चार दिन की अथक परिश्रम और जीतोड कोशिश के बावजूद , पूरे देश की दुआओं और किसी चमत्कार की आशा के विपरीत आखिरकार जब नन्हीं माही को गहरे बोरवेल से बाहर निकाला गया तो उसकी मौत हो चुकी थी । बुधवार को अपने जन्मदिन के बाद घर से बाहर निकली चार वर्षीय माही अचानक ही एक खुले हुए बोरवेल के गहरे गड्ढे में जा गिरी जो उसके लिए मौत का मुंह साबित हो गया ।
बोरवेल के गहरे गड्ढे में किसी बच्चे के गिरने की पहली घटना जिसने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा या कहें कि मीडिया कवरेज के कारण सबका ध्यान उस ओर चला गया वो था प्रिंस नामक एक बच्चे का गिरना । उस समय से लेकर हालिया दुर्घटना तक जाने कितनी बार कितने बच्चे बडे ऐसी दुर्घटनाओं के शिकार होते रहे हैं , और शायद आगे भी ये सिलसिला चलता रहेगा ।
भारत में अभी तक दुर्घटनाओं से सबक सीखने और भविष्य में उनसे बचाव की कोई परंपरा नहीं बनी है । और तो और ऐसी लापरवाहियों को सरकार , प्रशासन व पुलिस तक गंभीर अपराध तो दूर , मामूली अपराध तक के नज़रिए से नहीं देखती है । हर बार की तरह इस बार भी कुछ दिनों तक खूब शोर शराबा होगा । मुआवजा , दिए जाने की घोषणा, प्रशासन की लापरवाही की बातें , दोषियों के खिलाफ़ कार्यवाही का आश्वासन और फ़िर भविष्य में ऐसा न होने देने की कोरी बयानबाजी करके मामले की इतिश्री कर ली जाएगी । इसके बाद फ़िर किसी प्रिंस किसी माही के बोरवेल में गिरने तक कहीं कुछ भी होता दिखता नहीं मिलेगा , ये अब इस देश की नियति बन चुकी है ।
माही की मौत ने इस बार कई सवाल छोड दिए हैं अपने पीछे जिनका उत्तर तलाशा जाना और प्रशासन के सामने उन्हें रखा जाना बेहद जरूरी है ।
१. किसी पॉश इलाके/वीआईपी/वीवीआईपी क्षेत्र में इस तरह की लापरवाही भरी घटना क्यों नहीं देखने सुनने को मिलती । आखिर वहां के सारे सुरक्षा इंतज़ाम क्यों और कैसे पुख्ता होते हैं । ऐसी लापरवाही /ऐसी भूलें और ऐसी दुर्घटनाएं सिर्फ़ सामान्य क्षेत्रों में ही क्यों घटित होती हैं ? कहीं इसलिए तो नहीं कि प्रशासन सरकार के लिए उनकी कोई वरीयरता नहीं ?
२. अब तक कितने व्यक्तियों को बोरवेल , सडकों पर गड्ढे , मेनहोल के ढक्कन आदि खुले रखने के लिए दोषी ठहरा के कठोर सज़ा दी गई है ? सज़ा क्या कितनों के खिलाफ़ प्राथमिकी दर्ज़ करके उन पर मुकदमा चलाया गया है ? इन दुर्घटनाओं वाले मामलों से इतर इस तरह की कितनी शिकायतों पर सरकार , प्रशासन और पुलिस ने कार्यवाहियां की हैं और क्या की हैं ?
३. माही, प्रिंस जैसे बच्चे या अन्य पीडित यदि बडे रसूखदार मंत्रियों , उद्योगपतियों , अभिनेताओं , खिलाडियों के घर के होते , तब भी क्या प्रशासन मदद करने में इतनी कोताही , इतना ही विलंब करता या तब ये काम युद्ध स्तर पर होता शायद , यानि आम आदमी का जीवन सरकार , प्रशासन के लिए कोई मोल नहीं रखता । वो तो धन्य है हमारी सेना और उनका ज़ज़्बा जो हर बार मौत के मुंह में जाकर पीडितों को बचाने के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा देते हैं ।
४. सबसे जरूरी और ध्यान देने योग्य बात ये कि क्या भारत के अलावा अन्य देशों में भी ऐसी दुर्घटनाओं में पीडितों को बचाने के लिए यही विलंबकारी उपाय अपनाए जाते हैं । यदि नहीं तो आखिर क्या वजह है कि भारत आज तक ऐसी दुर्घटनाओं . आपदा के लिए आधुनिक तकनीक व उन्नत मशीनों , नए उपकरणों से लैस नहीं हो सका है ? इस देश में जब करोडों अरबों रुपए घपले घोटाले के लिए उपलब्ध है तो फ़िर जीवन रक्षक मशीनों उपकरणों के लिए क्यों नहीं ?
५. एक गौरतलब बात ये कि हालिया घटना में बच्ची को बचाने के लिए खोदे गए गहरे गड्ढों और सुरंगों का असर उस रिहायशी क्षेत्र और वहां निर्मित भवनों , मकानों पर क्या पडेगा , क्या इस ओर किसी का ध्यान गया , क्या इस दिशा में कुछ किया गया ?
और भी ऐसे जाने कितने ही प्रश्न छोड गया है उस चार वर्षीय बच्ची की मौत जो सरकार प्रशासन और खुद को भविष्य का महाशक्तिशाली , सुपर पावर बनने का दंभ भरने वाले देश के सामने । अब बात आम जनता की । देखा गया है कि ऐसे तमाम दुर्घटनाओं जिनमें पीडित बच्चे होते हैं अक्सर उनमें एक बडा कारण होता है माता पिता और अभिभावकों की लापरवाही , समस्या को नज़रअंदाज़ करने की प्रवृत्ति । सरकार , प्रशासन , पुलिस का रवैय्या आम लोगों के प्रति कैसा और क्या है अब ये बात किसी से छुपी नहीं है इसलिए अब आम आदमी के लिए ये बहुत जरूरी हो जाता है कि वो चुप न बैठे ।
असल में होने ये चाहिए कि अपने बच्चों और खुद के प्रति लापरवाही की हर संभावना को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए । इसके अलावा इससे भी जरूरी बात ये है कि देश के हर नागरिक को समस्याओं के प्रति , विशेषकर ऐसी अपेक्षित दुर्घटनाओं के प्रति बेहद सजग और सचेत होना चाहिए । इसके लिए सबसे पहला कार्य होना चाहिए इन तमाम गड्ढों , खुले बोरवेलों , मेनहोलों की शिकायत और बाकायदा पुलिस से शिकायत की जानी चाहिए , जरूरत पडे तो सीधा प्राथमिकी दर्ज़ करवाना चाहिए । मीडिया और संचार माध्यमों को भी इसमें आम लोगों का साथ देना चाहिए । प्रशासन को इस बात के लिए मजबूर किया जाना चाहिए कि वो न सिर्फ़ उन समस्याओं पर ध्यान देकर जरूरी कार्यवाही करे बल्कि दोषियों पर भी सख्ती से कारवाई की जाए । ये ध्यान रखा जाना बहुत जरूरी है कि आम आदमी खुद पहले अपनी मदद करे तो ही बात बन सकती है और शायद ऐसी दुर्घटनाओं में अपने बच्चों को लील जाने से बचाया जा सकता है ।