रविवार, 19 फ़रवरी 2023

ये देश जो भारत है , अब हिन्दुस्तान होना चाहिए : बाबा बागेश्वर के संकल्प के साथ सम्पूर्ण सनातन समाज

 




 

भूत पिशाच निकट नहीं आवे , महावीर जब नाम सुनावे।  भगवान हनुमान बजरंगबली के अनन्य भक्त बाबा बागेश्वर महाराज के हुंकार के साथ आज सम्पूर्ण सनातन समाज का मानस जिस तरह से जुड़ गया है वो एक संयोग भर नहीं है।  बाबा बागेश्वर महाराज का आज , बाबा बागेश्वर का तेज , प्रखर वाणी और लहू को जीवित कर देने वाली स्पष्ट बात।  एक तरुण सनातनी , बजरंगबली की हनमान चालीसा पढ़ते पढ़ते पूरे सनातन समाज को , उनकी चेतना को , सो चुकी धार्मिक निष्ठा को , भूल चुके अपनी अपार शक्ति  ,अकाट्य बल बुद्धि को बड़े प्यार से और बड़े ललकार से जगा रहे हैं , और यही आज सनातन विरोधियों और धर्म द्रोहियों को अखर रहा है।

हालात इतने अधिक दयनीय हैं कि , पूरे कायनात पर हरी चादर फैलाने को उद्धत ,जेहाद और फतवों के सहारे सबको डराने मिटाने वालों के साथ आज वे भी खड़े होकर सिर्फ रामायण ,रामचरितमानस का ही अपमान नहीं बल्कि स्वयं भगवान् पर भी लांछन उठा कर अपने संस्कारों में घुले विष प्रमाण दे रहे हैं।  आप सुनिए इस तरुण सन्यासी युवा हनुमान भक्त बाबा बागेश्वर महाराज की बातों को , देखिये उनको , उनके माध्यम से लाखों लोगो को हनुमान जी की भक्ति , स्नेह , प्रसाद पाए लोगों के सुकून को , सुख को और उन पर उनके विशवास को।

वो कहते हैं , अपने माँ और पिता की सेवा करो क्यूंकि वही ईश्वर हैं वही भगवान् हैं , सच भी तो है , वे चेताते हैं , अपनी बहनों माताओं को कि , आँख कान और मस्तिष्क सिर्फ इतना तो खुला जरूर रखो कि कल को तुम्हारे माँ ,  तुम्हारे पिता ,तुम्हारे भाई सबको तुम एक मृत देह भर के रूप में , कई बार सैकड़ों टुकड़ों में ,और कई बार तो वो भी नहीं तुम नहीं मिलो।  सबसे आसान है अपने माँ पिता परिवार और समाज पर विश्वास रखो न उंनसे बेहतर तुम्हारे लिए कोई नहीं सोचेगा।

अब वो कह रहे हैं कि इस देश को हिन्दू राष्ट्र हो जाना चाहिए , ये देश जो जम्बूद्वीप था उसे कब भारत से इंडिया बना दिया गया पता भी नहीं चला अब पिछले कुछ सालों से फिर से भारत सा दिख लग रहा है मगर ये जो , बीच बीच में उपद्रवी तत्व जिन्हें पुरातन काल में राक्षसी , शैतानी , विघ्नकारक जैसे रूपों नामों से जाना जाता रहा है आधुनिक काल में इन्हें सिर्फ एक ही बात से आसानी स्पष्ट पहचाना जा सकता है , ये द्रोही होते हैं , फुकरे एकदम निठल्ले , दुनिया के हर बात और काम में नकारात्मकता के वाहक , विध्वसंक वृत्ति के लोग , इसलिए समग्र विकास , संगठित समाज , सभ्य और संवेदनशील प्रशासन के लिए फिर यही होना चाहिए।

