गुरुवार, 5 मई 2011

असुरक्षित महिला सैन्यकर्मी .....आज का मुद्दा








अभी हाल ही में एक समाचार देखने पढने सुनने को मिला । कोल्हापुर महाराष्ट्र में स्थित पुलिस प्रशिक्षण अकादमी में ११ प्रशिक्षु महिला पुलिस कर्मी अपने प्रशिक्षण के दौरान ही गर्भवती पाई गईं , ये खबर कोई बडी चौंकाने वाली नहीं थी लेकिन ये जानकर कि प्रशिक्षण के दौरान उनका दैहिक शोषण हुआ और जिसके परिणामस्वरूप ही ये घटना सामने आई थी , सबको एक आघात सा लगा । हालांकि सुरक्षा सेवाओं में महिलाओं के साथ दैहिक और मानसिक शोषण का ये कोई पहला मामला नहीं था और गाहे बेगाहे इस तरह की खबरें अब देखने सुनने को मिल ही जाती हैं । आम समाज में , रोजमर्रा जीवन में , सार्वजनिक सेवाओं से लेकर , निजी सेवाओं तक में , मीडिया ,खेल , अभिनय ,राजनीति आदि हर क्षेत्र में ही नारी शक्ति के साथ जिस तरह का न सिर्फ़ भेदभाव किया जाता रहा है और अब तो वो न सिर्फ़ पक्षपात तक सीमित रहा है बल्कि उन पर दैहिक अत्याचार और उनका शोषण तक करना एक प्रवृत्ति सी बनती जा रही है । अफ़सोस और चिंता की बात ये है कि अब ये भयानक स्तर तक बढती जा रही है । इससे अधिक चिंताजनक बात ये है कि जिन महिलाओं को समाज के हर तबके में महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों और उनके दमन शोषण से लडने के लिए तैयार किया जा रहा है , उन्हें न सिर्फ़ प्रशिक्षण बल्कि अधिकार भी दिए जा रहे हैं वे भी कहीं न कहीं इन ज्यादतियों का शिकार हो रहे हैं । भारतीय सेना से लेकर , पुलिस सेवाओं और अन्य सुरक्षा सेवाओं में भी कार्यरत महिला कर्मियों से लगातार न सिर्फ़ दोयम दर्ज़े का व्यवहार किया जा रहा है बल्कि उनके साथ अन्याय और अत्याचार की सीमा तक जाने में भी कोई गुरेज नहीं होती है किसी को । इस बात को मात्र दो घटनाओं से ही आराम से समझा जा सकता है ।


संसद के पटल पर पिछले कई वर्षों से बार बार महिला आरक्षण विधेयक को रखे जाने के बावजूद उसे पारित कराया जाना तो दूर उस पर ढंग से बहस या विमर्श तक नहीं हो पाया है । देश की राजधानी दिल्ली की पुलिस प्रमुख की कमान संभालने के लिए सबसे उपयुक्त और देश का नाम पूरे विश्व में चमकाने वाली देश की प्रथम महिला आईपीएस किरन बेदी को जबरन ही सेवामुक्त करवा दिया गया । जब भी इन दोनों बातों की ओर कोई इंगित करता है तो सहसा ही इसके साथ ही इस बात का भी ज़िक्र होता है कि पिछले कुछ वर्षों से ही देश की प्रथम नागरिक के रूप में , देश की सत्तासीन पार्टी की सबसे अधिक प्रभावी पद पर बैठी हुईं , और देश की राजधानी दिल्ली की मुख्यमंत्री के पद पर किसी महिला के होने के  अलावा देश भर में मायावती , ममता बनर्जी , जयललिता , सुषमा स्वराज , और जाने कितनी ही कद्दावर और प्रभावशाली नारी शक्ति के होने के बावजूद ये स्थिति है । राज्य महिला आयोग , राष्ट्रीय महिला आयोग जैसी संस्थाओं को पर्याप्त अधिकार और संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं । यदि इसके बावजूद भी कोल्हापुर प्रकरण के दोषियों को कडी से कडी सज़ा नहीं दिलवाई जा पाती है , प्रियदर्शनी मट्टू , जेसिका लाल , आरूषि और जाने कितनी ही जानें आज भी न्याय के लिए मुंह ताकती सी दिखती हैं तो फ़िर आखिर कब तक और कहां तक ये स्थिति बनी रहेगी ।


