चलिए कुछ दिनों के लिए मीडिया वालों को कुछ तो ऐसा मिला जिसे वे कुछ दिनों तक घसीट सकेंगे ...उसके बाद फ़िर ...अरे भाई जब पहले ही लिख दिया गया है कि धौलाकुंआं रेप कांड पार्ट टू ..तो फ़िर ये तो समझने वाली बात ही है न कि ..अभी तीन चार पांच का स्कोप बांकी है ......और हो भी क्यों न .रावण दहन के दिन कौन सा एक भी जीवित रावण हम फ़ूंक पाते हैं ..| यहां एक बात मेरी समझ में और नहीं आई कि ..ये हमेशा ही इज्जत आम आदमी की ही क्यों लुटती है ..कभी नहीं सुना कि पीएम सीएम के घर की किसी को कोई ले भागा .....तो क्या माना जाए ये कि ..उनकी इज्जत ही नहीं होती ..या कि लुटती ही नहीं ..इज्जत सिर्फ़ आम आदमी आम लडकी की ही होती है जो लुटती है ।आज दिल्ली जैसे महानगर का कुल मिला कर जो हाल देखता हूं मुझे लगता है कि ...मानो इंतज़ार सिर्फ़ इस बात का होता है ...किसकी बारी आती कब है ...बांकी कुछ भी नया नहीं है । और यदि आप आम आदमी हैं तो आपके लिए इन घटनाओं , ऐसी बातों से रूबरू होने की संभावना ज्यादा बढ जाती है । बडे लोगों के लिए ऐसी घटनाओं में सिर्फ़ एक ही जिम्मेदारी होती है ..बस चिंता व्यक्त करते रहना है ...मंत्री नेता हैं तो फ़िर ये भी कोई जरूरी नहीं ...उलटा पीडिता पर ही आरोप लगाया जा सकता है । और छोटे मध्यम लोगों की नियति देखिए ..पहले स्कूल जाने वाले वैन में बिटिया , बहन सुरक्षित जा रही है यही पता नहीं ..स्कूल में जाने कौन कब किस तरह से अपनी हैवानियत के अधीन होकर शोषण का शिकार हो जाए । चलो स्कूल कॉलेज भी पार कर लिया ..अब नौकरी ...सफ़र ..बस ट्रेन मेट्रो ..कहां कहां तक और किस किस से बचा के रखा जाएगा ..इज्जत को । और फ़िर इस समाज में आज जो सबसे जल्दी चली जाती है वो है ..एक पीडिता की इज्जत ।जब ऐसी घटनाओं के दोहराव को देखता हूं तो कई सारी बातें दिमाग में कौंधने लगती हैं ...सोचता हूं कि क्या दिल्ली की सी एम उतनी आसानी से वही सब तब बोल सकती थीं जब ऐसे ही किसी धौलेमौले कुंएं में ...किसी मंत्री नेता , अधिकारी किसी बडे उद्योगपति किसी खिलाडी , के घर की कोई बेटी होती ...न शायद तब इतनी बेशर्मी नहीं ला पातीं वें ..ये कहने के लिए कि लडकियां घर से निकलती ही क्यों हैं । एक और ऐसी बात मेरे मन में अक्सर इन घटनाओं को देख सुन कर जो हठात ही आती है वो ये कि ...आपको "जागो " पिक्चर याद है जिसमें पीडिता बालिका के माता पिता खुद ही बलात्कारियों का कत्ल कर देते हैं ...मानता हूं कि रील लाईफ़ और रीयल लाईफ़ में बहुत फ़र्क है ..मगर काश ...काश कि ये खबरें भी समानांतर ही चलती रहती कि ...अपनी आबरू को बचाने के लिए एक युवती ने ..एक गुंडे के सर पर ईंट मारी और वो मर गया ..या सीधे गोली ही मार दी ..और ऐसी ही कुछ खबरें लगातार आ जाएं ...आगे कानून और समाज करे ये कि ..उस युवती /बालिका को खूब सम्मान सहित ..सर आखों पर बिठा ले । यार फ़िर रुकिए रुकिए ..एक खबर और बनती है ..बलात्कारी बेटे को .बलात्कार के दोषी पति को ....मां ने या उसकी पत्नी ने गोली मार दी ..या खाने में जहर दे कर मार डाला ।