आज देश में राम का मंदिर और महादेव का प्रांगण बन रहा है कहीं कृष्ण सज रहे हैं कहीं खाटू वाले श्याम , कहीं जय माता दी हो रहा है तो कहीं बजरंग बली की जय , कालों की काल , माँ काली दुर्गा की हुंकार पताका चहुँ और लहराने को उद्धत है , और जिन्हें यही , बस यही तो कष्ट है , उनकी मति भ्रष्ट है।  देखिए मामला सिर्फ इतना सा है , बाबा बागेश्वर से लेकर बाबा रामदेव तक , सिर्फ एक ही मत एक मानस , एक ही प्रार्थना , एक ही आशीर्वाद , एक ही हुंकार , एक ही ललकार , एक ही सिर्फ एक , सबने अपना पकड़ रखा है ,जकड रखा है , तुम भी अपना और अपने धर्म के साथ रहो , कर्म धर्मनिष्ट हो।


 

शनिवार, 24 अप्रैल 2021

लाखों लोगों की मौत का जिम्मेदार है चीन

 



पूरी दुनिया में लाखों लोगों को मौत के मुँह में धकेलने के लिए ज़िम्मेदार , विश्व के सबसे धूर्त और दुष्ट राष्ट्र चीन को वैश्विक मंचों पर जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकना , इतनी सारी मौतों के लिए उसे कोई दंड तो दूर उसे इस अपराध का बोध तक न करा पाना , सारी वैश्विक सस्थाओं और शक्तियों के मुंह पर एक करारा तमाचा है। आज चीन इन सबसे निश्चिंत होकर आराम से बैठा हुआ है और दुनिया के सारे चौधरी बने फिरते देश सुइयां तलाशते फिर रहे हैं।  

रही बात भारत के वर्तमान हालात की , तो अनुमान तो पिछले बरस ही लगा लिए गए थे की दुनिया में इस बीमारी से सबसे ज्यादा लोग , लगभग 7 करोड़ लोग , पीड़ित होकर अपनी जान गँवा बैठेंगे।  बहुत लोगों ने मंसूबे भी शायद यही पाले हुए थे और देश से लेकर विदेश तक और बाहरी से लेकर अपनों तक की दोस्ती दुश्मनी के बीच भारत पहली लड़ाई जीत कर बाहर निकल ही आया था कि अब इस दूसरी लहर ने अधिक घातक दस्तक दे दी।  

हमारी कीड़े मकोड़े जैसे जनसंख्या , सालों से चला आ रहा कुप्रबंधन और कुव्यवस्था , आपदा विपदा के समय भी लोगों का धूर्त और स्वार्थपूर्ण आचरण , नियामक और नियंत्रक एजेंसियों का अभाव और सबसे अधिक सरकारों , प्रशासन , व्यवस्था में किसी भी तरह के तालमेल की भारी कमी।  ऐसे में भारत जैसे जनसंख्या विस्फोट वाले देश में यदि इस तरह का चिकित्स्कीय आपातकाल आकर सबको हैरान परेशान कर रहा है तो ये भारत की नियति है।  

लेकिन निकल तो हम इस आपदा से भी जाएँगे , तब तक खुद को सुरक्षित और स्वस्थ रखना ही अभी सबसे अधिक जरूरी है।  

शनिवार, 23 जनवरी 2021

राष्ट्रीय बालिका दिवस : बेटियों के लिए है ये दुनिया

                          


भारत की बेटियां हर दिन सफलता के नए आयाम गढ़ रही हैं। खेल, शिक्षा, राजनीति, साइंस या कोई भी क्षेत्र हो सभी में तरक्की की सीढियां चढ़ रही हैं। 24 जनवरी उन्हीं का दिन है। यह दिन राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। देश की बेटियों की सफलताओं का जश्न मनाने के लिए यह दिन निर्धारित किया गया है। लेकिन, समाज में व्याप्त कुछ कुरीतियों की वजह से एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो अपने अधिकारों के वंचित है। इस राष्ट्रीय बालिका दिवस पर उन लड़कियों के साथ हो रहे आसमान व्यवहार, शोषण या भेदभाव के प्रति उन्हें जागरूक किया जाता है।