ऐसा नहीं है कि ये स्थिति भारत की ही है , विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका की महिला सैन्य टुकडी और अन्य सुरक्षा सेवाओं में भी महिला कर्मियों के दैहिक शोषण की बात सामने आई है । यहां तक कि ईराक युद्ध के लिए भेजी गई टुकडी में तो कई उच्च पदो पर बैठी और सैन्य संचालन करती हुई महिला सेनानियों ने खुलेआम आरोप लगाए कि न सिर्फ़ उनका शोषण किया गया उन्हें प्रताडित किया गया बल्कि उनका बलात्कार तक किया गया है । भारत में नक्सलवाद से जुडी हुई महिलाओं ने भी इस बात को माना कि उनके साथ भी ज्यादती होती रही है ।  कुल मिला कर परिदृश्य ये साबित करता है कि महिलाओं की स्थिति अब भी बहुत ज्यादा बेहतर नहीं हो पाई है । इसके कारण बेशक बहुत से अलग अलग हों लेकिन फ़िर भी नियति तो वही की वही है । आखिर क्या वजह है कि जिन कंधों पर अपनी कौम अपनी नारी जाति को बचाने की जिम्मेदारी डाली जाती है उनसे अपेक्षा की जाती है वो खुद अपनी रक्षा के लिए इंसान से हैवान बन चुके उन हवसी पुरूषों को मौत के घाट नहीं उतार पातीं । काश कि खबर ये पढने देखने को मिलती कि अपने मान सम्मान की रक्षा करते हुए महिला सैन्यकर्मियों , और पुलिसकर्मियों ने उन्हें गोली से उडा दिया जो उसे तार तार करने की कोशिश कर रहे थे । महिला आयोग जैसी संस्थाएं तो सिर्फ़ सफ़ेद हाथी बन कर रह गए हैं । महिलाओं के लिए बने और बनाए जा रहे कानून भी नाकाफ़ी साबित हो रहे हैं ।


अगर सच में ही महिलाओं को अपना वजूद बनाए बचाए रखना है तो कम से कम उस समय उन्हें उग्र और बागी तेवर में आना ही होगा जब बात उनकी आन और जान पर बन आने की हो । झारखंड में एक विधायक को सरेआम कत्ल करके उस महिला ने अपनी बेटी को उस विधायक के हाथों हवस का शिकार होने से बचा के दिखा ही दिया कि वक्त आने पर नारी कुछ भी कर गुजरने से परहेज़ नहीं करती , लेकिन एक बार फ़िर अफ़सोस होता है जब देखा जाता है कि ऐसा साहस करने वालों को भी देश , समाज और खुद नारी समाज भी चुप्पी लगाए बैठ जाता है ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. इंदु पुरी जी ने बज पर कहा :-

    पढा .अफ़सोस हुआ.हिला कर रख देने वाला मुद्दा है ये.बस एक बात समझ में नही आती इन महिलाओं ने अपने सीनियर्स के शिकायत क्यों नही की?
    मेरी अपनी व्यक्तिगत राय है कि घर,समाज,कार्यस्थल ...इन जगहों पर कोई औरत जब तक ना चाहे उसे कोई 'सोने' के लिए बाध्य नही कर सकता.
    कार्यस्थल पर ये अकेली तो नही होती कि कोई बलात्कार कर ले और ये बेबस है,कुछ कर न सके.ये बात कुछ हजम नही होती.किसी एकांत स्थल पर बेड एलिमेंट्स के बीच घिर जाना अलग बात है.किन्तु कोई महिला सैन्यकर्मी अपने उच्चाधिकारी पर ये आरोप लगाये तो.....जितना एक औरत को अपनी इज्जत का ख़याल होता है उतना ही पुरुष भी अपनी इज्जत को ले के चिंतित रहते हैं.'ऐसे' लोगों को आपकी दृढ देह भाषा ही पर्याप्त होती है भयभीत कर देने के लिए. वैसे महिलाओ को कार्य क्षेत्र में अपनी सुरक्षा के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिये. महिला सुरक्षा के लिए बने क़ानून का दुरूपयोग सबसे ज्यादा महिलाओं ने ही किया है.

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  2. वाकई अफसोसजनक है.

    इस शोषण और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठना ही चाहिये/ विरोध होना चाहिये.

    इन्दु जी की बात विवारणीय है.

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  3. वाकई अफसोसजनक है.

    इस शोषण और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठना ही चाहिये/ विरोध होना चाहिये.

    इन्दु जी की बात विवारणीय है.

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  4. इंदुपुरी जी की टिपप्णी महत्वपूर्ण है।
    इस के साथ ही लड़कियों की यौनशिक्षा जरूरी है।

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  5. श्रीमान जी,हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव:-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए.मैंने भी कल ही लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.

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  6. महिला सुरक्षा के लिए बने क़ानून का दुरूपयोग सबसे ज्यादा महिलाओं ने ही किया है.आपके लेख से पूर्णत:सहमत हूँ.

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  7. क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें

    अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?

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  8. प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
    दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
    श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
    क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
    अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
    यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?

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मुद्दों पर मैंने अपनी सोच तो सामने रख दी आपने पढ भी ली ....मगर आप जब तक बतायेंगे नहीं ..मैं जानूंगा कैसे कि ...आप क्या सोचते हैं उस बारे में..

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