपनी है आधी आबादी , अपनी ही माँ , बेटी , बहन की सुरक्षा , मान , मर्यादा सुनिश्चित नहीं कर पाने वाला समाज ,देश खुद को विश्व में कितना ही शक्तिशाली और प्रभावशाली बना ले , घोषित कर ले किन्तु ये शक्ति ये प्रभाव किसी भी परिस्थति में आधा ही रहेगा। सबसे बड़ी बात ये है कि जिस तरह से असम में और इससे पहले बंगलौर में भी ऐसे अपराधों को अगले २४ घंटे में मौत की नींद सुला देने वाले तमाम कारण फिर आम जनमानस को इतनी बड़ी और भारी भरकम न्याय व्यवस्था से कहीं अधिक जरूरी और सही लगने लगे तो ये और भी सचेत हो जाने वाली बात है। समय रहते ही सब कुछ ठीक करने की दिशा में यदि सच में ही कुछ किया नहीं गया तो समाज के लिए विषम परिस्थितियाँ बनेंगी और समाज से कोई भी अछूता नहीं बचता कोई भी नहीं।
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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..