समाज में व्याप्त असमानता के बारे में लड़कियों को जागरूक करना


पहली बार यह दिन महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा 2008 में मनाया गया था। इस दिन को मनाने के पीछे का लक्ष्य लड़कियों को नए अवसर प्रदान करना है और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में बताना है। भारत सरकार का यह कदम युवाओं के बीच में लड़कियों के महत्व को बढ़ावा देना है। समाज का एक बहुत बस तबका ऐसा है जहां मौजूदा समय में लड़कियां असमानता, शिक्षा, पोषण, कानूनी अधिकार, चिकित्सा देखभाल, संरक्षण, विवाह, स्वतंत्रता, इत्यादि में असमानता का सामना कर रही हैं।


क्या है राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का उद्देश्य?

 

राष्ट्रीय बालिका दिवस केवल लड़कियों तक ही सीमित नहीं है। यह पूरे देश और समाज के लोगों की चेतना बढ़ाने और समाज में बालिकाओं को नए अवसर प्रदान करने के लिए मनाया जाता है। यह दिवस सुनिश्चित करता है कि देश की बेटियों को उनके सभी मानवाधिकारों की जानकारी हो और उन्हें सम्मान मिले। इस दिन लोगों को लैंगिक भेदभाव के बारे में बताने और उन्हें शिक्षित करने का कार्य किया जाता है।   


जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत में लड़के और लड़की की संख्या में एक बड़ा अंतर है। हालांकि, पिछले कुछ सालों से यह लिंगानुपात घटा है। इसको बराबर करने के लिए हम सभी को सोच बदलनी होगी। समाज में लड़कियों के खिलाफ आए दिन हो रहे अत्याचारों को खत्म करना होगा और यह कार्य केवल सभी की सोच बदलने से होगा। इस दिन के माध्यम से सभी को बताया जाता है कि देश में एक लड़की का उतना ही महत्व है जितना एक लड़के का, बस जागरूक करने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का एक उद्देश्य यह भी है कि लड़की को उसके स्वास्थ्य और पोषण के बारे में शिक्षित किया जाए। 


भारत सरकार द्वारा बेटियों के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाएं


भारत सरकार द्वारा देश की बेटियों की बेहतरी के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। इसमें कन्या भ्रूण हत्या पर रोक, बाल विवाह पर प्रतिबंध, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, अनिवार्य शिक्षा, सिंगल गर्ल चाइल्ड फ्री एजुकेशन आदि योजनाएं चलाई जा रही हैं। कुछ योजनाएं निम्नलिखित हैं: 


1. कन्या भ्रूण हत्या पर रोक


भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा 312 कहती है, ‘जो कोई भी जानबूझकर किसी महिला का गर्भपात करता है जब तक कि कोई इसे सदिच्छा से नहीं करता है और गर्भावस्था का जारी रहना महिला के जीवन के लिए खतरनाक न हो, उसे सात साल की कैद की सजा दी जाएगी’। इसके अतिरिक्त महिला की सहमति के बिना गर्भपात (धारा 313) और गर्भपात की कोशिश के कारण महिला की मृत्यु (धारा 314) इसे एक दंडनीय अपराध बनाता है। 


2. बाल विवाह प्रतिबंधित


भारत में बाल विवाह चिंता का विषय है। बाल विवाह किसी बच्चे को अच्छे स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा के अधिकार से वंचित करता है। ऐसा माना जाता है कि कम उम्र में विवाह के कारण लड़कियों को हिंसा, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का अधिक सामना करना पड़ता। इसके अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष और 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल-विवाह के रुप में परिभाषित किया गया है। 


3. बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना


बेटी बचाओ बेटी पढाओ एक अभियान है जो महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और परिवार कल्याण मंत्रालय एवं मानव संसाधन विकास ने मिलकर शुरू की है। इसका उद्देश्य भारत में लड़कियों को लेकर जागरूकता पैदा करना और कल्याणकारी सेवाओं में सुधार करना है। इस सरकारी योजना को 100 करोड़ की प्रारंभिक लागत के साथ 22 जनवरी, 2015 को शुरू किया गया था। 


