ज्यादा फ़र्क नहीं है ,खुद ही देखिए , हालत इस तस्वीर से ज्यादा भयानक है |
अभी कुछ वर्षों पूर्व उत्तर पूर्वी दिल्ली में एक हादसे , जिसमें दो स्कूली बस आपस में आगे निकलने की होड में
दुर्घटनाग्रस्त हो गई थीं जिसमें बहुत से मासूम बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पडा था । हालांकि स्कूली वाहनों से जुडा हुआ ये कोई पहला हादसा नहीं था मगर ये इतना बडा हादसा जरूर था ,जिसने सरकार व प्रशासन को इस बात के लिए मजबूर किया कि वे स्कूली वाहनों के लिए जरूरी दिशा निर्देश जारी किए जाएं । प्रशासन ने स्कूली वाहनों के लिए बहुत से नियम कायदे बनाए जिन्हें कुछ दिनों तक लागू होते हुए सबने देखा भी । जैसे सभी स्कूली वाहनों पर पीले रंग की पट्टी और उसमें स्कूल वैन लिखा होना , ऐसे प्रत्येक वैन/बस में स्कूल की तरफ़ से शिक्षक/सहायक की अनिवार्य रूप से उपस्थिति , और सबसे जरूरी ऐसे स्कूली वाहनों में प्रशिक्षित चालकों का होना आदि ।
जैसा कि अक्सर और लगभग हर नागरिक कानून के साथ होता रहा है , कुछ दिनों के बाद इनमें न सिर्फ़ शिथिलता आई बल्कि धीरे धीरे स्थिति ऐसी बन गई कि पहले चोरी छुपे और अब तो खुले आम इन नियम कायदों की धज्जियां उडाई जा रही हैं । इसका दुष्परिणाम इससे अधिक भयंकर और क्या हो सकता है कि लगातार इन स्कूली वाहनों का दुर्घटनाग्रस्त होने के अलावा इन वैन और बस चालकों द्वारा छोटे स्कूली बच्चों का शारीरिक शोषण तक किए जाने की घटनाएं रोज़मर्रा की बात हो गई हैं । ऐसा नहीं है कि सरकार ,प्रशासन व पुलिस की तरफ़ से इससे निपटने के लिए कुछ नहीं किया गया है । बहुत बार पुलिस ने बाकायदा अभियान चलाकर इन तमाम स्कूली वाहनों के खिलाफ़ सख्ती दिखाई है । मगर ऐसा करते ही ये तमाम स्कूली वैन/बस वाले हडताल पर चले जाते हैं और अभिभावक से लेकर स्कूली प्रशासन को मौका मिल जाता है अपनी इन गलतियों को मजबूरी का जामा पहनाने का ।
शहरों में बढती आबादी और उसी अनुपात में बढते स्कूलों के कारण ये स्वाभाविक है कि स्कूली वाहनों की कमी जरूर महसूस की जाती है किंतु आज अभिभावकों से बच्चों के स्कूल आने जाने का भारी भरकम किराया राशि वसूलने वाले स्कूल प्रशासनों का ये रोना कृत्रिम सा लगता है । स्कूली बसों तक तो स्थिति फ़िर भी ठीक ही कही जा सकती है , मगर छोटे छोटे स्कूल वैन/ व स्कूली रिक्शे तक में बच्चों को जिस तरह से ठूंस ठूस कर ढोया और लादा जा रहा है उसे देखकर हठा्त ही उस छोटे से पिंजरेनुमा रिक्शे की याद आ जाती है जिसमें मुर्गों को किसी मीट की दुकान पर ले जाया जा रहा होता है
अब ये स्थिति अधिक चिंताजनक इसलिए भी होती जा रही है क्योंकि शहरों विशेषकर राजधानी की सडकों पर बेतहाशा बढते वाहनों ने , यातायात के दबाव को और अधिक बढा दिया है । छोटे छोटे बच्चों द्वारा तेज़ रफ़्तार से चलाते स्कूटियों/स्कूटरों/बाइक आदि ने इसे और भी अधिक नारकीय बना दिया है । ऐसे में बच्चों को स्कूल पहुंचाते व वापस लाते वाहनों के की पूरी कमान भी कमोबेश ऐसे ही लापरवाह कम उम्र और अनुभव वाले , जिनमें से अधिकांश के पास चालक लाइसेंस तक नहीं मौजूद होता है , देश के भविष्य को जानबूझ कर मौत के मुंह में ढकेलने जैसा है ।
ये इतना आसान नहीं होगा और न ही यकायक ठीक होने वाली समस्या है बल्कि इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से प्रशासन , पुलिस , अभिभावकों व स्कूल प्रशासन को मिल कर कई मोर्चों पर काम करना होगा । सबसे पहले अभिभावकों को स्कूल प्रशासन पर इस बात का दबाव बनाना चाहिए कि वे बच्चों के लाने जाने अपने अपने स्कूली वाहनों के चालकों , वाहनों की स्थिति , समय , रास्ते आदि की व्यवस्था को सर्वोच्च वरीयता सूची में रखें । वाहन चालक का लाइसेंस , उसका अनुभव व उसकी पृष्ठभूमि आदि की अच्छी तरह से पडताल किया/कराया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिए । पुलिस को इसमें स्कूल प्रशासनों का सहयोग करना चाहिए तथा निर्धारित नियम कानूनों के पालन को सुनिश्चित करना चाहिए ।
इन सबसे अहम बात ये कि एक आम नागरिक के रूप में हमें और आपको जब भी कहीं भी कभी भी कोई स्कूल वैन ऐसी स्थिति में दिखे कि लगे कि इसके बारें में स्कूल प्रशासन और पुलिस को सूचित करना जरूरी है तो बिना देर किए ऐसा किया जाना चाहिए । हमें हर हाल में ये याद रखना चाहिए कि , इन सडकों पर दौडते , इन सैकडों वैन में , हमारे आपके ही घर आंगन में खेलते वो नन्हें भविष्य हैं जिन्हें हर हाल में इस देश के कल के लिए बचाया जाना चाहिए , कम से कम ऐसी लापरवाहियों से उन्हें खोते रहने का गुनाह अब पूरी तरह से बंद किया जाना चाहिए ।
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आपका शुक्रिया रविकर जी
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