ओह कब छपेंगीं ऐसी खबरें । मुझे दुख तो तब होता है जब पढता देखता सुनता हूं कि ...विश्व में सबसे अधिक शक्तिशाली कहे जाने वाले अमरीकी सेना की एक महिला सैनिक भी बलात्कार का शिकार हो जाती है ....नक्सलवाद में इंसाफ़ की लडाई के नाम पर साथ लड रही महिलाओं का भी दैहिक शोषण हो जाता है ...हद है ये तो ।जहां तक इन बलात्कार के मुकदमें की बात है तो दुनिया की कोई अदालत ऐसी नहीं है जिसने बलात्कार पीडिता को इंसाफ़ दिलवाया हो ...हां बेशाक ये माना जा सकता है कि , कुछ दोषियों को सजा सुनाने की औपचारिकता तो जरूर ही निभाती रही हैं । अब भी निभा रही हैं , आज तक किसी भी अदालत ने जाने कोई ऐसा आदेश क्यों नहीं दिया कि उस हैवान बने हुए व्यक्ति को सरे आम उसके सारे अंग काट डाले जाएं ...या फ़िर कि ऐसी ही कोई सजा । स्थिति देखिए कि हाल ही में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने प्रियदर्शनी मट्टू के बलात्कार एवं हत्या के दोषी को सिर्फ़ इसलिए मौत की सजा से बचा लिया क्योंकि वो शादी कर चुका था ...आखिर जो भी उस बलात्कारी की पत्नी बनने को राजी हुई ..क्या उस महिला का युवती का ये बलात्कार नहीं था ..था ये भी बलात्कार ही था और ऐसे जाने कितने बलात्कार हैं जो कानून की किसी भी परिभाषा और दफ़ाओं से परे हैं अब भी । तो जैसा कि मैं कह रहा था कि कानूनी प्रक्रिया तो ऐसी है कि ..पीडिता के मन में यही बात आती होगी कि ..............फ़ैसले से डर नहीं लगता साहेब ...मुकदमें से लगता है ....क्योंकि जब तक मुकदमा चलता है ...बलात्कार तो चलता ही रहता है ....। और कानून की परिधि के बाहर फ़िर सामाजिक बलात्कार , मानसिक बलात्कार ...ओह ...घिन्न आने लगती है इस समाज की सोच पर ।एक और बात ग्रामीण परिवेश वाले अब भी एक दूसरे का माथा ..अपने खेत खलिहानों के लिए ही ज्यादा फ़ोडते नज़र आते हैं वे अब भी उतने आधुनिक और शिक्षित नहीं हो पाए हैं कि ...हर नारी देह को ..नोचने वाली वस्तु समझें ...इसलिए अब तक वहां ..ऐसे पार्ट वन पार्ट टू ...वाले हिट सीक्वेल की शुरूआत नहीं हुई है । अब रही बात मीडिया की ..मीडिया की हालत तो ऐसी है कि ...क्या कहा जाए ..जिस मीडिया को ये समझ नहीं कि जहां पर धौलाकुंआं रेप कांड पार्ट टू की बात हो रही है वहां चाहे अनचाहे ...कांड वन की भी बात हो ही जाएगी ...सोचिए जिस लडकी ने कितनी मुश्किलों से वो दौर भुलाने की कोशिश की होगी आज फ़िर वो उसी दोराहे पर होगी कि नहीं ...। वाह रे मीडिया ..। अब तो ऐसा लगता है कि अब हर बाप को सिखाना होगा कि ...जब भी ऐसी नौबत आए ..बिटिया ..गला काट देना ..उसका ..आगे फ़िर देखी जाएगी ...हो सकता तुम न भी बच पाओ ....मगर सोचो कि ...भविष्य में कितनी बच जाएंगी ....और मांओं को सिखाना होगा कि ..जब भी किसी ऐसे हैवान बेटे के बारे में पता चले ..उसे फ़ौरन से पेशतर मार दिया .जाए ..ये समझ कर कि एक जानवर पागल हो गया है ...
रविवार, 28 नवंबर 2010
धौलाकुंआं रेप कांड पार्ट टू : वाह रे मीडिया यहां भी सीक्वेल का एंगल ढूंढ लिया .....jha ji ...smashed ...