इसके साथ ही अन्य योजनाएं जैसे सुकन्या समृद्धि योजना,  14 वर्ष की आयु तक लड़के और लड़कियों दोनों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा, लाड़ली लक्ष्मी योजना, बेटी है अनमोल योजना, कन्या विवाह अनुदान योजना आदि चलाई जा रही हैं।

#समाचार सूत्र और गद्यांश : हिंदुस्तान समाचार 

शनिवार, 9 जनवरी 2021

भ्रष्टाचार पर योगी सरकार का एक और हथौड़ा : प्रदेश में 18 हज़ार शिक्षकों की धोखाधड़ी निशाने पर

 


केंद्र से लेकर राज्य तक , भ्रष्टाचार , घपले , घोटाले बेईमानी के विरूद्ध मोदी जी  और योगी जी ने जो जुगलबंदी बिठा रखी है उसने तो लालची घूसखोरों  और भ्रष्टाचारियों की दुनिया में सुनामी सा कहर ला दिया है।  एक ने पहले ही कह दिया है न खाऊँगा न ही किसी को खाने दूँगा , झोला उठा कर चल दूँगा , जितनी भी देश सेवा करानी हो उसके लिए तत्पर हूँ , दूसरे ने तो मानो तन ही नहीं मन पर भी भगवा धार लिया है और और जैसे सौगंध उठा ली हो कि अब राम की नगरी अवध में पाप का कोई भी कारोबार तो न चल पाएगा।  

योगी आदित्यनाथ सरकार के , सख्त क़ानून और उसे पालन किये जाने की दृढ़ प्रतिबद्धता ने पिछले दिनों में देश की सबसे बड़ी आबादी को सम्भालने वाले राज्य को बखूबी और बहुत ही जरूरी तौर  पर न सिर्फ संभाला बल्कि आज देश में तेज़ी से विकास पथ की ओर बढ़ने वाले राज्यों में से अग्रिम पंक्ति में है उत्तर प्रदेश।  

प्रदेश में भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के अपने इसी मुहीम को अंजाम देने के दौरान , पिछले दिनों  प्रदेश के सभी महकमों के सभी अधिकारियों और कर्मचारियों की पूरी जानकारी , सेवा पुस्तिका , खाता आदि को कम्प्यूटरीकृत किए जाने की पहल शुरू हुई तो बहुत से विभागों में चल रही बहुत सारी खामियाँ और भ्रष्टाचार भी निकल कर सामने आया।  इसमें सबसे व्यापक था , शिक्षा विभाग के पास लगभग 18 , हज़ार शिक्षकों की कोई जानकारी का नहीं होना जो पिछले कई वर्षों से प्रदेश के विद्यालयों में नियुक्त होकर वेतन पा रहे हैं।  

प्रदेश के सारे विद्यालयों में नियुक्त सभी शिक्षकों के नाम और सारी जानकारी शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर उपलबध कराए जाने के लिए नियत तिथि  के बीत जाने के बावजूद भी , 18 हज़ार शिक्षकों की जानकारी न उपलब्ध हो पाना एक बड़े घोटाले की ओर इशारा कर रहा है जिसकी जांच अब विशेष एजेंसी को सौंप दी गई है।  

याद हो कि पिछले दिनों ऐसी बहुत सारी घटनाएं अलग अलग राज्यों में देखने पढ़ने को मिली थीं जिसमे नकली नाम , जानकारी और ऐसे ही किसी आधार पर लोग विभिन्न सरकारी विभागों में अपनी नियुक्ति दिखा कर सालों तक वेतन पाते रहे झारखंड में तो एक व्यक्ति के आठ आठ विभागों में कार्यरत होकर वेतन उठाने की बात का खुलासा हुआ था।  


