एक बार फ़िर सब कुछ लगभग ठीक ठाक सा चलता दिखने के बावजूद अचानक ही घोटालों , घपलों की फ़ेहरिस्त सी खुल रही है । अब तो लोगों को वर्षों पहले की नरसिम्हा सरकार की याद हो आई है ..जिस अकेली सरकार के लगभग सभी मंत्रियों ने अपने खाते में कम से कम एक बडा घोटाला तो डाला ही था । और अब इतने समय के बाद , एक बार फ़िर एक मनमोहिनी सरकार देश को घोटालों और घपलों के स्वर्ण युग में ले आई है । आम जनता प्रतिदिन बडी ही व्यग्रता से प्रतीक्षा करती है कि , देखा जाए कि आज कौन सा नया घोटाला आ रहा है पुराने घोटाले से थोडा सा ध्यान बंटाने के लिए । और भ्रष्टाचार का आलम देखिए कि देश के राजनीतिज्ञों , और प्रशासकों ,का भ्रष्टाचार तो अब ऐसी घटना है जिसका कोई संज्ञान ही नहीं लिया जाता , खुद सर्वोच्च न्यायालय ने अभी हाल ही में अपने अधीनस्थ मगर उच्च स्तर की अदालत के न्यायाधीशों के आचरण और भ्रष्टाचार लिप्तता का आरोपी होने जैसा कुछ कुछ ईशारा ही किया था कि , वहां कार्यरत एक वरिष्ठतम अधिवक्ता ने बाकायदा शपथपत्र देकर कहा कि जब उन्होंने कहा था कि भ्रष्टाचार के छींटे खुद सर्वोच्च स्तर तक भी पहुंच चुकी है । अब बच ही क्या गया है , न्यायपालिका अनेकों बार भ्रष्टाचार के मुकदमों की सुनवाई करते समय ये कह चुकी है अब तो बस एक ही रास्ता बचा है कि भ्रष्टाचारियों को सरे आम फ़ांसी के फ़ंदे पर टांग देना चाहिए , मगर फ़िर भी इसके बावजूद भी आज तक किसी भी भ्रष्टाचारी को फ़ांसी पर चढाना तो दूर , उनका बाल भी बांका नहीं किया जा सका है । उलटे ही अगर वो राजनीतिज्ञ है तो उसका कद और भी बडा हो जाएगा और अगर प्रशासक है तो निकट भविष्य में राजनीतिज्ञ बन जाने की संभावना प्रबल हो जाती है ।
हाल ही के राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन करने मे हुए घोटाले से शुरू हुआ ये सिलसिला अब थमने का नाम ही नहीं ले रहा है , आदर्श घोटाला हो या कि स्पेक्ट्रम घोटाला , सभी एक से बडे एक और निर्लज्जता और लालच की पराकाष्ठा को परिभाषित करते हुए । अब तो जैसे जनता ने भी इन पर प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया है अन्यथा देश को जाने कितने पीछे धकेल देते ये घपले और घोटालों के लिए जिम्मेदार इन तमाम भ्रष्टाचारियों को न सिर्फ़ देश समाज और कानून का गुनाहगार माना जाना चाहिए बल्कि इंसानियत के दुश्मन की तरह का व्यवहार इनसे किया जाना चाहिए । वैसे तो भ्रष्टाचार नाम की ये बीमारी कोई एक देश , एक प्रांत , एक द्वीप या एक क्षेत्र की समस्या नहीं है बल्कि अब तो ये बार बार प्रमाणित हो चुका है कि विश्व का कोई भी देश किसी न किसी स्तर और किसी न किसी हद तक भ्रष्टाचार का दंश झेल चुका है ।हालांकि इस विषय का अध्य्यन करने वाले भ्रष्टाचार कारण एवं उन्मूलन पर अपने निष्कर्षों में कहते हैं कि , बुनियादी फ़र्क सिर्फ़ ये होता है कि किस देश और समाज ने भ्रष्टाचार के डंक को किस रूप में झेला है और उस दिशा में क्या सोचा और किया है । जैसे कई देशों में भ्रष्टाचार का विरोध खुद आम जनता ने इतनी तीव्रता से किया है कि उसने न सिर्फ़ भ्रष्टाचार के आरोपी को जाना पडा बल्कि उससे जुडे लोगों और संस्थाओं तथा सरकार तक का बंटाधार होते देर नहीं लगी है । कुछ देश तो इससे भी आगे जाकर हत्थे चढे भ्रष्टाचारियों को आम जनता की जरूरतों का कातिल करार देकर अपने गवर्नरों तक को फ़ांसी पर टांग चुकी है । विशेषज्ञ कहते हैं कि सबसे कठिन स्थिति उन देशों की है जहां भ्रष्टाचार को आम आदमी द्वारा ग्राह्य मान लिया गया है जैसे कि भारत और उसके आस पास के अन्य देश ।
भ्रष्टाचार से लडने के लिए न तो कोई कानून न ही कोई सरकारी नीति कारगर साबित हो रही है । इसकी सबसे बडी वजह ये है कि आम लोगों ने इसे एक नियमित नियति के रूप में अपना लिया है । कुल मिलाकर ये मान लिया गया है कि भ्रष्टाचार एक जडहीन वृक्ष है , जिसकी शाखें , पत्ते , फ़ल और फ़ूल , जाने किन किन सूत्रों से खुद को सींच कर अपने आपको बढाने में लगी हुई हैं । आम आदमी को न तो उसका आदि दिख रहा है न अंत और अब तो उस भ्रष्टाचार से लडने का माद्दा भी चुकता सा दिख रहा है । हालांकि सूचना का अधिकार जैसे कानूनों ने कुछ हद तक भ्रष्टाचार को नग्न करने का कार्य तो अवश्य किया है किंतु इसके आगे की स्थिति फ़िर वही ढाक के तीन पात जैसी हो जाती है । आखिर सरकार कभी ये आंकडे क्यों नहीं दे पाई कि , अमुक भ्रष्टाचारी के पास से इतना धन जब्त किया गया और उस धन से फ़लाना ढिमकाना परियोजना का कार्य पूरा किया गया । या फ़िर ये कि , आज तक जिस भी स्तर पर किसी ने भी भ्रष्टाचार के विरूध बिगुल फ़ूंकने का काम किया है उन्हें सरकार समाज ने अपना आदर्श और अगुआ मान कर सर आंखों पर बिठा लिया हो या फ़िर कि उसकी और उससे संबंधित लोगों की सुरक्षा और संरक्षा की गारंटी ले ली हो । इसके उलट उस दिन से उसके जीवन की मुश्किलें बढ जाती हैं । भ्रष्टाचार मिटाने के लिए अब नए सिरे से और हर स्तर से हर वो नियम हर उस नीति को बदलना होगा जो भ्रष्टाचार की गुंजाईश को पैदा करते हैं । ऐसा हो पाएगा ये अभी दूर की कौडी लगती है ॥