भारत में जब से उदारीकरण और बाज़ारवाद ने
देश की आम जनता को उपभोक्तावाद और दिखावटी जीवन की ओर धकेला तभी से भारतीय
समाज के तौर तरीके , परंपराएं , खान-पान , ज्ञान मनोरंजन और पर्व त्यौहारों
तक को बाज़ारों और उत्पादों के अनुकूल परिवर्तित करने की एक योजनाबद्ध
प्रक्रिया शुरू हुई । अब इस सारी कवायद का परिणाम दिखने लगा है । आज किसी
भी पर्व त्यौहार से पहले ही नियोजित तरीके से बाज़ार को सज़ाया और बनाया जाने
लगा है । सबसे पहले तो गौर करने वाली बात ये है कि पिछले एक दशक में देश
में जिस तरह से मदर्स डे , फ़ादर्स डे , फ़्रेंडशिप डे , वेलैंटाइन डे , रोज़
डे , थैंक्स गिविंग डे और जाने कौन कौन से डे और नाइट को जबरन ही पहले शहरी
समाज और फ़िर पूरे देश भर में ठूंसा गया । इस बहाने से संदेश , बधाई पत्रों
, उपहारों और जाने किन किन उत्पादों के बाज़ार को खडा किया गया ।
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अभी हाल ही में खबर आई कि
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों के बाज़ारों में पडोसी चीन
से थोक के भाव रखियों की आई खपत ने पूरे बाज़ार पर कब्जा जमा लिया है ।इसका
खामियाज़ा क्षेत्र के छोटे दुकानदारों के साथ ही उन हजारों शिल्पकारों ,
दस्तकारों और मज़दूरों के काम और कमाई पर पडा है जो राखी , जन्माष्टमी पर और
अन्य त्यौहारों पर देवी देवाताओं की पोशाकें बनाने का , दस्तकारी ,
चिप्पीकारी आदि का काम करके अपना पेट पाल रहे हैं । सरकार और
प्रशासन तो पहले ही इन लघु उद्योगों के प्रति बेहद उदासीन और उपेक्षित रहे
हैं किंतु अब बाज़ारों में विदेशों से आयातित उत्पादों ने तो जैसे इनकी कमर
ही तोड कर रख दी है । मशीनों से निर्मित और आजकल के बच्चों की रुचियों के
अनुरूप उन्हें आकर्षित करती हुई उनके कार्टून कैरेक्टरों एवं खिलौनेनुमा
आदि जैसी राखियों के बाज़ार ने देशी उत्पादों को बुरी तरह प्रभावित किया है ।
ये स्थिति सिर्फ़ यहीं तक सीमित नहीं है ।
पश्चिमी देशों और समाज की तर्ज़ पर अब यहां भी , कम से कम शहरों में तो जरूर
ही , घर के बने पकवान और मिठाइयों से ज्यादा उपहारों , शीतल पेयों ,
चॉकलेटों और अन्य खाद्य वस्तुओं के आदान प्रदान का चलन बढ गया है । हालांकि
मिठाइयों के प्रति लोगों के रुझान कम होने का एक बडा कारण पिछले वर्षों
में मिठाइयों में नकली एवं जहरीले घटिया पदार्थों की मिलावट की बढती
प्रवृत्ति । प्रति वर्ष , बल्कि हर त्यौहार के आगे पीछे इस तरह की खबरें
समाचारों में पढने देखने व सुनने को मिल जाती हैं कि अमुक स्थान पर इतना
नकली खोया , मावा ,और मिलावटी मिठाई आदि पकडी गई किंतु प्रशासन की लचरता और
इन मिलावटखोरों का सज़ा से बच निकलना इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगा पा रहा
है ।
यदि बरसों से चली आ रही परंपराओं , उत्सवों और त्यौहारों पर इस तरह से
ही बाज़ारीकरण हावी होता रहेगा तो वह दिन दूर नहीं जब एक दिन ये सभी या तो
अपनी प्रासंगिकता खो देंगे या शायद अपने मूल वास्तविक चरित्र से सर्वथा अलग
हो जाएं ।
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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..