रविवार, 5 जुलाई 2020

महामारी के बाद




इस शताब्दी के शुरुआत में ही विश्व सभ्यता किसी अपेक्षित प्राकृतिक आपदा का शिकार न होकर विरंतर निर्बाध अनुसंधान की सनक के दुष्परिणाम से निकले महाविनाश की चपेट में आ गया |  किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि कभी इंसान की करतूत उसके लिए ऐसे हालात पैदा कर देंगे जब कुदरत के माथे ,इंसान के विनाश का दोष नहीं आकर खुद उसके हिस्से में ये अपराध आएगा | 

अभी तो इस महारामारी की सुनामी से उबरने निकलने की ही कोई सूरत निकट भविष्यमे निकलती नहीं दिखाई दे रही है किन्तु समाज का हर वर्ग, विश्व का हर देश , प्रशासन , अर्थशास्त्री अभी से ये आकलन करने में लग गए हैं की महामारी के वैश्विक परिदृश्य के क्या हालात होंगे ? वैश्विक समाज और विश्व अर्थव्यवस्था किस ओर मुड़ेगी | विश्व महाशक्तियों के आप सी संबंधों का समीकरण क्या और  कितना बदल जाएगा ? सामरिक समृद्धता  के लिए मदांध देश क्या इस महामारी के बाद भी शास्त्र-भंडारण की ओर ही आगे बढ़ेंगे या फिर चिकित्स्कीय संबलता की ओर रुख करेंगे ये देखने वाली बात होगी | 

चिकित्स्कीय अनुसंधान के विश्व भर के तमाम पुरोधाओं को अभी तक कोरोना को पूरी तरह समझ उसका कारगर और सटीक तोड़ निकालने में सफलता हासिल हो सकने की फिलहाल कोई पुख्ता जानकारी नहीं है | तो अब जबकि पूरे विश्व को इसकी चपेट में आए छ महीने से भी अधिक हो चुके हैं और इसका प्रवाह और प्रभाव दोनों ही रोके से रुक नहीं पा रहे हैं | ऐसे में समाज शास्त्री अपने अध्ययन की दिशा उसी और मोड़ चुके हैं जब कोरोना के बाद महसूस की जाने वाली चुनौतियों से समाज को जूझना पडेगा , उन्हीं बातों का आकलन विश्लेषण किया जा रहा है | 


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | समाजशास्त्र का यह सिध्दांत सूत्र भी  सर्वथा प्रतिकूल होकर रह गया  है | मनुष्य आज अपने सही गलत अन्वेषणों ,प्रयोगों का दुष्परिणाम यह उठा रहा है कि अपने ही समाज में रहते हुए अपने ही समाज से निषिद्ध होने को विवश हो गया है | समाज शास्त्र का दूसरा सूत्र कि ताकतवर या मजबूत के ही बचे रहने या  उसके अपने अस्तित्व को बचाने के संघर्ष चक्र में ,उसके परिस्थितियों से लड़ कर पार पा जाने की सम्भावनाएँ ही अधिक प्रबल होती हैं | इस मिथक को भी इस महामारी ने इस अर्थ में तोड़ा कि विश्व के तमाम शक्तिशाली देश इस महामारी की चपेट में आकर त्रस्त पस्त हो चुके हैं और अब भी इन पर कोरोना का कहर बरप रहा है | 

आज विश्व समुदाय ने इस अलप समय में ही देख लिया कि एक सिर्फ इंसान को थोड़े दिनों तक प्रकृति से मनमानी करने से अवरुद्ध किए जाने भर से प्रकृति ने इतने ही दिनों में खुद कि स्थति कितनी दुरुस्त कर ली | तो इस महामारी ने यह भी बता दिया कि इंसानी सभ्यता को हर हाल में प्राकृतिक तारतम्यता व् सामंजस्य का सिद्धांत ही अपनाना होगा | 