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achcha maansik chintan haen
जवाब देंहटाएंchitr bahut shandaar haen
kuchh shabd achchey lagae
सामाजिक बलात्कार , मानसिक बलात्कार
.पीडिता के मन में यही बात आती होगी कि ..............फ़ैसले से डर नहीं लगता साहेब ...मुकदमें से लगता है ....क्योंकि जब तक मुकदमा चलता है ...बलात्कार तो चलता ही रहता है ....। और कानून की परिधि के बाहर फ़िर सामाजिक बलात्कार , मानसिक बलात्कार ...ओह ...घिन्न आने लगती है इस समाज की सोच पर ।
जवाब देंहटाएंऔर ये जानवर हमारे बीच के ही हैं... शर्म हमको नहीं आती मगर.
सही बात है जब तक ऐसे लोगों को शरेआम गोली से नही ऊडाया जाता तब तक बाकी लोगों को सबक नही मिलेगा। मीडिया के लिये तो मसाला हो गया। आभार।
जवाब देंहटाएंवाह अजय जी आज आपने मन खुश कर दिया सही मुद्दे को उठाया है..... मैं आपकी अबतक की मेरे द्वारा पढ़ी गयी सबसे अच्छी पोस्ट कहूँगा इसे ........दरअसल अदालतों में बलात्कार के आरोपियों को सजा नहीं मिलना ही ऐसे गुनाहों को पूरेसमाज में नासूर की तरह बढ़ा रहा है......भ्रष्ट न्यायिक अधिकारीयों के निकम्मेपन से पुलिस अधिकारी भी इस मामले में और निकम्मे होते जा रहें हैं .........आज इस देश में भ्रष्ट न्यायिक अधिकारी रोज कई बार सत्य और न्याय के साथ बलात्कार करतें हैं और वो भी जज की कुर्सी पर शपथ लेकर बैठकर ....इसलिए आज जरूरत है भ्रष्ट न्यायिक अधिकारीयों को पागल कुत्ते के कटवाकर पागल कुत्ते जैसी मौत को प्रायोजित करने की ....क्योकि इन हरामियों की वजह से पूरा देश और समाज पागल होकर मरने के कगार पर पहुँच चुका है.........मैं तो पीड़ितों से कहूँगा की अगर कोई भ्रष्ट जज आपके साथ नाइंसाफी कर रहा हो तो आप उसे अदालत परिसर में ही पहले चेतावनी दें .......और अगर फिर भी वो जज बाज ना आये तो उसको अदालत परिसर में ही मौत के घाट उतारने से परहेज ना करें .....ये साले भ्रष्ट न्यायिक अधिकारी अब ऐसे ही मानेंगे..........कोई वकील अगर न्याय दिलाने के नाम पर आपको ठग रहा हो तो उसे चाय में जहर देकर छल से मार डालें भगवान के नजर में आपसे बड़ा धर्मात्मा और कोई नहीं होगा......ऐसा कर आप कितने इंसानों को बर्बाद होने से बचा पाएंगे........न्यायिक अधिकारीयों का भ्रष्ट होना क्रूरतम अपराधों में से एक है और ऐसे अपराधी को ख़त्म करना हर इंसान का कर्तव्य होना चाहिए..........अजय जी आप बुरा नहीं मानियेगा आप जैसे सच्चे लोग न्याय व्यवस्था में कम ही हैं......
जवाब देंहटाएंरचना जी ,
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया
जी हां भारतीय नागरिक जी ..सच तो यही है कि ये जानवर हमारे बीच के ही हैं
जवाब देंहटाएंमीडिया के लिए तो ये मसाला ही है ..सही कहा आपने निर्मला जी
जवाब देंहटाएंमहिलायें अब दिल्ली से अधिक सुरक्षित बिहार में हैं।
जवाब देंहटाएंयह देश किनके द्वारा चलाया जा रहा है और मीडिया किस तरह बिका हुआ है वह तो नीरा राडिया के टेप से अब सबके सामनें है। इन बेशर्मों की सम्वेदनायें बस इसी तरह सनसनीखेज बातें कर साबुन-तेल-शम्पू बेचना भर रह गया है। परदे के पीछे इनके आका देश बेचने में लगें हैं।
विकी-लीक्स के 3000 कागजात अगर जारी हो जाते हैं तो इनके विदेशी आकाओं का सच भी सामने आ जायेगा।
बलात्कार भारत में एक कोढ बनता जा रहा है इसका इलाज समाज से लेकर शासन तक एक साथ होना चाहिए ,
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