बिटिया बुलबुल को उसकी नृत्य कक्षा में छोड़ कर वापस घर जा रहा होता हूँ । अचानक पूर्वी के इस निकाय पर नज़र पड़ती है । आदतन मैं मोबाईल निकाल लेता हूँ । क्लिक क्लिक क्लिक । तभी वहीं पास खड़ा व्यक्ति मुझे इस नज़र से देखता है , मानो मैं कोई अपराध कर रहा हूँ ।
मैं मुस्कुरा कर उसे जला कर भस्म कर देने वाले अंदाज़ में उससे कहता हूँ । कल मेरी शादी है यहाँ , कहते कहते अपना आई कार्ड नुमाया कर देता हूँ । वो खिसक लेता है ।
अगले दिन दफ्तर पहुंच कर सबसे पहला काम । तगड़ी फटकार नगर निगम के दफ्तर से फोन उठाने वाले महारथी ।
आप कौन हो , कैसे बोल रहे हो , फिर से वही बात । और मेरा स्वर तल्ख हो जाता है । उसी शाम ,स्वच्छ भारत ।
कहाँ हो भजप्पा के पप्पा , और पप्पू के चप्पू , बिचारे धारीवाल जी को क्या कहें , वो निरीहप्राणी तो पहले ही कहता है मुझे कुछ करने नहीं देते ।
मुझे कोई रोक नहीं पाता करने से , मैं रोके रुकता भी नहीं हूँ । तो आप क्यूँ रुके हैं