अभी हाल ही में सुर्खियों में आया समाचार जिसमें एक फोन निर्माता कंपनी के मालिक जो एक आर्थिक अपराध में तिहाड़ केन्द्रीय कारागार में निरुद्ध है , आरोपी हरिओम राय से जेल में सुविधा दिए जाने के नाम पर जेल कर्मियों ने डरा धमका कर पांच करोड़ रुपये वसूल लिए। चिंताजनक बात यह नहीं है कि देश की राजधानी दिल्ली और कभी आदर्श कारागार के रूप में माना जाने वाला तिहाड़ प्रशासन पर इस तरह से से आरोप लगा है।
गंभीर बात तो ये है कि एक के बाद एक राजनेता सत्येंद्र जैन से लेकर ठगी के आरोपी सुकेश चंद्रशेखर जैसे कारागार में पहले से निरुद्ध आरोपियों ने जेलकर्मियों द्वारा इसी तरह के और इससे भी कई तरह के गम्भ्भीर अनुचित क्रियाकलापों की शिकायत की है। ध्यान देने की बात ये भी है की है प्रोफ़ाइल विचाराधीन बंदियों/आरोपियों से जेल कर्मियों द्वारा उगाही की ये कुछ वो घटनाएं हैं जो जाने अनजाने समाचार माध्यमों में आ गईं। दूसरी ये कि जब आर्थिक कदाचार/भ्रष्टाचार आदि मामलों के ऐसे हाई प्रोफ़ाइल बंदियों के साथ यह सब घटित हो रहा है तो ऐसे में साधारण कैदियों की दशा का अनुमान लगाना सहज है।
कारागारों की छवि किसी भी काल में समाज में अच्छी नहीं रही है किन्त ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में कारागार -यातना, सामूहिक दंड और मृत्यु दंड देने की कोठरी बन कर रह गई थी। जेलों की अमानवीय हालातों को राजनैतिक बंदियों द्वारा महसूस और अनुभव करने के बाद जेलों में दंड , प्रायश्चित और सुधार के लिए लाए गए बंदियों के लिए ,उन्हें रखे जाने से लेकर , उनसे श्रम और सेवा लिए जाने वाले , सुधारने के साथ साथ शिक्षा स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें सुनिश्चित करने के लिए बाकायदा कारागार नीति नियमों को संहिताबद्ध कर दिया गया।
कभी इसी तिहाड़ कारागार में बंदियों के सुधार और उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए विख्यात पुलिस प्रशासक किरण बेदी ने बहुत से नए प्रयोग और प्रयास किए थे। आज वही केंद्रीय कारागार , थोड़े थोड़े समय बाद अपने व्यवस्थाओं की अनियमततताओं और कदाचार के लिए समाचार में आए तो ये दुःख और चिंता की बात है।
कारागार तिहाड़ देश की राजधानी दिल्ली का केंद्रीय कारागार होने के साथ साथ देश के सबसे विशाल कारागार में से है। कैदियों के वर्गीकरण के आधार पर तिहाड़ एक दर्जन से अधिक कारगार में बंदियों को निरुद्ध रखा जाता है। इसमें गंभीर अपराधों में लिप्त आरोपियों , बंदियों, महिला बंदियों तथा राजनैतिक बंदियों के लिए अलग अलग कारागारों की व्यवस्था है।
कारागार प्रशासन की विफलता से जुडी घटनाये प्रदेश के कारागार प्रशासनों के विषय में सामने आती रही हैं।
ऐसी ही एक बड़ी घटना को पिछले दिनों पजाब राज्य के एक कारागार में अंजाम दिया गया था। बिहार का कारगर प्रशासन तो लालू यादव मामले में बाकायदा फटकार तक खा चुका है। महाराष्ट्र , बंगाल , सहित और बहुत से राज्यों की कारागारों से अनेक तरह की अनियमितताओं ,भ्रष्टाचार के समाचार सामने आते रहे हैं।
चाहे छापे के दौरान बंदियों से मोबाइल मिलने की बात हो या फिर जेल के अंदर से ही बड़े गंभीर अपराधों की साजिश षड्यंत्र बनाने वाली बंदियों की गैंग की खबरें , जेल के अंदर चल रही पूर्व मंत्री की सेवा मालिश हो या अब वीवो के मालिक हरिओम राय से सुविधा शुल्क के रूप में लिया जाने वाला पांच करोड़ , हर घटना इस बात का इशारा कर करती है की केंद्रीय कारागार तिहाड़ प्रशासन में अब कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।
कारागार राज्य का विषय होता है इसलिए इसका दायित्व प्रदेश सरकार पर होता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और देश की सबसे संवेदनशील जेल होने के कारण भी ये बहुत जरूरी है कि केंद्रीय कारागार की सारी व्यवस्थाओं को अधिक दुरुस्त व पुख्ता किए जाने विषयक सभी अनुशंसित उपायों पर त्वरित अमल किया जाए।
लेखक स्वतन्त्र टिप्पणीकार हैं।