मुख्यधारा के गीत संगीत से इतर लोकगीतों व क्षेत्रीय गीतों का एक समृद्ध एवं गौरवशाली
इतिहास और परंपरा रही है । वास्तव में कहा तो ये जाता है कि हिंदी गीतों के संसार के बहुत से गानों में सुरों का सौंदर्य और माधुर यानि मिठास लोकगीतों से ही प्रेरित रहा है । यही नहीं इन्हें समृद्ध करने वाले गीतकार ,संगीतकार व गायकों ने मुख्य धारा में जुडने के बाद भी उस विरासत को जिंदा रखा ।
बदलते समय के साथ हिंदी गीतों व सिनेमाई गीत संगीत में रिमिक्स , रैप और कई अन्य नए चलनों से वहां जिस तरह का हल्कापन और स्तरहीनता बढी है उसी तरह , बल्कि उससे कहीं अधिक फ़ूहडता और भौंडापन , आज लोकगीतों में दिखता है । जितनी फ़ूहडता ऑडियो गानों के बोलों में सुनाई देती है उतनी ही अश्लीलता वीडियो एलबमों के चित्रांकन में भी दिखाई देती है ।
आश्चर्य व दु:ख की बात ये है कि ये प्रवृत्ति भोजपुरी , हरियाणवी , गढवाली , कुमाउंनी , पंजाबी आदि लगभग सभी क्षेत्र के लोकगीतों में भी बढी है । हालांकि ऐसा नहीं है कि क्षेत्रीय भाषाओं व लोकगीतों में सुंदर , व कर्णप्रिय गीत लिखे व गाने नहीं जा रहे किंतु स्तरहीन फ़ूहड एलबमों की अधिकता व रात दिन बसों , ट्रकों ,दुकानों , गांव ,कस्बों में इनकी चिल्ल पौं ने लोकगीतों की विरासत पर गहरा आघात लगाया है ।
इस प्रवृत्ति पर एक प्रसिद्ध लोकगायिका कहती हैं कि थोडे से पैसे लगाकर कुछ भी उल जलूल परोस कर ज्यादा पैसे बनाने का लालच और सस्ते/घटिया गीतों का बढता बाज़ार ही इसकी मुख्य वज़ह है । यदि इस प्रवृत्ति को अभी रोका और हतोत्साहित नहीं किया गया तो भविष्य में आने वाली पीढीयों को लोकगीतों और क्षेत्रीय गानों के नाम पर जो कुछ देखने सुनने को मिलेगा वो संगीत के नाम पर सिर्फ़ एक काला धब्बा होगा । इसलिए ये बहुत जरूरी है कि सुंदर , लोकगीतों को सहेज़ा और परोसा जाए ।
राजस्थानी लोकगीतों का भी वही हाल है अजय भाई! द्विअर्थी शब्दों वाले अश्लील और फूहड़ ढ़ंग से फिल्मांकित किये गीतों के एल्बम्स से बाजार भरा पड़ा है।
जवाब देंहटाएंआप सच कहे रहे हैं सागर भाई आज कमोबेश हर क्षेत्र में यही हाल है
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