क्या आपने गौर किया है कि पिछले कुछ समय में खेल जगत के कोनों में न सिर्फ़ खेल और खिलाडियों के चेहरे बदले हैं बल्कि उनके मिज़ाज़ , तेवर , आक्रामकता , व्यावसायिकता और तदनुसार उपलब्धियों में भी जबरदस्त बदलाव आया है । । एक समय था जब राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय क्रीडा जगत में पहले हॉकी और उसके बाद क्रिकेट ने अपना जलवा और आधिपत्य बनाए रखा । हॉकी में जहां हॉकी के जादूगर ध्यानचंद , जिनकी स्मृति में ही , आज यानि 29अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में याद किया और मनाया जाता है , ने जहां वैश्विक प्रतियोगिताओं में रिकॉर्ड 400 से अधिक गोल दाग कर ओलंपिक खेलों सहित पूरे विश्व में भारतीय हॉकी का परचम लहरा दिया वहीं कपिल देव की अजेय क्रिकेट टीम ने 1983 में क्रिकेट विश्व कप जीत कर देश को क्रिकेट से जोड कर देशवासियों को एक नए जुनून की ओर मोड दिया बाद में इस विरासत को सचिन तेंदुलकर सरीखे युगों में पैदा होने वाले खिलाडी की अदभुत उपलब्धियों ने बुलंदियों पर पहुंचा दिया और भारतीय टीम दूसरी बार भी विश्व कप जीतने में सफ़ल रही । क्रिकेट के प्रति इस देश की दीवानगी तो जग-जाहिर रही है । स्थिति तो ऐसी बन गई कि क्रिकेट पर ये आरोप लगने लगे कि उसने अन्य खेलों के विकास/ प्रसार में बहुत बाधा डाली ।
अब स्थिति बहुत बदल रही है । आज देश में फ़ार्मूला वन रेस आयोजित किया जा रहा है तो दूसरी तरफ़ इंडियन बैडमिंटन लीग में भी लोगों ने खासी दिलचस्पी ली है । अपनी एकल उपलब्धियों के दम पर देश भर के खेल प्रेमियों का न सिर्फ़ अपनी तरफ़ बल्कि अलग अलग खेलों की तरफ़ भी ध्यान खींचने में भी पिछले कुछ वर्षों में देश के मेधावी खिलाडी सफ़ल रहे । अभिनव बिंद्रा , राज्यवर्धन सिंह राठौड , सुशील कुमार , विजेंद्र सिंह , डिंको सिंह , मैरी कॉम ,सानिया मिर्ज़ा ,सायना नेहवाल , पी वी सिंधु , सरीखे अनेक नामों ने इस बीच न सिर्फ़ राष्ट्रीय बल्कि वैश्विक खेल जगत में भी भारतीय धमक को गुंजायमान किया ।
इतना ही नहीं , टीम प्रतियोगिताओं में न सिर्फ़ पुरूषों की टीम बल्कि महिलाओं की टीमों ने भी जिस तरह से अपना खेल और प्रतिभा दिखाते हुए खेल समीक्षकों को आश्वर्यचकित करते हुए पूरे देश को गौरवान्वित किया है वो देश के खेल इतिहास में एक नया अध्याय जोडने की तैयारी जैसा है । एक के बाद एक मिल रही सफ़लताएं ये जता और बता रही हैं कि अब भारतीय खेल और खिलाडी भी उसी पेशेवराना रुख को अख्तियार करके मैदान में उतरने लगे हैं जिसका अभाव सालों से महसूस किया जा रहा था ।
हालांकि इस नए बदलाव की एक सुखद वजह ये भी रही है कि कभी खेल में कैरियर और जिंदगी देकर जीवन बर्बार करने जैसे नज़रिए को बदलने के लिए अब न सिर्फ़ सरकारें और संस्थाएं बल्कि औद्यौगिक घराने भी अपना धन और मन दे रहे हैं जिसका परिणाम नि:संदेह खेलों व खिलाडियों का बढता हौसला और उनका उठता जीवन स्तर है । आज खिलाडियों की हैसियत सही मायने में किसी स्टार की तरह है , उनके लाखों करोडों प्रशंसक हैं जो रात दिन उनकी हौसलाअफ़ज़ाई करते हैं , इसका प्रमाण है प्रशंसकों का वो हुज़ूम जो समय असमय भी अपने खिलाडियों के स्वागत में घंटों फ़ूल मालाएं लेकर हवाईअड्डों पर पलकें बिछाए उनका इंतज़ार करता है ।
आज राष्ट्रीय खेल दिवस पर ये महसूस होना सच में ही बहुत अच्छा लगता है कि अब देश में खेलों और खिलाडियों का भविष्य न सिर्फ़ बहुत उज्जवल बल्कि सुनहरा होगा ।
आज जो भी उपलब्धियां हमारे खिलाडियों ने अर्जित की है वह अपने और अपने परिवार की बदौलत | सरकार को अभी भी बहुत कुछ करना है ताकि उनकी मेहनत से खिलाड़ी सामने आ सकें | अभिनव बिंद्रा जिस महंगी रायफल का प्रयोग करते हैं वो उसके पापा ने दी है |
जवाब देंहटाएंसरकार को अभी भी बहुत कुछ करना है ताकि उनकी मेहनत से खिलाड़ी सामने आ सकें |
हटाएंआपसे सौ प्रतिशत सहमत हूं जैनेंद्र जी
सही कहा है!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मनोज भाई
जवाब देंहटाएंyou'r right ajay ji
जवाब देंहटाएंशुक्रिया और आभार शालिनी जी
हटाएंसटीक लेखन अजय सर थैंक्स।
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है मनोज भाई
हटाएं