बुधवार, 4 सितंबर 2013

न शिक्षा आदर्श रही न शिक्षक (संदर्भ ,शिक्षक दिवस )





हर साल की तरह इस साल भी नियत समय पर शिक्षक दिवस आ गया है । शिक्षक दिवस यानि शिक्षकों को समर्पित एक विशेष दिन जो पूरे विश्व भर में अलग अलग तिथियों को , स्वाभाविक रूप से उनके देश के शिक्षक , चिंतक , विचारकों के जन्म आदि पर आधारित , मनाया जाता है । भारत में इसे , 5 सितंबर , देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति , पेशे से शिक्षक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस  को मनाया जाता है । इसकी शुरूआत की कहानी भी बेहद दिलचस्प है । डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने जब राष्ट्रपति के रूप में पद संभाला तो उनके प्रशंसकों ने उनके जन्मदिवस को मनाने का आग्रह किया । उन्होंने सुझाव दिया कि फ़िर से राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए । उसी वर्ष यानि 5 सितंबर 1962  से प्रति वर्ष इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है । 

बचपन से देखते चले आ रहे हैं कि स्कूलों में इस दिन को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है । छात्रों में तो अपने शिक्षकों के प्रति स्नेह आदर और सम्मान दिखाने , तथा इस दिन आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों को लेकर एक अलग ही जोश दिखाई देता है । बच्चों को जो चीज़ सबसे ज्यादा पसंद आती है वो है एक दिन के लिए खुद शिक्षक बनकर अपनी कक्षा से छोटी कक्षा वाले बच्चों को पढाते हैं और फ़िर उस दिन आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों में अपने शिक्षकों के साथ खुल कर हल्का फ़ुल्का समय बिताते हैं । कुल मिलाकर उस दिन बच्चों के लिए पूरे स्कूल का माहौल विनोदपूर्ण और आनंददायक रहता है । किंतु यहां ये भी बहुत गौरतलब है कि जैसाकि इस विशेष दिवस का महत्व बताते हुए एक बार देश के राष्ट्रपति वैज्ञानिक ने कहा था कि देश के भविष्य को संवारने की जितनी जिम्मेदारी शिक्षकों पर होती है उतनी किसी अन्य समुदाय और वर्ग पर नहीं होती ।

यदि स्थिति का आकलन किया जाए तो देश में आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी न तो शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं है और न ही शिक्षकों की । देश की सरकार व प्रशासन शिक्षा के प्रति कितने गंभीर हैं इस बात का अंदाज़ा इसी तथ्य से लग जाता है कि आज भी देश के बजट का कुल छ: प्रतिशत शिक्षा के मद में व्यय किया जाता है और इस राशि को भी ईमानदारी से कहां कितना उपयोग किया जाता है वो भी किसी से छुपा नहीं है ।


कहते हैं कि बुनियाद ही कमज़ोर हो तो फ़िर ईमारत की मजबूती हमेशा संदेह में रहती है । देश में आज सबसे बुरी हालत प्राथमिक शिक्षा की है और शिक्षकों की भी । न तो विद्यालयों के पास समुचित भवन हैं , न ही पेय जल , पुस्तकालय , पाठय सामग्री आदि बुनियादी सुविधाएं । ऊपर से शिक्षकों को पढाने के अतिरिक्त एक जिम्मेदारी सरकार ने और सौंप दी है और वो है मध्याह्न भोजन की । शहरों में तो खैर जैसे तैसे भोजन बनाने वाले भी मुहैय्या करा दिए गए हैं किंतु गांवों के स्कूलों में जहां पहले से ही शिक्षकों की भारी कमी है वहां उनमें से भी कुछ तो दोपहर भोजन योजना में ही लगे रहते हैं । किंतु ऐसा नहीं है कि सारा दोष सिर्फ़ सरकार और प्रशासन का ही है , शिक्षा आज एक व्यवसाय का रूप ले चुकी है और स्कूल कालेज मुनाफ़ा कमाने वाले कारोबार बन गए हैं । स्कूलों में किताबों से लेकर वर्दी तक जबरन बेचे जा रहे हैं । हर तरह एक भागमभाग सी मची हुई है । ऐसे में कोई आदर्श शिक्षा और शिक्षक की कल्पना भी कैसे कर सकता है ।

इन्हीं सबका परिणाम ये हुआ है कि आज न तो छात्रों के लिए कोई शिक्षक उनका आर्दश , उनका मार्गदर्शक गुरू और जीवनभर की प्रेरणा बन पाता है और न ही बनने को उत्सुक भी है । एक निर्धारित घिसे पिटे पैटर्न पर चल रही शिक्षा प्रणाली को  उम्र भर खुद ढोता  और छात्रों की पीठ पर लादता हुआ एक शिक्षक अब इस आस में कभी नहीं रहता कि उसका कोई छात्र कल होकर जब देश और समाज के निर्माण में कोई बडी सकारात्कम भूमिका निभाएगा तो खुद उस शिक्षक का दिया हुआ ज्ञान ही उसके मूल में होगा । शिक्षा और शिक्षकों को यदि अपनी गरिमा बनाए बचाए रखनी है तो उन्हें इस समाज में रहकर भी इनकी तमाम कुरीतियों और दुर्गुणों से खुद को बचाए रखकर शिक्षा के ध्येय के लिए साधना रत होना होगा ।

5 टिप्‍पणियां:


  1. जिस देश में देश के नेताओं को बड़े नामदार संस्थानों से नीचे देखने की आदत ही ना हो वहाँ प्राइमरी शिक्षा का सुधार प्राथमिकता कैसे हो सकती थी ...नतीजा आज हम सब के सामने है . अफ़सोस अभी भी स्थिति को संभालने की जुगत करने की आवश्यकता किसी को महसूस ही नहीं हो रही

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  2. गुरु-गुरुता गायब गजब, अजब आधुनिक काल ।
    मिले खिलाते गुल गुरू, गुलछर्रे गुट बाल ।

    गुलछर्रे गुट बाल, चाल चल जाय अनोखी ।
    नीति नियम उपदेश, लगें ना बातें चोखी ।

    बढ़े कला संगीत, मिटे ना लेकिन पशुता ।
    भरा पड़ा साहित्य, नहीं कायम गुरु-गुरुता ॥

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    1. सुंदर प्रतिक्रिया देने के लिए आपका आभार रविकर जी

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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