इंसान घरेलू प्राणी है ,यह एक बार फिर प्रमाणित हुआ | जिस तरह से आपदा की आहट  सुनते ही विश्व से लेकर देश के अंदर भी एक प्रांत से दूसरे प्रांत में लोगों ने अपने घर , अपनों के पास जाने का जो ये प्रवाद दौर वर्तमान में हुआ है वो इतिहास में हुए बहुत से असाधारण विस्थापनों में से एक है | अपने रोजगार और भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए गाँव की बहुत बड़ी ,आबादी  पलायन/विस्थापन का शिकार दशकों पहले शुरू हुई थी | गाँव ,कस्बों से शहर ,नगर और महानगर बसते  बढ़ते रहे और गाँव खाली होते चले गए | शहरों में  आ कर सालों तक सिर्फ जीने के अस्तित्व संघर्ष में उलझा ये ग्राम्य समाज क्या अपने गाँव घरों में अपने जीवन यापन के विकल्प तलाशेगा ? 

बिहार ,उत्तर प्रदेश ,बंगाल ,उड़ीसा का मान संसाधन विकास सूचकांक प्रदर्शन दशकों से ही बहुत पिछड़ा रहा है | ऐसी आपदाओं के समय इन राज्यों का प्रशासन और प्रबंधन क्या ,किता विकास कर सका , क्या कितना सीख पाया ये हालत भी इन्हें परिलक्षित करते हैं | महामारी के रूप में सामने आए इस अपर्याताशित आपदा और ऐसी दूसरी आपत्तियों के समय ही व्यवस्थाओं की असली परख होती है और अभी यही परख हो रही है | 

ये महामारी काल कितना लंबा खिंचेगा अभी तो यही तय नहीं है किन्तु इसके बाद वाले समय में विश्व का सामाजिक ,आर्थिक और भौगोलिक समीकरण भी परिवर्तित होकर नए  मापदंड  स्थापित करेगा ये तय है | 
वैश्विक महाशक्तियों यथा अमेरिका ,चीन ,फ्रांस ,रूस ,इटली  जैसे देश अलग अलग स्थितियों परिस्थितयों में खुद को विश्व फलक पर पुनर्स्थापित करने की जद्दोज़हद के बीच अविकसित और विकाशील देश भी इस महामारी के प्रभाव से उबरकर खुद को बचा पाने के लिए नए सिरे से संघर्षशील होंगे | 

भारत इस महामारी के विरुद्ध  विश्व के अन्य देशों की तुलना में अब तक इस लड़ाई में सम्मानपूर्वक अपने लोगों को यथासंभव बचा सकने के कारण वर्तमान में पहले ही अगली पंक्ति में आ चूका है | विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष पद पर किसी भारतीय का चयन , संयुक्त राष्ट्र परिषद् के अस्थाई सदस्य  के रूप सर्वाधिक मतों से चयन , ने इस ओर स्पष्ट ईशारा कर भी दिया है | इस बीच चीन को मिल रही वैश्विक नकारात्मक प्रतिक्रया के कारण वहां से पलयान को उद्धत उद्योग परियोजनाएं आदि की पहली प्राथमिकता भारत ही होगा | इसकी शुरुआत भी करीब करीब हो चुकी है | 

मंगलवार, 5 मई 2020

देश्बंदी का तीसरा चरण और कोरोना का तीसरा स्टेज


शराब के लिए लगी ही लाइन 



अचानक से बिना किसी बहुत बड़ी योजना को बनाए  , बिना किसी ठोस चिकित्सकीय तैयारी के , और बिना किसी बहुत अचूक औषधि के देशबंदी को तीसरे विस्तार दिए जाने के बावजूद जिस तरह से पिछले इतने दिनों से इस लड़ाई से लड़ने के लिए जो लोग अपने अपने घरों में बंद होकर देश प्रशासन और समाज और खुद को भी बचाए रखे हुए लोगों की भावनाओं और उनकी जान के साथ खिलवाड़ किया गया और जा रहा है |


यदि एक पल को उसे मैं भूल भी जाऊं तो भी जब मैं उन हज़ारों चिकित्सकों , नर्सों , पुलिस वालों और कोरोना की लड़ाई में अपनी जान की बाजी स्वेच्छा से लगाने वालों और उनके घर परिवार वालों के बारे में सोच कर यही समझ पा रहा हूँ कि इस भूल .व्यग्रता ने उनकी मुश्किलें कितनी बढ़ा दी हैं | 

दूसरी तरफ विभिन्न राज्य सरकारों और केंद्र सरकार का भी , अब रोजाना बहुत तेज़ी से कोरोना पीड़ितों की बढ़ रही संख्या , मौत के बढ़ते आंकड़ों के प्रति दिखाई जा रही उदासीनता भी बहुत ही निराशाजनक है  | 

और फिर सरकारों को ही अकेले क्यूँ दोष दिया जाए जो देश अभी कुछ दिनों पहले तक रामायण देख कर लहालोट हुआ जा रहा था ऐसा जता और बता रहा था मानो राम राज्य आ ही गया  | समाज के गरीब मजदूर को बढ़ चढ़ कर खिलाते हुए दया का सागर बना हुआ था वही समाज वही लोग शराब की दुकानें खुलते ही अपने असली रंग अपने असली चरित्र में आ गया |


मैं ये सोच रहा हूँ की विधाता आखिर अब इस संसार को बचाए ही क्यूँ  ? टिक टॉक के वीडियोज बनाने के लिए या फिर पूरे संसार को शराब के महासमुद्र में तैर कर वैतरणी पार करने के लिए | 

आज ये संसार अपनी नियति खुद तय कर रहा है और हमेशा की तरह इसमें वो भी शामिल होंगे जो इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से भागीदार और जिम्मेदार नहीं हैं | हमें इससे और बहुत ज्यादा से भी बहुत अधिक बुरे और भयानक के लिए तैयार हो जाना चाहिए | 

रविवार, 19 अप्रैल 2020

वक्त सब कुछ अपने आप तय कर देगा





समय सबको अवसर दे रहा है ,कोई राम चुन रहा है कोई रावण। कोई धर्म चुन रहा है कोई पाप। कोई देश चुन रहा है कोई मज़हब। कोई नियम चुन रहा है कोई पत्थर। होने दीजिये जो हो रहा है। बोलने दीजीये जो बोल रहा है। उठ जाने दीजिए सारे नकाब उतर जाने दीजिए सारे बुर्के नुमा जाले।


जाहिलों नंगों की पहचान तो उनकी हरकतों से उनकी मंशा से कई बार तो उनके चेहरे मोहरे से भी हो जाती है ,पहचानिये उन्हें जो थाली के बीच के बैंगन की तरह दोनों तरफ हैं और असल में कहीं भी नहीं हैं। वो हैं देश के समाज के असली दीमक जो आपके साथ बैठ कर आपके साथ बोल कर आपकी ही सोच को खोखला करने का प्रयास करते हैं।

वे उन उजागर शत्रु मानसिकता और व्यवहार वालों से कहीं ज्यादा घातक और निकृष्ट हैं जो अभी तक ये नहीं तय कर पाए हैं कि असल में क्या वे यही सब कुछ अपने परिवार अपने बच्चों आने वाली नस्लों के जिम्मे भी छोड़ कर जाएंगे।

और ये आज और अभी करना या होना इसलिए भी जरूरी है क्यूंकि ये बीमारी न भी आती तो भी देश पिछले कुछ समय से एक बहुत बड़े वायरस के पूरी तरह उजागर हो जाने से जूझ तो रहा ही था। कुछ मत भूलियेगा , न राम मंदिर , न धारा 370 ,न कश्मीर , न नागरिकता न ही दिल्ली के दंगे।

सब कुछ याद रखिये और तब तक याद रखिये जब तक अब सब कुछ आर पार न हो जाए। नहीं तो हमारी आने वाली नस्लें उनके सामने भविष्य में आ रही नई मुश्किलों के अतिरिक्त विरासत में मिली इन मुश्किलों को भी निर्णायक रूप से ख़त्म न कर पाने के लिए हमें कटघरे में जरूर खड़ा करेंगी।

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